अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के तहत नर्सों की यूनियन ने आगामी 15 जून से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी है। बीते तीन दिनों से ये नर्सें बेहद खराब हालात में काम करने के खिलाफ विरोध कर रही हैं। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे हड़ताल पर चली जाएंगी। गौरतलब है कि एम्स में कार्यरत 300 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। इनमें से 47 लोग नर्सिंग स्टाफ के कर्मचारी हैं।
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खबर के मुताबिक, एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया को मेल भेज कर इन नर्सों की यूनियन ने कहा है कि कोविड-19 से निपटने के लिए गठित टास्क फोर्स की बैठकों में उनके द्वारा भेजे गए पत्रों और नियमित प्रेजेंटेशन पर ध्यान नहीं दिया गया है। मेल में यूनियन ने कहा, 'इस संकटकाल में भी एम्स के अधिकारी हमारी बात नहीं सुन रहे हैं। ऐसे में हम कड़े कदम उठाने को मजबूर हुए हैं, जिनमें दस जून से बड़ी तादाद में छुट्टी पर जाना भी शामिल है।'
मेल में आगे लिखा है, 'अगर यूनियन अनिश्चितकालीन हड़ताल पर गई तो इसके चलते सामने आने वाले परिणामों के लिए एम्स प्रशासन जिम्मेदार होगा।' हालांकि, यूनियन के जरिये नर्सों ने कहा है कि वे खुद भी इस मुश्किल समय में हड़ताल पर नहीं जाना चाहतीं/चाहते, इसलिए एम्स निदेशक उनके साथ तुरंत बैठक कर बातचीत करें।
क्या चाहती है यूनियन?
नर्सों की मांग है कि उन्हें अस्पताल में कोविड-19 के इलाज वाली जगहों में चार-चार घंटों की एक समान शिफ्ट दी जाए। साथ ही, सुरक्षा के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वपमेंट यानी पीपीई मुहैया कराए जाएं। कोविड-19 और गैर-कोविड-19 वाली जगहों को ध्यान में रखते हुए शिफ्ट से जुड़ी एक रोटेशन पॉलिसी अपनाई जाए। साथ ही, डोनिंग और डोफिंग एरिया की व्यवस्था की जाए।
यूनियन की इस चेतावनी से पहले इसके अध्यक्ष हरीष काजला ने कहा था कि कोविड-19 के मरीजों को देखने के लिए नर्सों को छह घंटों की शिफ्ट में लगाया गया है, जो अक्सर सात से आठ घंटे तक चली जाती है। उनके मुताबिक, इतनी देर तर पीपीई में रहने से नर्सों की शारीरिक स्थित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, विशेषकर महिला नर्सों पर। हरीष ने कहा, 'हममें से कई नर्सों की त्वचा पर लाल चकत्ते हो गए हैं, मूत्रमार्ग में संक्रमण हो गया है और कइयों का वजन घट गया है। महिला नर्स अपने सैनिटरी पैड तक नहीं बदल सकतीं, क्योंकि पीपीई को उतारना आसान नहीं है।'
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