कोविड-19 के मरीजों में मानसिक समस्याएं होने के मामले हाल के समय में मेडिकल रिसर्च का विषय रहे हैं। इस सिलसिले में एक नया अध्ययन कहता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों में से 20 प्रतिशत में किसी न किसी प्रकार का साइक्रिएटिक डिसऑर्डर विकसित हो जाता है। इसका मतलब है कि कोविड-19 से ग्रस्त हर पांच लोगों में से एक किसी न किसी प्रकार के मानसिक डिसऑर्डर से पीड़ित होता है। अध्ययन की मानें तो ऐसा कोविड-19 के डायग्नॉसिस के 90 दिनों के अंदर होता है। यह जानकारी जानी-मानी मेडिकल पत्रिका दि लांसेट साइकायट्री में प्रकाशित हुई है।
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, लांसेट ने बताया है कि कोविड-19 से रिकवर होने वाले मरीजों में एंग्जाइटी, डिप्रेशन और इनसोम्निया (नींद न आना) जैसी मानसिक समस्याएं सबसे ज्यादा देखने को मिली हैं। हाल के दिनों में ऐसे कई अध्ययन सामने आए हैं, जिनमें बताया गया है कि कैसे कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद मरीज इस प्रकार के साइक्रिएटिक डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं। वहीं, नए अध्ययन में पता चला है कि चिंता, अवसाद जैसी समस्याओं के अलावा संक्रमितों में डिमेंशिया जैसे मामले भी तेजी से बढ़े हैं। यह मानसिक स्थिति मस्तिष्क के लिए घातक मानी जाती है।
रॉयटर्स ने अध्ययन में शामिल शोधकर्ता और प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में साइकायट्री के प्रोफेसर पॉल हैरिसन के हवाले से बताया है, 'लोगों में चिंता है कि कोविड-19 सर्वाइवर्स में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा होने का खतरा काफी ज्यादा होता है। हमारे अध्ययन के परिणाम भी इसी ओर इशारा करते हैं।' हैरिसन के मुताबिक, दुनियाभर में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को कोविड-19 के बाद होने वाली मानसिक बीमारी के कारणों और उनके इलाज खोजने के लिए जल्दी से जल्दी जांच-पड़ताल शुरू करने की जरूरत है। एजेंसी की रिपोर्ट में प्रोफेसर हैरिस कहते हैं, 'स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जरूरी है कि वे इस प्रकार का इलाज देने के लिए तैयार रहें, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि हमारे परिणाम (साइकिएट्रिक मरीजों की असल संख्या की अपेक्षा) कम हो सकते हैं।'
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क्या कहते हैं अध्ययन के परिणाम?
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने अमेरिका में 69 लाख लोगों के इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स का विश्लेषण किया है। इनमें 62 हजार से ज्यादा कोविड-19 के मरीज शामिल थे। इस दौरान पता चला कि कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव आए हर पांच कोरोना सर्वाइवर्स में से एक को पहली बार एंग्जाइटी, डिप्रेशन या इनसोम्निया की समस्या हुई थी। अध्ययन में यह भी जानने में आया कि मानसिक बीमारी से पहले से पीड़ित लोगों में कोविड-19 से डायग्नॉस होने का खतरा बिना कोरोना संक्रमण वाले लोगों की अपेक्षा 65 प्रतिशत अधिक था।
अध्ययन में भाग नहीं लेने वाले अन्य मानसिक रोग विशेषज्ञों ने इन परिणामों पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि यह कोविड-19 से मरीजों के मस्तिष्क और समझ के प्रभावित होने का एक और बड़ा सबूत है, जो कोरोना वायरस के चलते बढ़ते मानसिक रोगों के खतरे का संकेत देता है। एजेंसी से बातचीत में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के कंसल्टेंट साइकिएट्रिस्ट माइकल ब्लूमफील्ड ने कहा, 'यह इस महामारी के साथ बन रहे मनोवैज्ञानिक तनावों के कॉम्बिनेशन का नतीजा हो सकता है।'
वहीं, किंग्स कॉलेज लंदन में साइकायट्री के प्रोफेसर साइमन वेस्ले बताते हैं कि इस परिणाम से साफ होता है कि मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर की चपेट में आने वाले लोगों के कोविड-19 से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा है, जैसे अतीत में आई अन्य प्रकार की संक्रामक रोग संबंधी महामारियों में देखा गया है। साइमन ने कहा, 'कोविड-19 केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है और इसीलिए बाद में चलकर यह सीधे इस तरह के डिसऑर्डर्स की वजह बनते हैं। लेकिन यह अध्ययन बताता है कि बात इतनी भर नहीं है। यह खतरा पहले हुई बीमारी की वजह से और बढ़ता है।'