हाल में चीन में पैकेट बंद खाद्य पदार्थों में कोरोना वायरस मिलने की खबरों ने खासी सुर्खियां बटोरी थीं। अब एक नए शोध में पता चला है कि नया कोरोना वायरस खाने की चीजों के जरिये भी फैल सकता है, ऐसे में कोविड-19 महामारी को रोकने के लिहाज से वायरस के इस ट्रांसमिशन रूट को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस से दूषित खाद्य पदार्थों, खासतौर पर मांसाहार आइटम, के जरिये संक्रमण फैल सकता है, क्योंकि खाने की चीजों को एक जगह से दूसरी जगहों पर ले जाया जाता है और जमे हुए खाने यानी फ्रोजन फूड में वायरस कई दिनों तक बना रह सकता है। इस तर्क के समर्थन में शोधकर्ताओं ने कुछ मीट और सीफूड प्रोसेसिंग प्लांट का जिक्र किया है, जहां कोरोना वायरस के कुछ मामले सामने आ चुके हैं।
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रिपोर्टों के मुताबिक, चीन के अलावा यूनाइटेड किंगडम, पुर्तगाल, घाना, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में अलग-अलग नॉनवेज फूड आइटमों और उनकी प्रोसेसिंग से जुड़े प्लांटों में वायरस मिलने के मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि ज्यादातर वैज्ञानिक वायरस के इस तरह फैलने की संभावना से इनकार करते हैं। वे इस आशंका को लेकर संदेह जताते हैं, क्योंकि शुरुआती अध्ययनों में बताया गया है कि 21 से 23 डिग्री सेल्सियस के तापमान में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के कॉपर, कार्डबोर्ड, स्टेनलेस स्टील या प्लास्टिक की सतहों पर पाए जाने की रिपोर्टें नहीं मिली हैं। इन अध्ययनों में चार घंटों से लेकर तीन दिनों तक के अंतराल के बीच उल्लिखित तापमान में इन सतहों पर वायरस होने की जांच की गई थी, लेकिन उन पर वायरस डिटेक्ट होने का दावा नहीं किया गया।
वहीं, नए अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोशिश की सार्स-सीओवी-2 फ्रोजन या रेफ्रिजरेटिड मीट और सैमन (एक प्रकार की मछली) में वायरस कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है। वैज्ञानिकों ने सिंगापुर के मांस बाजार से लिए सैमन, चिकन और सूअर के मांस के सैंपलों का परीक्षण किया। उन्होंने वायरस की एक निश्चित मात्रा के साथ इन फूड सैंपलों को दूषित किया। इसके बाद उन्हें चार डिग्री सेल्सियस से लेकर मायनस 20 डिग्री और मायनस 80 डिग्री सेल्सियस के तापमान में स्टोर करके रखा गया। इस दौरान सैंपलों को पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें और 21वें दिन टेस्ट किया गया। उन्होंने पाया कि पहले दिन से लेकर 21वें दिन तक वायरस इन मांस सैंपलों में एकसमान मात्रा के साथ मौजूद रहा।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि फूडबोर्न या फूड पैकेजिंग के जरिये कोविड-19 के फैलने की संभावना काफी कम है। लेकिन ताजा शोध के परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह कोविड-19 के फैलने का प्रमुख माध्यम भले न हो, लेकिन किसी ऐसे क्षेत्र में दूषित खाद्य पदार्थों के पहुंचने से, जहां कोविड-19 का एक भी मामला नहीं है, वायरस फैलने की आशंका अकारण नहीं है। यह अनुमान इस तथ्य के चलते और बढ़ जाता है कि पहले भी मीट प्रोसेसिंग प्लांट और बूचड़खानों के कर्मचारियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबरें आई हैं। इन लोगों के हाथ से होते हुए ही मीट बाजार तक पहुंचता है, जहां खरीदारों की काफी भीड़ रहती है। मछली बाजारों में भी अमूमन यही माहौल रहती हैं। उनके काटने और वितरण का काम हाथों से ही होता है। ऐसे माहौल में काम करने वाले लोग अगर वायरस की चपेट में हों तो वे भी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर अन्य लोगों को संक्रमण दे सकते हैं। यह भी गौर करने लायक है कि मीट प्रोसेसिंग यूनिटों में ज्यादातर चीजें स्टेनलेस स्टील की होती हैं, वहां का तापमान कम होता है और सूरज की रौशनी वहां नहीं पड़ती है (जो अल्ट्रावायलट किरणों से युक्त होती है), जिससे वायरस के लिए लंबे वक्त तक जीवित रहने का माहौल बनता है।
नोट: यह अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल या साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा की जानी बाकी है। फिलहाल इसे मेडआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है। हम इस अध्ययन में सामने आए तथ्यों का समर्थन और विरोध दोनों ही नहीं करते हैं।