वैज्ञानिकों ने हल्के या माइल्ड कोविड-19 के सात प्रकार होने का दावा किया है। उनका यह भी कहना है कि इस प्रकार के कोविड-19 में दस हफ्तों बाद इम्यून सिस्टम में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। इस जानकारी को वैज्ञानिक कोरोना वायरस संक्रमण के मरीजों के ट्रीटमेंट और इसकी वैक्सीन डेवलेपमेंट के लिहाज से महत्वपूर्ण बता रहे हैं। मेडिकल जर्नल एलर्जी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के 109 रिकवर मरीजों और 98 स्वस्थ लोगों को शामिल कर अध्ययन किया था। इसके तहत मरीजों और सामान्य स्वास्थ्य वाले लोगों को अलग-अलग समूहों में विभाजित किया गया था। इसके बाद जांच व विश्लेषण कर पता लगाया कि कोविड-19 के मरीजों वाले समूहों में कई प्रकार के लक्षण दिखाई दिए थे।
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अध्ययन में ऑस्ट्रिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ विएना और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के शोधकर्ताओं ने सात लक्षणों के आधार पर प्रतिभागियों के समूहों का चयन किया था। इनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल थे-
- फ्लू जैसे लक्षणों के साथ बुखार, ठंड लगना, थकान और कफ
- सामान्य सर्दी जुकाम के साथ राइनाइटिस, छींकना, गला सूखना, नाक जमना
- जोड़ों और मांसपेशी में दर्द
- आई एंड म्यूकोसल इन्फ्लेमेशन
- फेफड़ों की समस्या के साथ निमोनिया और सांस में कमी
- आंतों से जुड़ी समस्याएं जिनमें डायरिया, मतली और सिरदर्द शामिल तथा
- सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता का खोना
अध्ययन में पता चला है कि मजबूत इम्यून सिस्टम वाले लोग सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता के खोने से सबसे ज्यादा प्रभावित थे। अध्ययन से जुड़े सहायक लेखक विनफ्राइड पिकल कहते हैं, 'इसका मतलब है कि हम समूहों में शामिल मरीजों और स्वस्थ लोगों के बीच प्राइमरी कोविड-19 की ऑर्गेन-स्पेसिफिक फॉर्म्स में अंतर करने में कामयाब रहे।'
विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोविड-19 बीमारी रिकवर मरीजों के खून में दीर्घकालिक बदलाव कर जाती है, जिन्हें लंबे समय तक डिटेक्ट भी किया जा सकता है। हालांकि इन मरीजों में कई इम्यून सेल्स मजबूती के साथ बन रहते हैं। इनमें सीडी4 और सीडी8 टी सेल कंपार्टमेंट में विकसित हुई मेमरी सेल्स और सीडी8 टी सेल शामिल हैं। इस पर डॉ. पिकल ने कहा, 'इससे संकेत मिलता है कि शुरुआती संक्रमण के हफ्तों बाद भी इम्यून सिस्टम बीमारी के साथ लड़ने में लगा रहता है।'
अध्ययन के मुताबिक, रिकवर मरीजों के खून में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा करने वाले इम्यून सेल्स बढ़े हुए स्तर के साथ पाए गए हैं। बीमारी के कम गंभीर होने के समय जिस मरीज में बुखार जितना ज्यादा था, उसमें वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी के लेवल उतने ही ज्यादा थे। इस पर शोधकर्ताओं का कहना है, 'कुल मिलाकर अध्ययन बताता है कि कोविड-19 से लड़ते हुए ह्यूमन इम्यून सिस्टम इम्यून सेल्स और एंटीबॉडी के कंबाइंड एक्शन के रूप में दोगुनी क्षमता के साथ काम करता है।'
अध्ययन में यह भी पता चला है कि इम्यून सेल्स वायरस की कुछ विशेष गतिविधियों को याद रखने और उसी हिसाब से प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखते हैं। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि उनके अध्ययन के परिणामों से कोविड-19 को बेहतर समझने और इसकी वैक्सीन बनाने में मदद मिल सकती है। उनका कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि इन परिणामों को कोविड-19 की उच्च स्तर की प्रभावी वैक्सीन बनाने के लिए कब इस्तेमाल किया जाता है।