कोरोना वायरस की वजह से फेफड़ों और हृदय में हुई क्षति समय के साथ ठीक हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी क्लिनिक इन इन्सब्रक के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बाद यह दावा किया है। यह जानकारी कोविड-19 से उबरने वाले लोगों के लिए अच्छा संकेत है। हाल में ऐसी रिपोर्टें आई हैं, जिनमें बताया गया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले ज्यादातर मरीज इसे मात दे देते हैं, लेकिन यह वायरस जाते-जाते शरीर के हिस्सों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर जाता है, विशेषकर फेफड़े और हृदय को। इन रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि यह क्षति लंबे वक्त तक मरीजों को ठीक होने के बाद भी परेशान कर सकती है। ऐसे में इस नए अध्ययन के दावे राहत देते हैं, जिनके मुताबिक, समय के साथ स्वास्थ्य लाभ मिलने या रिहैबिलिटेशन से कोविड-19 से मानव अंगों को हुए डैमेज में सुधार देखने को मिलता है।
(और पढ़ें - बच्चों में कोविड-19 से जुड़ी एमआईएस-सी बीमारी उनके हृदय को लंबे वक्त के लिए क्षतिग्रस्त कर सकती है: शोधकर्ता)
इस संबंध में अध्ययन को हाल में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसायटी इंटरनेशनल कांग्रेस (ईआरएसआईसी) में पेश किया गया था। इसमें मूल्यांकन कर कहा गया कि रिकवरी के दौरान सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने वाले लोगों के फेफड़ों और हृदय में हुई क्षति में सुधार देखने को मिलेगा। शोधकर्ताओं ने सम्मेलन में बताया कि उन्होंने अप्रैल और जून के दौरान संक्रमित हुए 86 मरीजों से मिले परिणामों के आधार पर यह दावा किया है। अध्ययन में 150 से ज्यादा मरीजों को शामिल किया गया था, यह जानने के लिए कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने के बाद शरीर में क्या होता है। इसके तहत वैज्ञानिकों ने मरीजों को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 12 हफ्तों और 24 हफ्तों बाद वापस आकर जांच कराने को कहा। टीम ने क्लिनिकल एग्जामिनेशन, लैबोरेटरी टेस्टिंग, सीटी स्कैन, हार्ट इकोकार्डियोग्राम (ईसीजी) और धमनी रुधिर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का विश्लेषण कर इन मरीजों की हालत का मूल्यांकन किया।
रिपोर्टे के मुताबिक, अध्ययन के छठवें हफ्ते में 65.9 प्रतिशत मरीजों में कोविड-19 के स्पष्ट लक्षण दिख रहे थे। इनमें खांसी और सांस में तकलीफ की समस्या भी शामिल थी। करीब 88 प्रतिशत मरीजों के फेफड़े सीटी स्कैन में डैमेज पाए गए थे। लेकिन डिस्चार्ज होने के 12 हफ्तों बाद 56 प्रतिशत मरीजों के कोविड लक्षणों में सुधार हुआ था और फेफड़ों की हुई क्षति में भी गिरावट देखी गई थी। अध्ययन की शुरुआत में डिस्चार्ज हुए आधे से ज्यादा मरीजों में सांस की कमी और खांसी की शिकायत थी। लेकिन रिकवरी का 12वां हफ्ता आने तक इन लक्षणों में भी कमी हुई थी। उस समय तक 39 प्रतिशत मरीजों में सांस में तकलीफ और 15 प्रतिशत में खांसी की दिक्कत बनी हुई थी। इन परिणामों पर यूनिवर्सिटी की डॉक्टर और अध्ययनकर्ता सबीना सेहानिक ने कहा, 'बुरी खबर यह है कि डिस्चार्ज होने के हफ्तों बाद भी फेफड़ों में गड़बड़ी बनी रहती है। अच्छी बात यह है कि यह गड़बड़ी समय के साथ ठीक होती जाती है। इससे यह भी पता चलता है कि फेफड़ों में खुद को रिपेयर करने का अपना मकैनिज्म होता है।'
अध्ययन के दौरान टीम ने सीटी स्कैन रिपोर्टों में पाया कि डिस्चार्ज होने के बाद छठवें हफ्ते तक मरीजों का लंग डैमज आठ पॉइंट था जो 12वें हफ्ते तक चार पॉइंट तक कम हो गया था। वहीं, फेफड़े में फ्लूड और इनफ्लेमेशन की वजह से उसमें जो सफेद धब्बे से आ गए थे, उनमें भी सुधार देखने को मिला था। छठवें हफ्ते में 88 प्रतिशत मरीजों के फेफड़ों में ग्राउंड ग्लास पैचेज थे, जो 12वें हफ्ते तक 56 प्रतिशत मरीजों में ही रह गए। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने बीमारी के ठीक होने के बाद के पोस्ट-एक्यूट फेज में किसी भी मरीज में कोरोना वायरस से जुड़े गंभीर हर्ट डिसफंक्शन नहीं देखे। इन तमाम परिणामों पर डॉ. सबीना का कहना है, 'ये परिणाम कोविड-19 के संक्रमण से बीमार हुए लोगों के बेहतर फॉलोअप केयर के महत्व को दिखाते हैं।'
वहीं, ईआरएसआईसी के सम्मेलन में ही फ्रांस के शोधकर्ताओं ने एक अलग अध्ययन के परिणाम पेश करते हुए बताया कि कैसे कोविड-19 से उबरने के बाद रिकवरी की शुरुआत में ही फेफड़ों से संबंधित स्वास्थ्य लाभ देने से मरीजों के लंग्स की क्षमता में सुधार पाया गया, मांसपेशी में मजबूती आई, थकान दूर हुई और डिप्रेशन तथा एंग्जाइटी जैसे रिस्क फैक्टर्स में भी कमी आई।
इन परिणामों पर अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और फ्रांस की ग्रोनोबल एल्प्स यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्टूडेंट यारा अल चिखाने कहते हैं, 'यह बताता है कि डॉक्टरों को जल्दी से जल्दी मरीजों का रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम शुरू कर देना चाहिए। मरीजों को कम से कम समय तक असक्रिय रहना चाहिए और खुद को मोटिवेट करते हुए पल्मनरी रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम में शामिल होना चाहिए। अगर उनके डॉक्टर इसे सुरक्षित पाएं तो मरीजों को फिजिकल थेरेपी आधारित व्यायाम करने चाहिए।'