अगर किसी व्यक्ति को पहले से डायबिटीज की समस्या हो तो उसे गंभीर कोविड-19 होने का खतरा काफी अधिक होता है यानी डायबिटीज, कोविड-19 का जोखिम कारक है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि अगर कोई व्यक्ति जिसे डायबिटीज है अगर वो किसी कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है तो उसे भी कोविड-19 इंफेक्शन होने का खतरा अधिक होगा। इसका मतलब ये है कि डायबिटीज के मरीजों को अगर कोविड-19 संक्रमण हो जाता है तो उनमें गंभीर बीमारी होने का खतरा और फिर मौत का खतरा भी अधिक होता है। 

इससे पहले जितने भी अध्ययन हुए उसमें एक्सपर्ट्स ने डायबिटीज और कोविड-19 के बीच सिर्फ यही एक कनेक्शन पाया था। लेकिन अब इस बात के सबूत भी लगातार बढ़ रहे हैं कि किसी स्वस्थ व्यक्ति को जिसे पहले डायबिटीज नहीं था, उसे कोविड-19 बीमारी होने के बाद डायबिटीज होने का खतरा काफी अधिक है। हालांकि इस बारे में और ज्यादा अध्ययन करने की जरूरत है यह समझने के लिए आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और क्या इसके लिए नया कोरोना वायरस जिम्मेदार है?

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  1. डायबिटीज और कोविड-19
  2. डायबिटीज होने के सबूत
  3. क्या हो सकते हैं संभावित कारण?

ब्रिटिश डायबिटिक एसोसिएशन के मुताबिक, जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो उसे ज्यादा एनर्जी की जरूरत पड़ती है और एनर्जी की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए आपका शरीर, जमा करके रखे शुगर को खून में रिलीज करने लगता है। आमतौर पर इंसुलिन नाम का एन्जाइम इस बात को सुनिश्चित करता है कि आपके शरीर की सभी कोशिकाएं खून में मौजूद अतिरिक्त शुगर को लेकर उसे एनर्जी में बदल दें।  

चूंकि डायबिटीज के मरीज के शरीर में इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता या फिर पर्याप्त मात्रा में नहीं होता इसलिए उनका शरीर खून में आए इस अतिरिक्त शुगर को कोशिकाओं तक नहीं पहुंचा पाता है। इसलिए उन्हें न तो संक्रमण से लड़ने के लिए जरूरी एनर्जी मिल पाती है और ना ही वे अपने ब्लड शुगर लेवल को कम कर पाते हैं।     

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जब शरीर में इंसुलिन की गंभीर कमी हो जाती है तो हमारा शरीर जमा करके रखे गए फैट को एनर्जी के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर देता है। इसकी वजह से शरीर में कीटोन्स का उत्पादन होने लगता है और जब शरीर में कीटोन्स जमा होने लगते हैं तो इस कारण जो स्थिति उत्पन्न होती है उसे डायबिटिक कीटोएसिडोसिस कहते हैं। डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से पीड़ित व्यक्ति को आम लोगों से ज्यादा थकान महसूस होती है और ज्यादा प्यास भी लगती है। ऐसे व्यक्ति को भ्रम महसूस होता है, धुंधला दिखाई देने लगता है और 24 घंटे के अंदर वह व्यक्ति बेहोश हो जाता है।

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रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें कोविड-19 होने के बाद डायबिटीज के मरीज और स्वस्थ दोनों तरह के लोगों में कीटोसिस, कीटोएसिडोसिस या डायबिटिक कीटोएसिडोसिस देखने को मिला। करीब 650 कोविड-19 के मरीजों पर की गई एक स्टडी में यह बात सामने आयी कि करीब 42 लोगों को बिना किसी बुखार या डायरिया के कीटोसिस हो गया। इनमें से 27 लोग ऐसे थे जिन्हें डायबिटीज नहीं था। 5 मरीजों (3 डायबिटिक और 2 स्वस्थ) में कीटोएसिडोसिस पाया गया।     

यहां दिलचस्प बात ये है कि स्टडी में यह बात भी सामने आयी कि कोविड-19 मरीज को कितने दिन हॉस्पिटल में रहने की जरूरत पड़ती है, उसका समय कीटोसिस की वजह से बढ़ जाता है और साथ ही में मौत का खतरा भी अधिक होता है। हालांकि डायबिटीज के मरीज जिन्हें कीटोसिस हुआ उन्हें भी अस्पताल में ज्यादा दिनों तक रहने की जरूरत पड़ी लेकिन उनकी मृत्यु की खतरा अधिक नहीं हुआ। स्टडी में यह सुझाव भी दिया गया कि स्वस्थ व्यक्ति जिन्हें कीटोसिस हो उन्हें हेल्दी डायट का सेवन करना चाहिए और एक्सरसाइज करनी चाहिए ताकि वे डायबिटीज की बीमारी को टाल सकें।

