अब तक दुनियाभर में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 की वजह से संक्रमित होने वालों की तादाद 16 लाख से ज्यादा हो गई है और मरने वालों की संख्या भी 1 लाख को पार कर गई है। इस बीमारी को अस्तित्व में आए अब तक 3 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है। बावजूद इसके काफी कोशिशों के बाद भी दुनियाभर के वैज्ञानिक और डॉक्टर अब तक इस बीमारी का कोई इलाज या टीका नहीं खोज पाए हैं। दुनियाभर में इस संक्रमण की वजह से परिस्थिति खराब होती जा रही है।
इसी क्रम में वैसे मरीज जिनमें कोविड-19 के लक्षण नजर आ रहे हैं उनके इलाज के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड गैस का इस्तेमाल किया जा रहा है। इटली और कई दूसरे देशों के अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो कोविड-19 के गंभीर केस में नाइट्रिक ऑक्साइड को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेना फायदेमंद हो सकता है। यह गैस कितनी असरदार है इस बारे में क्लीनिकल स्टडीज की जा रही है।
नाइट्रिक ऑक्साइड, गंधहीन और रंगहीन गैस होती है जिसका इस्तेमाल फेफड़ों में मौजूद रक्त धमनियों को फैलाने में किया जाता है। इस गैस का आमतौर पर हमारे शरीर के अलग-अलग उत्तकों (टीशू) में उत्पादन होता है यह इम्यून सिस्टम को ट्रिगर करने में अहम रोल निभाती है ताकि हमारा इम्यून सिस्टम शरीर पर हमला करने वाले हानिकारक रोगाणुओं के खिलाफ लड़ाई लड़ सके। साथ ही यह गैस रक्त धमनियों को फैलाने में और मस्तिष्क में सिग्नल्स भेजने की प्रक्रिया में भी मदद करती है।
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नाइट्रिक ऑक्साइड गैस का इस्तेमाल क्लिनिकली पल्मोनरी हाइपरटेंशन के इलाज में किया जाता है। यह एक ऐसी स्थिति जिसमें फेफड़ों की रक्त धमनियों में ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और सिकल सेल डिजीज की वजह से भी पल्मोनरी हाइपरटेंशन होने का खतरा रहता है।
कैसे काम करती है नाइट्रिक ऑक्साइड गैस?
नाइट्रिक ऑक्साइड को जब सांस के साथ शरीर के अंदर लिया जाता है तो यह फेफड़ों के वायुकोष (alveoli) में मौजूद बेहद पतली और बारीक रक्त धमनियों (capillaries) की झिल्ली से होकर गुजरती है। एक बार जब ये गैस वहां पहुंच जाती है उसके बाद यह फेफड़ों में एक साथ कई तरह की प्रतिक्रियाएं शुरू करती है जिससे एक तरह का कंपाउंड बनता है जिसे cGMP कहते हैं। ऐसा होने पर आपकी मांसपेशियां रिलैक्स और स्मूथ हो जाती हैं और रक्त धमनियों को फैलाने और चौड़ा करने में मदद मिलती है।
रक्त धमनियों को फैलाने के साथ-साथ नाइट्रिक ऑक्साइड में एंटी-इंफ्लेमेट्री और ब्रॉन्कोडिलेट्री इफेक्ट्स भी होते हैं। अपने इसी कार्य को करने के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड, सॉल्यूबल गुआनिलिल सिसलेस नाम के एन्जाइम को सक्रिय बनाता है जो आगे जाकर जीटीपी नाम के कम्पाउंड को cGMP में बदल देता है। जैसे-जैसे cGMP की सघनता शरीर की कोशिकाओं के अंदर बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे मांसपेशियों के अंदर इसका असर दिखने लगता है। cGMP को आमतौर पर पीडीई5 नाम के एन्जाइम द्वारा तोड़ा जाता है।
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नाइट्रिक ऑक्साइड और कोरोना वायरस
कोविड-19 के करीब 200 मरीजों पर इस वक्त क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है यह जानने के लिए कि क्या नाइट्रिक ऑक्साइड गैस के इस्तेमाल से इस बीमारी की गंभीरता को असरदार तौर पर कम किया जा सकता है या नहीं। इस रिसर्च को मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल स्पॉन्सर कर रहा है और इसमें चीन के शिनजिंग अस्पताल का भी सहयोग शामिल है। इस रिसर्च का उद्देशय हाइपोक्सिया के मरीज (जिनके शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो) के शरीर में ब्लड ऑक्सीजन के स्तर को बेहतर बनाना है और वह भी 48 घंटे के अंदर ताकि उनके जीवित रहने की संभावना को बढ़ाया जा सके।
इससे पहले साल 2003 में सार्स महामारी के दौरान बीमारी और लक्षणों की गंभीरता को कम करने के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड का इस्तेमाल किया गया था। सार्स के मामले में नाइट्रिक ऑक्साइड को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेने से हाइपोक्सिया में कमी देखी गई। साथ ही पल्मोनरी हाइपरटेंशन में भी कमी आयी और गंभीर मरीजों के वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहने के दिनों में भी कमी देखने को मिली।
लैब बेस्ड स्टडीज में यह बात सामने आयी कि नाइट्रिक ऑक्साइड गैस, सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (sars) बीमारी के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी वायरस को और बढ़ने से रोकती है।
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