कोविड-19 संक्रमण से दुनियाभर में अब तक 48 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। भारत में भी अब संक्रमितों का आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है। चीन के वुहान से शुरू हुए इस बीमारी को लगभग 5 महीने बीत चुके हैं लेकिन इसको रोकने के लिए अब तक कोई वैक्सीन या दवाई तैयार नहीं हो सकी है। कई देशों ने वायरस से मुकाबला करने वाले वैक्सीन बनाने का दावा तो किया है, लेकिन यह कितना प्रभावी है और लोगों के बीच कब तक उपलब्ध होगा, कहना मुश्किल है।
वैक्सीन बनाने के इसी क्रम में एक दावा नीदरलैंड स्थित यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी, इरास्मस मेडिकल सेंटर और बॉयोटेक्नोलॉजी कंपनी हार्बर बायोमेड के साथ इजरायल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल रिसर्च की ओर से भी किया गया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने 'मोनोक्लोनल' नामक एंटीबॉडी को सफलतापूर्वक विकसित किया है जो मानव शरीर में सार्स-सीओवी-2 वायरस को बेअसर कर सकता है। इस एंटीबॉडी की जानकारी 'नेचर' नामक एक जर्नल में प्रकाशित की गई है। जर्नल में छपी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह एंटीबॉडी मानव शरीर में सार्स-सीओवी और सार्स-सीओवी-2 वायरसों से मुकाबला करने में सक्षम है।
शोधकर्ताओं ने भले ही एंटीबॉडी की सफलता का दावा किया है लेकिन इंसानों में इसके प्रयोग के लिए आने में अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है। किसी भी नए उपचार पद्धति को मानव प्रयोग में लाने के लिए विस्तृत प्रयोगों के साथ नियामक निकायों की मंजूरी की आवश्यकता होती है। किसी भी उपचार तकनीक की सफलता के मापदंड उसके मानव पर परीक्षणों के परिणाम, विभिन्न स्तर की प्रमाणिकता के साथ बड़े पैमाने पर निर्माण और उत्पादन पर निर्भर करती है।