नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 केवल आम लोगों को अपना शिकार नहीं बना रहा है, बल्कि दुनियाभर में कई डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी इसकी चपेट में आए हैं। भारत में भी ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें कोविड-19 बीमारी ने डॉक्टरों को संक्रमित किया है। उनकी और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि वे पर्सनल प्रोटेक्शन इंक्वपमेंट यानी पीपीई की कमी से जूझ रहे हैं। इससे उनके कोरोना वायरस से बीमार पड़ने की संभावना ज्यादा हो जाती है। इसे देखते हुए सरकार के स्तर पर लोगों से अपील की जा रही है कि वे एन95 और अन्य सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल कम करें, क्योंकि इस समय इनकी सबसे ज्यादा जरूरत स्वास्थ्यकर्मियों को है।
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पीपीई को लेकर देशभर के डॉक्टरों की निराशा के बीच केरल में एक रचनात्मक पहल सामने आई है। दरअसल, दक्षिण कोरिया से प्रभावित होकर केरल राज्य के एर्नाकुलम जिला प्रशासन ने ब्लड सैंपल इकट्ठा करने का नया, कारगर और सुरक्षित तरीका ढूंढ निकाला है। खबरों के मुताबिक, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिल कर जिला प्रशासन ने अलग-अलग जगहों पर ब्लड सैंपल इकट्ठे करने के लिए विशेष बूथ या कैबिन तैयार किए हैं। इन्हें 'वॉक-इन सैंपल कियॉस्क' (डब्ल्यूआईएसके या विस्क) नाम दिया गया है। बताया गया है कि इन कैबिनों की मदद से स्वास्थ्य कर्मचारी पूरी सुरक्षा के साथ केवल दो मिनट में संदिग्ध रूप से बीमार व्यक्ति का खून ले सकते हैं।
कैसे लिया जाता है सैंपल?
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कोरोना संकट के बीच देश में लागू किया गया इस तरह का यह पहला मॉडल है। इसके तहत बनाए गए कैबिन में स्वास्थ्यकर्मी और संदिग्ध मरीज के बीच एक शीशा होता है। शीशे में रबड़ के दो बड़े दस्ताने या ग्लव्स फिक्स होते हैं, जिनकी मदद से स्वास्थ्यकर्मी आसानी से संदिग्ध का ब्लड सैंपल ले लेता है। इसके लिए संदिग्ध व्यक्ति को केवल शीशे के सामने रखी कुर्सी पर बैठना होता है। इसके बाद स्वास्थ्यकर्मी दस्तानों के जरिये हाथ बाहर निकालता है और संदिग्ध से किसी भी प्रकार के शारीरिक संपर्क के बिना ही उसका सैंपल ले लेता है।
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क्या हैं फायदे?
'विस्क' के तहत ब्लड सैंपल लेने का सबसे पहला फायदा यही है कि स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई पहनने की जरूरत नहीं पड़ती, जिनकी कीमत इन दिनों बढ़ती जा रही है। वहीं, एक और बड़ा फायदा यह है कि कैबिन में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। बस एहतियात बरतते हुए हरेक सैंपल के बाद दूसरा सैंपल लेने से पहले रबड़ के दस्तानों और कैबिन के शीशे को कीटनाशक से साफ कर दिया जाता है। रिपोर्टों के मुताबिक, स्थानीय प्रशासन का कहना है कि 'विस्क' मॉडल के तहत इस तरह खून के नमूने लेने से स्वास्थ्यकर्मियों पर से संक्रमित होने का दबाव तो हटता ही है, साथ ही स्थानीय स्तर पर जाकर खून लेना भी संभव हो जाता है, जबकि अस्पताल में रह कर ऐसा नहीं हो पाता।
'वॉक-इन सैंपल कियॉस्क' को वास्तविक रूप देने का श्रेय कलामसेरी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों और जिले के अधिकारियों को जाता है। इस टीम में रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर, अतिरिक्त जिला मेडिकल अधिकारी, जिला सहायक नोडल अधिकारी और कॉलेज के एक शीर्ष अधिकारी शामिल थे। एर्नाकुलम के जिलाधिकारी का कहना है कि 'विस्क' के जरिये पीसीआर और रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि हरेक कैबिन को सेटअप करने की लागत 40,000 रुपये है। इसके लिए स्थानीय विभागों और निजी क्षेत्र के लोगों से आगे आने की अपील की गई है।
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