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इसी तरह की एक केस स्टडी में 37 साल के एक व्यक्ति में कोविड-19 होने के तुरंत बाद डायबिटिक कीटोएसिडोसिस और टाइप 1 डायबिटीज के संकेत विकसित होने लगे। अस्पताल में भर्ती होते वक्त वह व्यक्ति न तो मोटापे का शिकार था, ना ही ओवरवेट था और ना ही उसमें इंसुलिन प्रतिरोध के कोई संकेत दिख रहे थे। हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई वायरस ऐसे रहे जिनका संबंध टाइप-1 डायबिटीज से रहा जैसे- मम्प्स यानी गलसुआ का वायरस, रोटावायरस आदि। 

दरअसल, टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा तंत्र इंसुलिन का उत्पादन करने वाली स्वस्थ कोशिकाओं को ही नष्ट करने लगता है।

सेल स्टेम सेल नाम की विशेषज्ञों द्वारा रिव्यू की गई पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक स्टडी में यह सुझाव दिया गया है कि कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस सार्स-सीओवी-2, इंसान के शरीर में मौजूद अग्नाशय (पैनक्रियाज) की कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए जिम्मेदार होती हैं। अग्नाशय हमारे पेट में मौजूद पत्ते के आकार का एक अंग है जिसमें मौजूद बीटा-कोशिकाएं इंसुलिन का उत्पादन करती हैं और अल्फा-कोशिकाएं ग्लूकागॉन का। ग्लूकागॉन, ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है। 

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ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अग्नाशय की कोशिकाएं एसीई-2 रिसेप्टर्स को अभिव्यक्त करती हैं। कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए एसीई-2 रिसेप्टर्स का इस्तेमाल करता है। जब वायरस किसी कोशिका में प्रवेश करता है तो वह उन कोशिकाओं को नष्ट कर देता है या तो स्पष्ट रूप से या फिर इन्फ्लेमेशन के जरिए। उसके बाद यह अग्नाशय की कोशिकाओं को या तो क्षतिग्रस्त कर देता है या फिर मार देता है। 

एक और संभावित प्रक्रिया ये हो सकती है कि वायरस स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते ही एसीई-2 रिसेप्टर्स की अभिव्यक्ति को दबाने लगता है। एसीई-2 या एन्जियोटेंसिन-कन्वर्टिंग एन्जाइम-2 आमतौर पर रेनिन-एन्जियोटेंसिन-एल्डोस्टेरॉन-सिस्टम (RAAS) का हिस्सा है। RAAS शरीर के ब्लड प्रेशर और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है। एसीई-2, प्रोटीन एन्जियोटेंसिन 2 को एन्जियोटेंसिन (1-7) में कन्वर्ट कर देता है। एन्जियोटेंसिन 2 इंसुलिन के स्त्राव को कम कर देता है और इस कारण शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध होने लगता है। इंसुलिन प्रतिरोध तब होता है जब शरीर की कोशिकाएं, इंसुलिन के प्रति सही तरीके से प्रतिक्रिया नहीं देती हैं और खून में मौजूद शुगर को एनर्जी में बदल नहीं पाती हैं।

सार्स-सीओवी-2 और RAAS की परस्पर क्रिया की वजह से भी डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से निपटना मुश्किल हो जाता है क्योंकि एन्जियोटेंसिन 2 नसों की भेद्यता (रक्त धमनियों द्वारा पानी, पोषण और सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रवेश देने की क्षमता) को फेफड़ों में बढ़ा देता है और इसलिए फेफड़ों को नुकसान होने लगता है। इस कारण शरीर में हाइपोकैल्मिया की स्थिति भी बन जाती है जिसमें शरीर में पोटैशियम की कमी हो जाती है। 

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एक्सपर्ट्स अब कोविड-19 और टाइप 1 डायबिटीज के बीच क्या लिंक है इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं और साथ ही क्या इस बीमारी की वजह से प्रीडायबिटिक लोगों को भी टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा अधिक है यह जानने की कोशिश कर रहे हैं। टाइप 2 डायबिटीज का संबंध इंसुलिन प्रतिरोध से है, इंसुलिन उत्पादन करने वाली कोशिकाओं को नष्ट करने से नहीं।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें नया कोरोना वायरस गैर-मधुमेह रोगियों में भी बढ़ा सकता है डायबिटीज होने का खतरा है

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