कोविड-19 महामारी की वजह बना नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 न सिर्फ लाल रक्त कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करता है, बल्कि नई रेड ब्लड सेल्स को बनने से भी रोकता है। एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। मेडिकल जर्नल आर्किव यूरोमेडिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, रूस स्थित फार ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी के शोधककर्ताओं ने अपने जापानी सहयोगी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कोविड-19 से लाल रक्त कोशिकाओं (एरीथ्रोसाइट) पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की है। एरीथ्रोसाइट नामक ये लाल रक्त कोशिकाएं आयरन युक्त प्रोटीन हीमोग्लोबिन को ट्रांसपोर्ट करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन्हें खोने से मस्तिष्क के न्यूरॉन, रक्त वाहिकाएं और अंदरूनी अंगों को क्षति हो सकती है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि ऐसा पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण होता है।

(और पढ़ें - कोविड-19: हृदय को कई प्रकार से क्षतिग्रस्त करता है कोरोना वायरस, वैज्ञानिकों ने अलग-अलग हार्ट इंजरी का पता लगाने का दावा किया)

कोरोना वायरस के संक्रमण से जुड़े ज्यादातर गंभीर मामलों में मल्टीपल ऑर्गन फेलियर देखने को मिल सकता है और मरीज में रेड ब्लड सेल्स नहीं होने के चलते घुटन पैदा होना शुरू हो सकती है। ऐसे मामलों में आर्टिफिशियल वेंटीलेशन से भी मदद नहीं मिलती, क्योंकि शरीर में ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट करने वाला कोई नहीं होता। यह काम लाल रक्त कोशिकाएं करती हैं, जिन्हें लेकर वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोरोना संक्रमण में ये न सिर्फ डैमेज हो सकती हैं, बल्कि इनका नया निर्माण भी रुक सकता है। ऐसे में अध्ययन कहता है कि कोविड-19 के ऐसे मरीजों के लिए एरीथ्रोसाइट मास और विटामिन बी12 संबंधित थेरेपी दी जानी चाहिए।

(और पढ़ें - अमेरिका: कोविड-19 टेस्ट में फॉल्स नेगेटिव आए छात्र के स्कूल इवेंट में भाग लेने के बाद 116 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए- सीडीसी)

स्टडी में की गई जांच के दौरान पता चला है कि रेड ब्लड सेल्स का शुरुआती ब्रेकडाउन सार्स-सीओवी-2 वायरस का प्रारंभिक रिएक्शन होता है, जो बाद में बढ़ता जाता है। इसके प्रभाव में मरीज को आयरन टेस्ट जैसा महसूस होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि रुधिर प्रवाह में शामिल एरीथ्रोसाइट से रिलीज होने वाला हीमोग्लोबिन सलाइवा तक पहुंचता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने कहा है कि कम हीमोग्लोबिन वाला हर व्यक्ति कोविड-19 से जुड़ी इस कंडीशन के खतरे में है। बुजुर्ग, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापे का शिकार व डायबिटीज मेलिटस, गर्भवती महिलाएं, प्राइमरी एंड एक्वायर्ड डेफिशिएंसी, बाधित हीमटोपोएटिक फंक्शन, एचआईवी और कैंसर से पीड़ित लोग इनमें विशेष रूप से शामिल हैं।

(और पढ़ें - कोविड-19: अध्ययन में इन तीन दवाओं में कोरोना वायरस के खिलाफ एक्टिविटी दिखी, शोधकर्ताओं ने इलाज में मदद मिलने की संभावना जताई)

डायबिटीज से बचने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट का उपयोग करे।और अपने जीवन को स्वस्थ बनाये।

ऐसे लोगों पर वायरस क्या प्रभाव डाल सकता है, इसकी चर्चा करते हुए फार ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गेलिना रेवा ने कहा, 'एपीथीलियम में घुसने के बाद वायरस मल्टीप्लाई होता है। फिर यह ब्लडस्ट्रीम में घुसकर टार्गेट्स पर हमला करता है, जो इंटर्नल एपीथीलियम (गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट, लंग्स, जेनिटूरिनरी सिस्टम) और एरीथ्रोसाइट दोनों हो सकते हैं। हालांकि अधिकतर हमने देखा है कि ऐसा रेस्पिरेटरी सिस्टम में देखने को मिलता है। वायरस को केवल रीप्रॉडक्शन के लिए एपीथीलियल सेल्स की जरूरत होती है। हमें लगता है कि वायरस का मुख्य टार्गेट रेड मैरो होता है, जहां यह एंडोथीलियम को डैमेज करता है। यह ऊतक वयस्क होती कोशिकाओं के रक्त में माइग्रेशन को नियंत्रित करने का काम करता है।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: लाल रक्त कोशिकाओं को डैमेज करने के साथ उनका निर्माण भी रोकता है कोरोना वायरस, रेड मैरो को कर सकता है टार्गेट है

ऐप पर पढ़ें