यह जानकारी अब सभी को है कि नया कोरोना वायरस पुरुषों के लिए ज्यादा घातक और जानलेवा है। कोविड-19 महामारी के दौरान महिलाएं इस वायरस के संक्रमण से लड़ने और उसे मात देने में ज्यादा सक्षम दिखी हैं। लेकिन इसकी वजह क्या है? इस सवाल के जवाब में कई अध्ययन और तर्क सामने आते रहे हैं। इस सिलसिले में एक नया अध्ययन आया है, जिसमें लिंग के आधार पर इम्यून रेस्पॉन्स का आंकलन किया गया है। इस आधार पर जो निष्कर्ष निकाला गया वह यह है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मजूबत इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती हैं या पुरुष महिलाओं के मुकाबले कमजोर इम्यून रेस्पॉन्स देते हैं।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक, जानी-मानी विज्ञान व मेडिकल पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में कहा गया है कि पुरुषों, विशेष तौर पर 60 साल से उम्र वाले, को कोरोना वायरस के संक्रमण से खुद को बचाने के लिए वैक्सीनों पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा निर्भर रहना पड़ सकता है। इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले याले यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट अकीको इवासाकी का कहना है कि पुरुषों में कोरोना वायरस के इन्फेक्शन के खिलाफ पर्याप्त इम्यून रेस्पॉन्स साफ तौर पर जनरेट नहीं हो पा रहा है।
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इम्यून सिस्टम की चुनौतियों और उनसे जुड़े लैंगिक अंतर को दर्शाते इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि महिलाओं का इम्यून रेस्पॉन्स पुरुषों से ज्यादा तेज और मजबूत होता है, क्योंकि उनका शरीर ही उन रोगाणुओं से लड़ने के लिए बना है, जिनसे अजन्मे या नवजात बच्चों को खतरा होता है। हालांकि इम्यून सिस्टम का लंबे वक्त तक हाई अलर्ट पर रहना महिलाओं के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। इस समस्या को हम ऑटोइम्यून डिसीज के रूप में जानते हैं, जिसमें इम्यून रेस्पॉन्स जरूरत से ज्यादा सक्रियता दिखाते हुए अन्य प्रकार से नुकसान कर सकते हैं। महिलाओं में यह समस्या पुरुषों से ज्यादा होती हैं। लेकिन अभी इस समस्या को एक तरफ रखते हुए केवल कोविड-19 की बात करते हैं।
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एनवाईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, नेचर में प्रकाशित अध्ययन के लिए डॉ. इवासाकी की टीम ने ऐसे 17 पुरुषों और 22 महिलाओं के इम्यून रेस्पॉन्स का विश्लेषण किया, जो कोरोना वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद अस्पताल में भर्ती हुए थे। टीम ने हर तीन से सात दिनों में इन लोगों के खून, नेजल स्वैब, सलाइवा, यूरीन और मल के सैंपल इकट्ठा किए। बता दें कि अध्ययन में केवल उन्हीं लोगों को शामिल किया गया था, जिन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ नेचुरल इम्यून रेस्पॉन्स दिया था, न कि किसी ड्रग या वेंटिलेटर पर रखे जाने के बाद उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ था। हालांकि अध्ययन से अलग अतिरिक्त 59 पुरुषों और महिलाओं का भी विश्लेषण किया गया था, जिन्हें इस क्राइटेरिया से बाहर रखा गया था। कुल मिलाकर वैज्ञानिकों ने पाया कि महिलाओं के शरीर ने वायरस को मारने की क्षमता रखने वाले टी सेल्स का ज्यादा उत्पादन किया।
वहीं, पुरुषों में टी सेल्स की सक्रियता कम दिखाई दी, जिसका संबंध उनके ज्यादा बीमार पड़ने से था। यह भी साफ हुआ कि पुरुषों की उम्र जितनी ज्यादा होगी, उनके टी सेल रेस्पॉन्स उतने ही कमजोर होंगे। इस बारे में डॉ. इवासाकी ने कहा, 'उम्र के साथ उनकी (पुरुष) टी सेल को भड़काने की क्षमता खोती जाती है। आप ऐसा उन लोगों के मामले में देख सकते हैं, जिन्होंने बीमारी के खिलाफ कमजोर इम्यून रेस्पॉन्स दिया।' रिपोर्ट में महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमता पर चर्चा करते हुए जर्मनी की यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर हैमबर्ग-एपनडॉर्फ के इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. मार्कस ऑल्टफेल्ड कहते हैं, 'आप कल्पना कर सकते हैं कि युवाओं या कहें युवा महिलाओं के लिए (कोविड-19 की) वैक्सीन का एक शॉट ही काफी होगा, जबकि ज्यादा उम्र के पुरुषों को तीन वैक्सीन शॉट की जरूरत पड़ सकती है।' डॉ. ने आगे कहा, 'जिन महिलाओं की उम्र ज्यादा, यहां तक कि जिनकी आयु काफी ज्यादा है, वे भी वायरस के खिलाफ अच्छा रेस्पॉन्स दे रही हैं।'