बीते अगस्त महीने तक भारत में कोरोना वायरस के सात करोड़ से ज्यादा मामले होने की आशंका जताई गई है। देश की सर्वोच्च मेडिकल रिसर्च एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपने दूसरे राष्ट्रीय सेरो सर्वे के परिणामों के आधार पर यह जानकारी दी है। इसके मुताबिक, बीते अगस्त महीने तक देश में सात करोड़ 43 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके थे। शहरी इलाकों के स्लम एरिया में सेरो प्रेवलेंस ज्यादा पाया गया है। यानी झोपड़ी-पट्टी में रहने वाली आबादी वायरस की ज्यादा चपेट में आई है। इसके बाद शहरी इलाकों के नॉन-स्लम और ग्रामीण इलाके के लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं।
इस सेरो सर्वे के परिणाम लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। इसके मुताबिक, सर्वे में भारत की दस प्रतिशत से भी कम आबादी कोरोना वायरस की चपेट में पाई गई है। हालांकि संख्या में यह आंकड़ा करोड़ों में बैठता है। लेकिन भारत की जनसंख्या इतनी ज्यादा है कि सात करोड़ से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने की आशंका के बाद भी यहां 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग वायरस के खतरे में है। इस बारे में रिपोर्ट कहती है, 'हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने, प्राकृतिक रूप से या वैक्सीनेशन से, तक अधिकतर भारतीय राज्यों में संक्रमण का ट्रांसमिशन जारी रहेगा।'
रिपोर्ट की मानें तो भारत में हर नौ लोगों में से एक, जिसने कोविड-19 के लक्षणों की रिपोर्ट नहीं दी, में सार्स-सीओवी-2 आईजीजी एंटीबॉडी हो सकते हैं, जो भारत की आम आबादी में असिंप्टोमैटिक सेरोकन्वर्जन का संकेत देता है। रिपोर्ट कहती है, 'हमारे आंकड़े वायरस की चपेट में नहीं आने वाले और बिना लक्षण वाले लोगों की भी टेस्टिंग करने की रणनीति का समर्थन करते हैं। हमने पाया है कि केवल तीन प्रतिशत सेरोपॉजिटिव लोगों ने कोविड-19 के लक्षण होने की रिपोर्ट की है। इससे यह बात रेखांकित होती है कि लक्षण वाले मामलों की टेस्टिंग सीमित है, लिहाजा यूनिवर्सिल प्रिवेंशन मेथड महत्वपूर्ण हो जाते हैं।'
सेरोलॉजिकल सर्वे क्या है?
किसी रोगाणु या एंटीजन के खिलाफ मानव शरीर का इम्यून सिस्टम जब काम करना शुरू करता है तो इससे संबंधित रोगाणु के संक्रमण को खत्म करने वाले एंटीबॉडीज का निर्माण होता है। ये एंटीबॉडीज या रोग प्रतिरोधक स्वयं को रोगाणुओं से अटैच कर उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं। सेरोलॉजिकल टेस्ट शरीर में इन्हीं एंटीबॉडी की मौजूदगी की पुष्टि के लिए किया जाने वाला परीक्षण है। यह टेस्टिंग जब बड़े पैमाने पर अंजाम की जाती है, यानी जब किसी अभियान के तहत सैकड़ों-हजारों लोगों के ब्लड टेस्ट लेकर उनमें किसी संक्रामक रोग के खिलाफ पैदा हुए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है तो उसे सेरोलॉजिकल या सेरो सर्वे कहते हैं। ये सर्वे एंटीबॉडी के अलावा एंटीजन की पहचान करने के लिए भी किए जाते हैं।