कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से बचाने वाले एंटीबॉडी रीइन्फेक्शन से भी बचा सकते हैं। अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक छोटे समुद्री जहाज में कोरोना वायरस फैलने के मामले से जुड़े तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद यह दावा किया है। मामला अमेरिका के सिऐटल शहर का है। यहां के समुद्री तट से बीते मई महीने में एक जहाज रवाना हुआ था। बाद में पता चला कि जहाज में कोरोना वायरस ने बड़ी संख्या में (85 प्रतिशत) क्रू सदस्यों को संक्रमित किया था। जहाज की रवानगी से पहले उसके 122 क्रू सदस्यों का वायरल टेस्ट और सेरोलॉजिकल टेस्ट किया गया था। बाद में पता चला कि उनमें से तीन के शरीर में कोविड-19 से बचाने वाले एंटीबॉडी पहले से बड़ी मात्रा में मौजूद थे। यानी कि वे पहले ही वायरस की चपेट में आ चुके थे और रिकवर हो गए थे।
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वापस लौटने पर क्रू सदस्यों के ज्यादातर सदस्य सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित पाए गए। लेकिन इन तीन सदस्यों को वायरस दोबारा संक्रमित नहीं कर पाया। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 के जिन मरीजों के शरीर में कोरोना वायरस को खत्म करने वाले रोग प्रतिरोधक यानी एंटीबॉडी 'उच्च मात्रा में' विकसित होते हैं, वे इस वायरस के दूसरी बार चपेट में आने पर भी सुरक्षित रह सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने लिखा है, 'इन्सानों में प्रतिरक्षात्मक सहसंबंधों का प्रमाण मिलने के बाद सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ वैक्सीन विकसित करने का काम बड़ी सुगमता के साथ पूरा होगा। प्रोटेक्टिव इम्यूनिटी को लेकर अभी तक सामने आई स्टडीज एनीमल मॉडल पर आधारित थीं। इन्सानों पर आजमाते हुए इसे अभी तक उनके लिए सुरक्षित करार नहीं दिया गया था।'
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शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण में पाया है कि तीन क्रू सदस्यों के शरीर में कोरोना वायरस से बचाने वाले एंटीबॉडी उच्च मात्रा में मौजूद थे। ये तीनों सदस्य बाद में भी वायरस से अप्रभावी रहे, जबकि जहाज में संक्रमण हाई अटैकिंग रेट के साथ मौजूद था और 122 सदस्यों में से कम से कम 104 को संक्रमित किया था। इस जानकारी के सामने आने के बाद शोधकर्ताओं ने बताया, 'इन तीनों क्रू सदस्यों में से किसी एक में भी जहाज में वायरस फैलने के दौरान वायरल इन्फेक्शन या उसका एक भी लक्षण नहीं दिखा। इससे यह पता चलता है कि पहले संक्रमण में बने न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी रीइन्फेक्शन के खिलाफ सुरक्षा दे सकते हैं।' बता दें कि वैज्ञानिकों का यह विश्लेषण अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। फिलहाल इसे मेडआरकाइव पर जाकर पढ़ा जा सकता है।
इस अध्ययन को लेकर अन्य वैज्ञानिकों की अलग-अलग राय सामने आई है। कुछ ने केवल तीन लोगों में न्यूट्रलाइजिंग एंडीबॉडी पाए जाने को नाकाफी बताया है, तो कुछ ने कहा है कि भले ही यह संख्या कम है लेकिन इन्सानों के जरिये रीइन्फेक्शन से बचाने वाले एंटीबॉडी की पुष्टि होना अपनेआप में महत्वपूर्ण है। अध्ययन के शोधकर्ताओं ने भी कहा है कि वैज्ञानिक सिद्धांतों की वजह से अभी तक ऐसे टेस्ट नहीं किए गए हैं, जिनमें प्रोटेक्टिव एंटीबॉडी को इन्सानों पर आजमा कर यह पुष्टि की जाए कि वे वाकई में कोरोना वायरस से सुरक्षा दे सकते हैं। लेकिन सिऐटल वाले मामले में यह बात प्राकृतिक रूप से सामने आई है।
वहीं, कुछ ने कहा है कि इस अध्ययन से यह साबित नहीं होता कि एक बार संक्रमण होने के बाद व्यक्ति दोबारा उसकी चपेट में नहीं आएगा। दरअसल, टेस्ट के दौरान छह लोगों में पहले से एंटीबॉडी होने की पुष्टि हुई थी। लेकिन केवल तीन के रोग प्रतिरोधक ही वायरस को फिर से फैलने में सक्षम पाए गए। बाकी तीन लोगों के शरीर में एंटीबॉडी इतनी संख्या में मौजूद नहीं थे, लिहाजा वे जहाज के वापस लौटने पर टेस्ट में फिर पॉजिटिव पाए गए।