कोविड-19 के इलाज से जुड़ी उम्मीदों को एक और झटका लगा है। इस बीमारी के इलाज में कारगर बताए गए एक और एंटीबॉडी ट्रीटमेंट से जुड़े ट्रायल को रोक दिया गया है। खबर है कि अमेरिकी दवा कंपनी रीजेनेरॉन अपने ट्रायल में कोविड-19 के ज्यादा बीमार मरीजों को शामिल करने की प्रक्रिया रोकने की घोषणा की है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे संकेत गया है कि कंपनी द्वारा तैयार किया गया मोनोक्लोनल एंटीबॉडी गंभीर स्तर के कोरोना संक्रमण का इलाज करने में सक्षम नहीं है। अखबार ने कंपनी द्वारा जारी किए गए बयान के हवाले से बताया है कि उसके एक एक्सपर्ट पैनल ने सुझाव दिया है कि कोविड-19 से ग्रस्त जिन लोगों को उच्च प्रवाह वाली ऑक्सीजन या मकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत पड़ रही है, उन्हें एंटीबॉडी ट्रीटमेंट न दिया जाए। पैनल का कहना है कि ऐसे मरीजों के लिए यह ट्रीटमेंट फायदेमंद होने से ज्यादा खतरनाक हो सकता है। हालांकि पैनल ने अस्पताल में भर्ती होने वाले उन मरीजों के लिए ट्रीटमेंट को जारी रखने को कहा है, जो गंभीर रूप से बीमार नहीं हैं, या कहें जिन्हें अतिरिक्त ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है या बहुत कम फ्लो के साथ ऑक्सीजन की जरूरत है। पैनल ने कहा कि ट्रायल के लिए ऐसे संक्रमितों का एनरॉलमेंट जारी रखा जा सकता है।
गौरतलब है कि इससे पहले कोविड-19 के इलाज के लिए एक अन्य मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट तैयार करने वाली अमेरिकी कंपनी इलाई लिली ने घोषणा की थी कि कोविड-19 से जुड़े उसके एक ट्रायल में अब प्रतिभागियों को उसके द्वारा विकसित एंटीबॉडी ट्रीटमेंट नहीं दिया जाएगा। कंपनी ने अमेरिकी सरकार के अधिकारियों द्वारा किए गए एक अध्ययन में उसके एंटीबॉडी को कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी नहीं पाए जाने के बाद यह घोषणा की थी।
कोविड-19 के इलाज के लिए तैयार किए गए इन दोनों चर्चित एंटीबॉडी ट्रीटमेंट की विफलता ने इस थ्योरी को मजबूती दी है कि इस प्रकार का इलाज केवल तभी कारगर है, अगर उसे संक्रमण की चपेट में आने के तुरंत बाद बीमारी की शुरुआत में ही दे दिया जाए। रीजेनेरॉन द्वारा जारी किए गए एक अन्य डेटा से पता चलता है कि कैसे उसके एक अन्य ट्रायल में अस्पताल में भर्ती नहीं होने वाले संक्रमितों या कहें हल्के मरीजों में सिंथैटिक एंटीबॉडी ने वायरल का लेवल उल्लेखनीय ढंग से कम कर दिया था। इसी तरह के परिणाम इलाई लिली ने भी अपने एक अन्य ट्रायल के हवाले से हाल में रिलीज किए थे। यहां बता दें कि इन दोनों कंपनियों ने शीर्ष अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए के समक्ष आवेदन दिया है कि कोविड-19 के इलाज के लिए उनके मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित ट्रीटमेंट को आपातकालीन मंजूरी दी जाए। रीजेनेरॉन ने कहा है कि शुक्रवार को आई खबर का हल्के मरीजों से जुड़े ट्रीटमेंट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट?
मेडिकल जानकारों के मुताबिक, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी रोगाणुओं के खिलाफ शरीर के इम्यून सिस्टम द्वारा पैदा किए गए रोग प्रतिरोधकों के सिंथैटिक वर्जन होते हैं। कोविड-19 महामारी की शुरुआत से कई मेडिकल विशेषज्ञ इलाज के इस तरीके पर जोर देते रहे हैं। इन जानकारों को यकीन है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ ये कृत्रिम एंटीबॉडी कारगर साबित हो सकते हैं। ज्यादातर शोधकर्ता इस बात से सहमत होते दिखते हैं। लेकिन समस्या यह है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का निर्माण एक जटिल और खर्चीली प्रक्रिया है। इन वजहों के चलते इलाज की इस तकनीक को ऐसे किसी स्वास्थ्य संकट के खिलाफ इस्तेमाल करना कठिन है, जिसमें बीमारी के सैकड़ों या हजारों में नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों में ट्रांसमिट होने की संभावना हो। इसके अलावा कई तकनीकी कारण हैं, जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित ट्रीटमेंट के इंप्लिमेंटेशन को मुश्किल बनाते हैं। इनमें एंटीबॉडी का बड़े स्तर पर निर्माण करने के अलावा, सबसे उत्तम या सक्षम एंटीबॉडी डोनर की तलाश करना और उसका रखरखाव जैसे कारण शामिल हैं।