नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 की पहचान हुए आठ महीने का समय गुजर गया है। दुनिया के लिए यह वायरस नया है। लेकिन हो सकता है कि आपके शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए यह वायरस जाना पहचाना हो। एक हालिया अध्ययन में यह बताया गया है कि आबादी के एक बड़ा हिस्से की इम्यूनिटी की सबसे महत्वपूर्ण कोशिका टी सेल नए कोरोना वायरस से पहले कभी भी सामना हुए बिना भी इसे पहचान सकती है। अध्ययन में कहा गया है कि कोई 20 से 50 फीसदी आबादी के इम्यून सिस्टम में ये कोशिकाएं सार्स-सीओवी-2 से परिचित हो सकती हैं।

अध्ययन की मानें तो शरीर के नए कोरोना वायरस को पहचान लेने की क्षमता का संबंध अतीत में सामने आए कोरोना वायरसों से हो सकता है। इनमें वे चार वायरस भी शामिल हैं, जिनके संक्रमण के चलते सामान्य सर्दी-जुकाम होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मामला विषाणुओं की पारिवारिक समानता से जुड़ा है। इम्यून सिस्टम को एक ही वंशावली के रोगाणु एक जैसे लगते हैं। यही कारण है कि उसकी नजर में आते ही वे पहचान लिए जाते हैं। चूंकि शरीर पहले भी ऐसे सूक्ष्म जीवों से परिचित होता है या कहें निपट चुका होता है, इसलिए उनके नए 'भाइयों' की पहचान कर वे उनके इरादे भी तुरंत जान लेता है।

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अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने विशेषज्ञों के हवाले बताया है कि हमारे इम्यून सिस्टम में मौजूद टी सेल्स की अपनी कुछ गुप्त विशेषताएं होती हैं। हालांकि यह बात स्मरणीय है कि कोरोना वायरस संकट से लड़ने में इन सेल्स की भूमिका कितना अहम होने वाली है, इस बारे में कोई सकारात्मक या नकारात्मक दावा करना जल्दबाजी है। लेकिन मौजूदा वैश्विक स्वास्थ्य संकट से उबरने में इन कोशिकाओं की भूमिका को अनदेखा करने की गलती वैज्ञानिक और मेडिकल एक्सपर्ट नहीं कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि मजबूत इम्यून सिस्टम या कहें सक्षम टी सेल्स और अन्य प्रतिरक्षक कोशिकाओं की बदौलत ही नया कोरोना वायरस कई लोगों को खास प्रभावित नहीं कर पाता। वहीं, जिन लोगों की ये कोशिकाएं कमजोर होती हैं, उन्हें वायरस काफी बीमार कर सकता है।

यही कारण है कि वैज्ञानिक कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में टी सेल्स से शुरू से ही उम्मीद लगा रहे हैं। अलग-अलग गुच्छों के रूप में रहने वाले ये सेल्स अपने पूरी जीवनकाल में एक खास प्रतिक्रिया के इंतजार में गुजार देते हैं, मिसाल के लिए शरीर में किसी खतरनाक वायरस की एंट्री। टी सेल को जैसे ही इसका पता चलता है, वह इसी श्रेणी की कोशिकाओं की फौज के रूप में इकट्ठा हो जाते हैं और टार्गेट का चयन कर उस पर हमला कर देते हैं। कुछ टी सेल्स सूक्ष्म हमलावर की तरह होते हैं जो संक्रमित कोशिकाओं को खत्म करने का काम करते हैं। वहीं, बी सेल्स नामक अन्य प्रतिरक्षक कोशिकाएं वायरस पर हमला करने वाले एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करते हैं।

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लेकिन यह काम एक दम से नहीं होता। इसमें कई दिनों का समय लग सकता है, क्योंकि इम्यून सिस्टम को यह तय करने में वक्त लगता है कि कौन से टी सेल्स के हाथ में काम सौंपा जाए। कभी-कभी वायरस से लड़ने के लिए ज्यादा मजबूत और तेज इम्यून रेस्पॉन्स की जरूरत होती है। ऐसे में शरीर में रिजर्व रखी टी सेल्स काम आते हैं। इन्हें मेमरी टी सेल्स कहा जाता है। किसी वायरस के संक्रमण से एक बार परिचित होने और उससे उबरने के बाद टी सेल्स उसके प्रभाव को अपनी मेमरी या याद्दाश्त में सेव कर लेते हैं और खुद को लंबे वक्त तक शरीर में बनाए रखते हैं। अगर वही संक्रमण या उससे मिलता-जुलता इन्फेक्शन दोबारा शरीर को प्रभावित करे तो ये टी सेल्स तुरंत एक्शन मोड में आ जाते हैं।

हालांकि कोरोना वायरस के मामले में यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। दरअसल, यूरोप, अमेरिका, सिंगापुर आदि देशों में वैज्ञानिकों ने ऐसे मामलों में टी सेल्स को सक्रिय होते देखा है, जिनमें मरीज नए कोरोना वायरस से पहले कभी भी कोरोनाविरिडाई परिवार के किसी भी विषाणु से संक्रमित नहीं हुए थे। इसके बावजूद उनके टी सेल्स ने लैब टेस्ट में सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ प्रतिक्रिया दी। शोधकर्ता इसका श्रेय एक जैसी विशेषताओं वाले वायरसों को देते हैं, जिनके संक्रमण के प्रभाव (मसलन सामान्य सर्दी-जुकाम, बुखार) कोरोना वायरस से मिलते हैं। जानकार बताते हैं कि शरीर में पहले से मौजूद ये टी सेल्स वायरस को खत्म करें या न करें, लेकिन संभवतः कोविड-19 के संक्रमण को कम करने का काम जरूर कर सकते हैं।

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