एक हालिया शोध में यह पता चला है कि कोविड-19 बीमारी गंभीर और हल्के मरीजों में अंतर किए बिना इम्यून सिस्टम की सबसे महत्वपूर्ण कोशिकाओं टी सेल्स को सक्रिय करती है। कई अध्ययनों में बताया गया है कि मेर्स, सार्स और इंफ्लूएंजा जैसी बीमारियों की तरह कोविड-19 में भी इम्यून सिस्टम की ये कोशिकाएं बीमारी से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाती हैं। हालांकि गंभीर और हल्के कोरोना मरीजों में एंटीबॉडी और टी सेल की क्षमता को लेकर अंतर किया जाता रहा है। कुछ शोधों के हवाले से यह कहा गया है कि कोरोना वायरस के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में एंटीबॉडी कुछ समय बाद खत्म हो जाते हैं। हालांकि कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी की प्रतिक्रिया और उसके स्थिरता को लेकर जानकारों की अलग-अलग राय जानने को मिलती है।
ऐसे में नए शोध में कोविड-19 के स्वस्थ मरीजों (हल्के और गंभीर) के इम्यून सिस्टम की जांच कर कोरोना वायरस के संबंध में इम्यूनिटी को समझने की कोशिश की गई है। साथ ही, यह भी जानने का प्रयास किया गया है कि बीमारी की गंभीरता के लिहाज से इम्यूनिटी किस तरह काम करती है। इसके लिए कोविड-19 को मात देने वाले पांच गंभीर और चार हल्के मरीजों के इम्यून सिस्टम के टी सेल और बी सेल पर फोकस किया गया।
'सिग्नल ट्रांसडक्शन एंड टार्गेटिड थेरेपी' नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने स्वस्थ कोविड मरीजों के उन वंशाणुओं की जांच की जो बी और टी सेल रिसेप्टर के अलग-अलग पैटर्न और प्रेफ्रेंस से जुड़े फैसले लेने का काम करते हैं। इससे शोधकर्ताओं ने जाना कि कोविड-19 के हल्के और गंभीर दोनों मरीजों में विशेष प्रकार के क्लोनोटाइप होते हैं। इनमें आईजीएचवी वंशाणु परिवार के जीन्स होते हैं। वायरस के खिलाफ पैदा हुए बी सेल रिसेप्टर में वीजे श्रेणी वाले वंशाणु परिवार के जीन्स भी पाए गए हैं। स्वस्थ लोगों के बी सेल एंटीबॉडी में बी सेल क्लोन्स का होना दुर्लभ होता है, लेकिन कोविड-19 से उबरे एक गंभीर मरीज के शरीर में इनकी तादात जरूरत से ज्यादा पाई गई। इन मरीजों में इस वंशाणु परिवार के चार सदस्य जीन्स आईजीएवी3-23, आईजीएचवी3-48, आईजीएचवी1-2 और आईजीएचवी4-34 की मात्रा ज्यादा पाई गई।
आईजीएचवी और आईजीएचजे वंशाणु समूह के आम जीन्स के आधार पर शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के मरीजों में गुच्छों के रूप में एंटीबॉडी सीक्वेंस का पता लगाया है। सभी मरीजों का डेटा मिलाकर पता चला कि उनमें 19 आईजीजी और 25 आईजीए एंटीबॉडी थे। इससे आगे की जांच में यह साफ हुआ कि कोविड-19 के हल्के और गंभीर मामलों में इम्यूनिटी एक खास पैटर्न के तहत काम करती है।
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शोधकर्ताओं ने पाया है कि रिकवर हो चुके कोविड-19 मरीजों के टी सेल की कंपोजीशन में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ था, लेकिन सेल्स मेमरी से जुड़ा एक सबसेट (सीडी8) सभी मरीजों में पाया गया। इससे यह संकेत गया कि कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रभाव में इस सबसेट वाले सेल्स प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं। सीडीएट+ टर्मिनल इफेक्टर नाम के एक और सबसेट की मात्रा ज्यादा पाई गई, खासकर गंभीर संक्रमण वाले मामलों में। टी सेल के रूप में ये साइटोटॉक्सिक सेल्स (सीडी4 और सीडी8 टीटीई तथा सीडी8 टीईएम) मरीजों के शरीर में क्लोन के रूप में फैले हुए थे।
वहीं, झिल्लीदार टी सेल्स की संख्या हल्के और गंभीर दोनों ही मरीजों में ही काफी कम पाई गई। इससे यह संकेत मिला कि शायद इस कारण कोविड-19 के मरीजों का इम्यून सिस्टम बीमारी से उबरने के बाद शुरुआती फेज में पूरी तरह रिकवर नहीं होता। ऐसा अन्य प्रकार की वायरल कंडीशन में भी होता है। वैज्ञानिकों ने यह भी जाना कि कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार हुए लोगों के शरीर में प्लाज्माब्लास्ट हुए थे, जिससे पता चला है कि हल्के मरीजों की तुलना में उनके शरीर ने वायरस के खिलाफ ज्यादा मजबूत एंटीबॉडी रेस्पॉन्स दिया है। इससे यह भी मालूम हुआ कि इन गंभीर मरीजों की टी सेल मेमरी, हल्के मरीजों की तुलना में बेहतर थी।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकला कि हल्के और गंभीर कोविड-19 मरीजों के सेल्युलर और ह्यूमोरल इम्यून रेस्पॉन्स अलग-अलग हो सकते हैं, जिनका संबंध बीमारी के अलग-अलग स्तर से हो सकता है। संक्रमण के प्रभाव में इम्यून रेस्पॉन्स में विशेष प्रकार के बदलाव हो सकते हैं, जिसमें रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं अलग-अलग वितरण और पैटर्न के तहत काम करती हैं। अध्ययन में यह साफ हुआ है कि बीमारी को मात देने वाले गंभीर मरीजों का इम्यून रेस्पॉन्स हल्के मरीजों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत और स्थिर होता है। रिकवर मरीजों की जांच से पता चला है कि उनमें बीमारी जितनी गंभीरता से फैली, उनके शरीर के ह्यूमोरल टी सेल्स ने उतनी मजबूती से उसके खिलाफ रेस्पॉन्स दिया। साथ ही सभी मरीजों में मेमरी टी सेल्स से जुड़े तीन बड़े गुच्छों के मिलने से यह भी साफ हुआ कि सभी प्रकार के कोविड-19 मरीज कोरोना वायरस के खिलाफ अडैप्टिव इम्यूनिटी विकसित करते हैं।