कोविड-19 तेजी से पूरी दुनिया को अपना शिकार बनाता जा रहा है। शोधकर्ता लगातार प्रयास में जुटे हुए हैं जिससे इस बीमारी से निपटने लिए जल्दी से जल्दी वैक्सीन तैयार कर ली जाए। वैक्सीन बनाने के लिए कई सारी कंपनियां प्रयास में लगी हुई हैं।
कोविड-19 के वैक्सीन को बनाने के लिए हाल ही में अमेरिका की वोल्ट्रॉन थेरेप्यूटिक्स इंक और डेलावेयर तथा होथ थेरेप्यूटिक्स एंड वैक्सीन और इम्यूनोथेरेपी सेंटर के बीच वैक्सीन बनाने को लेकर सहयोगिता पर हामी भरी गई है। यह वैक्सीन मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में विकसित एक तकनीक पर आधारित होगी।
जैसा कि किसी वैक्सीन या दवा का सबसे पहले पुष्टि के लिए जानवरों पर प्रयोग किया जाता है लेकिन अभी तक यह वैक्सीन जानवरों के परीक्षण के स्तर तक विकसित नहीं हुई है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस माह के अंत तक इसका परीक्षण और सेफ्टी ट्रायल शुरू किया जा सकता है। इसके परिणाम के आधार पर इसे प्रयोग में लाया जाना शुरू किया जाएगा।
सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन
चूंकि संक्रामक रोगों में वैक्सीन बनाने के लिए समय की पाबंदी होती है, और इसे बहुत जल्दी ही तैयार करने की चुनौती भी है। इसी को देखते हुए इस नई वैक्सीन को सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन की अवधारणा पर विकसित किया जा रहा है।
सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन प्रोटीन नैनोपार्टिकल्स यानी अत्यंत सूक्ष्म कण से बनी होती है। शरीर में प्रवेश करते ही ये एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बनाने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। ये वायरस नहीं होते हैं लेकिन फिर भी शरीर के भीतर इस तरह से संयोजन करते हैं जैसे शरीर में कोई वायरस पहुंच गया हो। ऐसे में हमारा शरीर इन सूक्ष्म कणों के विरोध में एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देता है।
चूंकि इन वैक्सीन में वायरस के न्यूक्लिक एसिड नहीं होते हैं, इसलिए इनसे संक्रमण का डर नहीं होता है। इस वैक्सीन को तुलनात्मक दृष्टि से अधिक सुरक्षित और प्रभावी माना जा रहा है, उनकी तुलना में जो पहले से मौजूद हैं लेकिन कमजोर हैं। इनमें हमेशा ही बीमारी बनने का हल्का-फुल्का खतरा रहता ही है। साथ ही मारे गए वायरस भी सिर्फ एक डोज से मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स नहीं देते हैं।
एक नई लेकिन पुरानी तकनीक
फिलहाल सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन तकनीक का उपयोग वर्तमान में मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल द्वारा किया जा रहा है लेकिन सेल्फ-असेम्बलिंग कणों को 1950 के दशक से ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। सबसे पहले इसे प्लांट वायरस में देखा गया था। इतना ही नहीं हेपेटाइटिस बी के लिए बना पहला टीका भी इस तकनीक के प्रयोग पर आधारित था। अब सेल्फ-असेम्बलिंग करने वाले नैनोकणों की यह तकनीक प्रभावी वैक्सीनों के विकास में अग्रणी है।
कई मामलों में नैनोपार्टिकल्स की संरचना में काफी भिन्नता हो सकती है। वह शुद्ध या मिश्रित सामग्री, सोने और चांदी जैसे धातु या जैविक सामग्री से बने होते हैं जिसमें कृत्रिम रूप से वायरस जैसे कण शामिल होते हैं।
यहां हम आपको बता रहे हैं कि नैनोपार्टिकल दिखता कैसा है: एक वायरस नुमा मजबूत कण जिसकी सतह पर प्रोटीन होता है जो वायरस का एंटीजन बनाता है। (वायरस पर मौजूद प्रोटीन के खिलाफ हमारा शरीर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया करता है)।
मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल द्वारा सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन विकसित करने के लिए जिस विशिष्ट चीज का प्रयोग किया जा रहा है वह है फ्यूजन प्रोटीन। इसमें हीट शॉक प्रोटीन और एविडिन (यह भी एक प्रोटीन है) शामिल किया गया है। वैक्सीन बनाने के लिए बाद में विशिष्ट बायोटिनाइलेटेड इम्युनोजेनिक पेप्टाइड्स (एंटीजन) को इसकी सतह पर शामिल किया जाएगा।
हीट शॉक प्रोटीन एक विशेष प्रकार का प्रोटीन है जो अन्य विभिन्न प्रोटीनों के बीच सामंजस्य बनाने के साथ यह सुनिश्चित करता है कि शरीर में प्रोटीन की मात्रा ठीक अनुपात में हो जिससे वे कार्यात्मक रह सकें। वहीं एविडिन एक प्रोटीन है जिसमें बायोटिन का आकर्षण अधिक होता है, जो वैक्सीन की असेंबली को पूरा करने वाले इम्युनोजेनिक पेप्टाइड्स जुड़ा होता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो वायरस की बाहरी परत प्रोटीन से बनी होती है। वैक्सीन इसी प्रोटीन को शरीर में भेजकर ऐसा एहसास कराता है जैसे शरीर पर कोरोना वायरस ने हमला कर दिया हो। ऐसे में तुरंत शरीर का प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडीज का उत्पादन शुरू कर देता है। इसी आधार पर विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि ये एंटीबॉडी शरीर को वास्तविक कोरोना वायरस से लड़ने में भी मदद कर सकता है।
मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में वैक्सीन एंड इम्यूनोथेरेपी सेंटर के निदेशक डॉ मार्क पॉज़न्स्की ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि वैक्सीन को किस प्रकार से काम करने के उद्देश्य से विकसित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सेल्फ-असेम्बलिंग वैक्सीन परिस्थिति के अनुसार खुद को रूपांतरित कर सकती है। मतलब रोगजनकों के विभिन्न प्रकारों के लिए इस वैक्सीन को उसके आवश्यकता के आधार पर संशोधित किया जा सकता है। फिलहाल इस वैक्सीन का मकसद वैसे हाई-रिस्क लोगों को जल्द से जल्द बचाना है जिन्हें कोविड-19 होने का खतरा सबसे अधिक है।