दुनियाभर में नए कोरोना वायरस से लोगों का संक्रमित होना और मरना जारी है। हालात उन देशों में भी नियंत्रण से बाहर हैं, जिन्हें सबसे विकसित और ताकतवर माना जाता है। कोई भी कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 और इससे होने वाली बीमारी कोविड-19 को रोकने का कारगर तरीका नहीं ढूंढ पाया है। इसके चलते अब तक लाखों की संख्या में लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं और हजारों मारे जा चुके हैं। ऐसे हालात में एक और बुरी जानकारी सामने आई है।
दरअसल, एक हालिया शोध में सामने आया है कि सार्स-सीओवी-2 किस तीव्रता के साथ लोगों को अपना शिकार बना रहा है। इसमें शोधकर्ताओं ने इस जानकारी को गलत बताया है कि कोविड-19 तेजी से नहीं फैलता। नए शोध की मानें तो हो सकता है नया कोरोना वायरस पहले के मुकाबले दोगुनी रफ्तार से लोगों को बीमार बना रहा हो।
पहले से ज्यादा तेजी से फैल रहा कोरोना का संक्रमण
खबर के मुताबिक, अमेरिकी शोधकर्ताओ की टीम ने पाया है कि कोरोना वायरस का संक्रमण जितनी तेजी से चीन में फैला था, अब वह उससे ज्यादा तीव्रता से फैल रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र की चर्चित पत्रिका ‘इमर्जिंग इन्फेक्शंस डिसीज’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने एक विश्लेषण के आधार पर यह जानकारी दी है। रिसर्च के तहत किए गए गणितीय विश्लेषण के अनुसार, चीन के वुहान शहर में कोविड-19 से संक्रमित हर एक व्यक्ति ने औसतन 5.7 अन्य लोगों को संक्रमित किया था। यह दर फरवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा बताई गई दर से दोगुनी है।
इस आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि अब वायरस को फैलने से रोकने के लिए दुनिया की 82 प्रतिशत आबादी को टीकाकरण की जरूरत पड़ सकती है। इस तरह की सुरक्षा के बिना बहुत ज्यादा सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत होगी। क्योंकि ऐसी संभावना है कि हर पांच मरीजों में से एक की पहचान न हो पाए। ऐसे में संक्रमण के फैलने का खतरा बना रहेगा।
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आवाज से कोरोना वायरस का पता लगाने की कोशिश
दूसरे ओर शोधकर्ता एक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिससे संदिग्ध मरीज की आवाज के जरिए कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। मीडिया रिपोटों के मुताबिक, 'कैंब्रिज विश्वविद्यालय' के शोधकर्ताओं ने एक नया मोबाइल एप डिजाइन किया है। 'मशीन लर्निंग एल्गोरिदम' या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से इस एप का उपयोग कोरोना वायरस से जुड़ा डेटा इकट्ठा करने के लिए किया जाएगा। बताया गया है कि संक्रमित की आवाज, उसकी सांस और खांसी से यह मोबाइल एप यह पता लगाने में सक्षम होगा कि व्यक्ति को कोरोना वायरस है या नहीं।
यूरोपीय अनुसंधान परिषद (ईआरसी) द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि चूंकि कोविड-19 एक सांस से जुड़ी समस्या है, इसलिए इन्सान की आवाज और सांस लेने की प्रक्रिया के साथ खांसी से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इतना नहीं अगर कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव हुआ तो यह एप खुद इसकी जानकारी देगा।
इस एप के जरिए यूजर्स का सर्वे इकट्ठा किया जाएगा और आवाज की रिकॉर्डिंग के साथ-साथ उनके श्वास और खांसी के नमूने भी लिए जाएंगे। बताया गया है कि अगर शोधकर्ता बड़ी संख्या में डेटाबेस जुटाने में सफल होते हैं तो वे इससे जुड़े आगे की रिसर्च को जारी रखेंगे।