अमेरिकी दवा कंपनी इलाई लिली द्वारा निर्मित कोविड-19 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का ट्रायल सुरक्षा कारणों के चलते अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने सरकार के अधिकारियों की तरफ से टेस्टिंग केंद्रों को भेजे गए ईमेल संदेशों के हवाले से यह जानकारी दी है। अखबार की मानें तो खुद इलाई लिली ने भी ट्रायल को रोके जाने की बाद स्वीकार की है। उसके द्वारा तैयार किए गए एंटीबॉडी को सैकड़ों लोगों पर आजमाया जा रहा था। यह अभी तक साफ नहीं हुआ है कि परीक्षण के दौरान कितने लोग बीमार पड़े हैं और न ही यह पता चला है कि उन्हें कौन सी बीमारी हुई है। खबरों के मुताबिक, इलाई लिली की प्रवक्ता मॉली मैककली ने इस घटना को लेकर कहा है कि कंपनी ने सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए ट्रायल पर रोक लगा दी है। एनवाईटी ने प्रवक्ता के हवाले से बताया है, 'कंपनी के लिए (प्रतिभागियों की) सुरक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।' 

इलाई लिली के इस ट्रायल को अमेरिकी सरकार से समर्थन प्राप्त है और वह इस परीक्षण को स्पॉन्सर भी कर रही है। हाल में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक वीडियो संदेश में रीजेनेरॉन द्वारा निर्मित एंटीबॉडी के अलावा इलाई लिली का नाम भी प्रमुखता से लिया था। इन दोनों कंपनियों को ट्रंप का समर्थन मिला हुआ है। ऐसे में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और डिपार्टमेंट ऑफ वेटेरंस अफेयर्स की कई शाखाएं इलाई लिली के एंटीबॉडी के ट्रायल के लिए प्रतिभागियों का नामांकन करने में लगी हुई थीं। लेकिन मंगलवार को सरकार के कई अधिकारियों ने ट्रायल कर रहे शोधकर्ताओं को एक के बाद एक ईमेल भेजे, जिनमें उन्हें परीक्षण को तुरंत रोकने को कहा गया है।

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इलाई लिली अमेरिका की दूसरी बड़ी दवा कंपनी है, जिसके कोविड-19 के इलाज से जुड़े ट्रायल को रोका गया है। इससे पहले वहां की एक और जानी-मानी दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन (जेएनजे) ने अपने द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट 'जेएनजे-78436735' के तीसरे ट्रायल को अस्थायी रूप से रोक दिया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कंपनी द्वारा किए जा रहे ट्रायल के दौरान एक प्रतिभागी के अज्ञात कारण से बीमार पड़ने के बाद सभी ट्रायलों को अस्थायी रूप से रोकने का फैसला किया गया है। इलाई लिली की तरह जेएनजे के मामले में भी यह अभी साफ नहीं हुआ है कि प्रतिभागी में अस्पष्ट बीमारी के लक्षण वैक्सीन डोज के कारण पैदा हुए या किसी और वजह से। 

क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट?
मेडिकल जानकारों के मुताबिक, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी रोगाणुओं के खिलाफ शरीर के इम्यून सिस्टम द्वारा पैदा किए गए रोग प्रतिरोधकों के सिंथैटिक वर्जन होते हैं। कोविड-19 महामारी की शुरुआत से कई मेडिकल विशेषज्ञ इलाज के इस तरीके पर जोर देते रहे हैं। इन जानकारों को यकीन है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ ये कृत्रिम एंटीबॉडी कारगर साबित हो सकते हैं। ज्यादातर शोधकर्ता इस बात से सहमत होते दिखते हैं। लेकिन समस्या यह है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का निर्माण एक जटिल और खर्चीली प्रक्रिया है। इन वजहों के चलते इलाज की इस तकनीक को ऐसे किसी स्वास्थ्य संकट के खिलाफ इस्तेमाल करना कठिन है, जिसमें बीमारी के सैकड़ों या हजारों में नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों में ट्रांसमिट होने की संभावना हो। इसके अलावा कई तकनीकी कारण हैं, जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित ट्रीटमेंट के इंप्लिमेंटेशन को मुश्किल बनाते हैं। इनमें एंटीबॉडी का बड़े स्तर पर निर्माण करने के अलावा, सबसे उत्तम या सक्षम एंटीबॉडी डोनर की तलाश करना और उसका रखरखाव जैसे कारण शामिल हैं।

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मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज को कैंसर से लेकर आर्थराइटिस जैसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन इनका निर्माण काफी मुश्किल और खर्चीला होता है। इसे इलाई लिली द्वारा बनाए गए एंटीबॉडी के डेवलपमेंट प्रोसेस को जानकर समझा जा सकता है। कोरोना वायरस के खिलाफ मोनोक्लोनल एंटीबॉडी तैयार करने के लिए कंपनी को पहले उन लोगों का ब्लड प्लाज्मा बड़ी मात्रा में एकत्र करना पड़ा, जिन्होंने कोरोना वायरस को मात दे दी थी। इन प्लाज्मा सैंपलों से हजारों एंटीबॉडी निकाले गए। उनमें से कौन सा एंटीबॉडी वायरस के खिलाफ सबसे ज्यादा पावरफुल है, यह पता करने के लिए सभी एंटीबॉडीज के टेस्ट करने पड़े, जोकि एक जटिल प्रक्रिया है। फिर फाइनली एक सक्षम रोग प्रतिरोधक का पता लगाकर उसके जेनेटिक सीक्वेंस को सुनिश्चित करने का काम किया गया। इसके बाद प्राप्त डीएनए को इस जेनेटिक सीक्वेंस के साथ ई कोली नामक बैक्टीरिया में इन्सर्ट किया गया ताकि उसे वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी संग्रह के रूप में तब्दील किया जा सके। इस प्रक्रिया के बाद बैक्टीरिया को स्टेनलेस स्टील से बने एक बड़े टब या टंकी में विकसित होने दिया गया। इस दौरान अध्ययन स्थल को कीटाणुहीन रखा गया और बैक्टीरियल सूप (जीवाण्विक रसा) को लगातार मॉनिटर किया गया ताकि वह किसी अन्य माइक्रोब से दूषित न हो जाए।

एक बार जब पूरा टब बैक्टीरिया से भर गया और उनमें एंटीबॉडी भारी मात्रा में पैदा हो गए तो शोधकर्ताओं ने सूप को अलग करते हुए एंटीबॉडी को बतौर ड्रग इस्तेमाल करने के लिए इकट्ठा कर लिया। बाद में नए ड्रग को पैकेजिंग और लेबलिंग के लिए प्लांट भेजा गया। इस दौरान तमाम कंडीशन्स को कीटाणुओं से मुक्त रखने और एंटीबॉडी को ठंडा बनाए रखने का काम लगातार किया गया। इस पूरे काम में दो से चार हफ्तों का समय लगा। अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खर्चीली प्रक्रिया के दौरान जिन परिस्थितियों में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की देखरेख की गई, उन्हें बरकरार रखने का काम करना होगा ताकि ड्रग के जरिये बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी का निर्माण किया जा सके।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: एक और अमेरिकी कंपनी इलाई लिली के मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का ट्रायल सुरक्षा कारणों के चलते अस्थायी रूप से रोका गया है

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