देश में कोविड-19 बीमारी के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की जरूरत साफ तौर पर महसूस की जा रही है। सरकार चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने में लगी भी है। इसी के तहत आने वाले दिनों में देश में 'ट्रेन अस्पताल' देखने को मिल सकते हैं। दरअसल, कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या के लगातार बढ़ने और लॉकडाउन हटने के बाद कोविड-19 की 'दूसरी लहर' आने की संभावना को देखते हुए ट्रेनों को अस्पताल जैसी सुविधाएं से लैस करने का प्रस्ताव है।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अभी तक 5,150 रेल डिब्बों (नॉन-एसी) को आइसोलेशन सेंटर के रूप में तब्दील किया गया है। अब केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि इनमें से कुछ डिब्बों को अस्पताल के स्तर पर अपग्रेड किया जाए, जहां ऑक्सीजन, आईसीयू और वेंटिलेटर जैसी सुविधाएं हों। आयोग का कहना है कि जिन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं, वहां इस तरह के इंतजाम किए जा सकते हैं।

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अखबार के मुताबिक, कोविड-19 के मामलों की संख्या बढ़ने की संभावना को देखते हुए पिछले हफ्ते नीति आयोग ने राज्यों के साथ एक प्रेजेंटेशन साझा किया था। इसमें बताया गया था कि अगर तीन मई को लॉकडाउन हटाया जाता है (जो कि नहीं हुआ), तो 15 मई तक देश में कोरोना वायरस के 65,000 मरीज हो सकते हैं। वहीं, 15 अगस्त तक यह संख्या करीब पौने तीन लाख हो सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए 'ट्रेन अस्पताल' का प्रस्ताव दिया गया है।

नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित समूह के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल ने अखबार से बातचीत में बताया, 'यह आइडिया (ट्रेन अस्पताल) प्रधानमंत्री की तरफ से आया है। इस प्रकार के आइसोलेशन सेंटरों को अस्पताल में बदलना एक समझदारी भरा कदम है। यह हमारी क्षमता बढ़ाता है, खासतौर पर उन जगहों पर जहां मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है. वे (ट्रेन अस्पताल) 24 घंटों में देश के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं और उन्हें कहीं भी खड़ा (पार्क) किया जा सकता है।' डॉ. पॉल ने यह भी कहा कि हो सकता है कि कुछ 'ट्रेन अस्पतालों' को मौजूदा स्वास्थ्य संकट के खत्म होने के बाद भी बरकरार रखा जाए ताकि इसी तरह के भावी संकटों में इनका इस्तेमाल किया जा सके।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 से निपटने के लिए रेल के डिब्बों को 'ट्रेन अस्पताल' में बदलने का प्रस्ताव है

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