कोविड-19 से उबरने वाले मरीजों में चार महीने बाद भी एंटीबॉडी मिलने का दावा किया गया है। आइसलैंड में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी निकल कर आई है। प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) में मंगलवार को प्रकाशित हुए इस अध्ययन के परिणाम उन दावों को चुनौती देते हैं, जिनमें कहा जाता रहा है कि कोरोना वायरस से ठीक होने वाले लोगों में एंटीबॉडी दो से तीन महीनों में लुप्त हो जाते हैं। कुछ अध्ययनों में भी यह बात कही गई थी, जिसके बाद कोविड-19 के खिलाफ पैदा होने वाली इम्यूनिटी की क्षमता पर सवाल खड़े हो गए थे। लेकिन एनआईजेएम की रिपोर्ट कम से कम एंटीबॉडी के बने रहने की संभावना का समर्थन करती है। इतने समय तक शरीर में कायम रहने के बाद रोग प्रतिरोधक रीइन्फेक्शन से बचाने की क्षमता रखते हैं या नहीं, यह अलग जांच का विषय है।
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30 हजार लोगों पर हुई स्टडी
आइसलैंड में कितने लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और उनमें से कितनों ने कोविड-19 को मात दी है, इसका अनुमान लगाने के लिए वहां के वैज्ञानिकों ने 30 हजार से ज्यादा आइसलैंड नागरिकों के एंटीबॉडी लेवल का पता लगाया। जांच के दौरान जो परिणाम निकल कर आए, उससे पता चला कि आइसलैंड की एक प्रतिशत आबादी सार्स-सीओवी-2 की चपेट में आ चुकी है। इनमें से 56 प्रतिशत के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिये हो चुकी है। वहीं, 14 प्रतिशत का औपचारिक डायग्नॉसिस नहीं हुआ है। हालांकि वायरस की चपेट में आने के बाद वे क्वारंटीन में गए थे। बाकी 30 प्रतिशत लोगों के एंटीबॉडी टेस्ट से पता चला कि वे पहले संक्रमण से प्रभावित रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि पीसीआर टेस्टिंग में शामिल रहे 1,215 संक्रमित ऐसे थे, जिनमें से 91 प्रतिशत के एंटीबॉडी डायग्नॉसिस के दो महीनों तक बढ़े थे और बाद में स्थिर हो गए। हालांकि यह बात उल्लेखनीय है कि एनईजेएम में प्रकाशित अध्ययन में केवल एक ही देश के लोगों में एंटीबॉडी होने और उनके बने रहने पर फोकस किया गया है। अन्य देशों की आबादी में इस तरह के परिणाम आइसलैंड से अलग हो सकते हैं। फिर भी अध्ययन करने वाली कंपनी डीकोड जेनेटिक्स के चीफ एग्जिक्यूटिव कैरी स्टेफनसन का मानना है कि उनकी स्टडी के परिणाम यह तो सुनिश्चित करते ही हैं कि कैसे ध्यानपूर्वक एंडीबॉडी टेस्ट करने से संक्रमण के फैलाव की सही जानकारी मिल सकती है।
बहरहाल, अध्ययन के साथ लिखे गए एडिटोरियल में बतौर सावधानी यह कहा गया है कि डायग्नॉसिस के चार महीनों बाद भी मरीजों में एंटीबॉडी मिलने से यह साफ नहीं हुआ है कि वे एक बार संक्रमित हो चुके रिकवर मरीजों को रीइन्फेक्शन से बचाने में सक्षम हैं या नहीं। हालांकि कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन के दायरे को जानने के लिए सर्वे आधारित एंटीबॉडी टेस्टिंग एक किफायती विकल्प जरूर बताई गई है।