शोधकर्ताओं ने एक ऐसे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (एमएबी) यानी रोग-प्रतिकारक का पता लगाया है, जो नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकता है। नीदरलैंड स्थित यूट्रैक्ट यूनिवर्सिटी, इरास्मस मेडिकल सेंटर और बायोटेक्नॉलजी कंपनी हार्बर बायोमेड के शोधकर्ताओं की टीम द्वारा किए गए इस शोध को 'नेचर कम्युनिकेशन' पत्रिका ने प्रकाशित किया है। इसके मुताबिक, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज विषाणुओं (वायरस) की कमजोर जगहों (या सतहों) को निशाना बनाते हैं। इससे संक्रामक रोगों के खिलाफ एक ताकतवर ड्रग बनाने की मजबूत संभावना बनती है।
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पत्रिका ने बताया कि कोरोना वायरस को खत्म करने वाले रोग-प्रतिकारक सबसे पहले इसकी वायरल सतह पर मौजूद स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन पर हमला करते हैं। इसी प्रोटीन की मदद से कोरोना वायरस कोशिकाओं के अंदर घुसकर उन्हें संक्रमित करता है।
शोध में शामिल यूट्रैक्ट यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्कॉलर और रिपोर्ट के वरिष्ठ लेखक बेरेंड-जैन बोश ने बताया कि उनकी टीम ने 2002-03 में आए सार्स-सीओवी कोरोना वायरस पर काफी काम किया है। उसी अनुभव की मदद से अब सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस पर शोध किया गया है। बोश ने बताया, 'सार्स-सीओवी के एंटीबॉडीज के (रिसर्च) कलेक्शन से हमने ऐसे एंटीबॉडी की पहचान की, जो कोशिकाओं में सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण को भी खत्म करता है। इस तरह के रोग-प्रतिकारक में संक्रमण को फैलने से रोकने की क्षमता होती है।'
क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज लैबोरेटरी में बनाए गए ऐसे मॉलिक्यूल होते हैं, जो शरीर के इम्यून सिस्टम को एक तरह से बहाल करने का काम करते हैं, उसकी क्षमता बढ़ाते हैं। एक जैसी कोशिकाओं की मदद से तैयार होने वाले ये एंटीबॉडीज किसी रोगाणु की बाहरी सतह पर मौजूद एंटीजन को बांध देते हैं। परिणामस्वरूप, संक्रमण का फैलना रुक जाता है।