कोविड-19 के मरीजों की मॉनिटरिंग कर रहे वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यून रेस्पॉन्स को लेकर उत्साहजनक संकेत देखने को मिल रहे हैं। अलग-अलग अध्ययनों के हवाले से इन वैज्ञानिकों का कहना है कि महीनों से मरीजों की निगरानी करने के बाद अब कोविड-19 के खिलाफ संक्रमितों के शरीर में मजबूत और दीर्घकालिक इम्यूनिटी देखने में आई है। इन मेडिकल विशेषज्ञों की मानें तो कोविड-19 के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में भी इस तरह की इम्यूनिटी देखने को मिली है, जोकि हाल में सामने आए कुछ अध्ययनों के परिणामों के विपरीत है।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई जानी-मानी विज्ञान और मेडिकल पत्रिकाएं कोरोना वायरस से जुड़े इम्यून रेस्पॉन्स के सबूत मिलने के दावों की समीक्षा कर रही हैं। इनमें 'नेचर' और 'सेल' जैसी चर्चित और प्रतिष्ठित पत्रिकाएं भी शामिल हैं। नेचर पत्रिका की समीक्षा में शामिल वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट और अध्ययन की लेखिका मैरियन पेपर ने कहा है, 'बिल्कुल इसी चीज की उम्मीद की जाती है। एक संपूर्ण रक्षात्मक इम्यून रेस्पॉन्स के सारे गुण अब देखने को मिल रहे हैं।' वहीं, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट स्मिता अय्यर ने कहा, 'यह काफी ज्यादा भरोसेमंद है। इससे हर्ड इम्यूनिटी के साथ-साथ वैक्सीन को लेकर भी उम्मीद पैदा होती है।'
वहीं, सेल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर अखबार ने बताया है कि वैज्ञानिक नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 पर हमला करने वाले टी सेल को कोविड-19 से रिकवर हुए मरीजों के शरीर से आइसोलेट करने में कामयाब हो गए हैं। गौरतलब है कि किसी बीमारी के खिलाफ दीर्घकालिक इम्यूनिटी विकसित होने के लिए टी सेल और बी सेल जैसी महत्वपूर्ण रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं का बनना बेहद जरूरी माना जाता है, क्योंकि संबंधित रोग के खिलाफ इम्यून सिस्टम की मेमरी जनरेट करने में इन कोशिकाओं की भूमिका सबसे अहम होती है।
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एनवाईटी के मुताबिक, लैट टेस्ट के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि जब कोरोना वायरस के खिलाफ पैदा हुए टी सेल्स को वायरस के टुकड़ों के जरिये उत्तेजित किया गया तो उनमें से वायरस से लड़ने के साफ संकेत मिले। इन कोशिकाओं ने अपनी कॉपियां बनाते हुए वायरस के खिलाफ खुद की सेना तैयार कर ली। यहां उल्लेखनीय बात यह है कि वैज्ञानिकों को ऐसे परिणामों उन मरीजों के सैंपलों से भी मिले हैं, जिनमें कोरोना वायरस हल्के लक्षण ही दिखे थे।
हालांकि शोधकर्ता अभी यह बता पाने की स्थिति में नहीं है कि ये मजबूत और दीर्घकालिक इम्यून रेस्पॉन्स वास्तव में कितने समय तक बने रहेंगे। फिर भी कई विशेषज्ञों ने इनसे जुड़े डेटा का स्वागत किया है। उनका कहना है कि इससे पता चलता है कि कोरोना वायरस की चपेट में आने पर शरीर के उससे बचे रहने की काफी संभावना है। एरिजोना यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट और एक अध्ययन की लेखिका डॉ. दीप्ता भट्टाचार्य कहती हैं कि वायरस के इम्यून रेस्पॉन्स पैदा होने से जुड़ी चीजें उनकी उम्मीद के मुताबिक ही हो रही हैं।
वहीं, वायरस की चपेट में फिर आने यानी रीइन्फेक्शन में सुरक्षा मिलेगी या नहीं, इसे लेकर डॉ. पेपर का कहना है, 'वायरस की चपेट में फिर से आने वाले लोगों में से ज्यादातर के बचने के सबूत मिलने तक यह दावा नहीं किया जा सकता कि रीइन्फेक्शन के खिलाफ सुरक्षा मिलेगी या नहीं। लेकिन नए परिणामों से यह चिंता कम होने में जरूर मदद मिल सकती है कि वायरस इम्यून सिस्टम को उलझन में डालकर लोगों को फिर से बीमारी के प्रति संवेदनशील बना सकता है।'