भारत में कोरोना वायरस से पैदा हुई कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए हर्ड इम्यूनिटी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार ने अब से कुछ देर पहले कोविड-19 की दैनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही है। इसमें मौजूद स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'हर्ड इम्यूनिटी की बीमारी के खिलाफ एक अप्रत्यक्ष सुरक्षा है। यह एक आबादी को बीमारी से बचाती है। लेकिन यह तब डेवलेप होती है, जब वैक्सीन डेवलेप हो जाती है या कोई आबादी बीमारी से ग्रस्त होने के बाद रिकवर हो जाती है। भारत में हर्ड इम्यूनिटी कोई विकल्प नहीं है। (यहां) यह तभी हो सकता है, जब कोई वैक्सीन विकसित कर ली जाए।' कॉन्फ्रेंस में अधिकारी ने साफ कहा कि कोविड-19 को पूरी तरह हराने के लिए देश को वैक्सीन पर निर्भर रहना होगा।
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कोविड-19 महामारी के दौर में हर्ड इम्यूनिटी सबसे प्रचलित शब्दों में से एक है। मेडिकल जानकार बताते हैं कि यह एक ऐसी स्थिति जिसमें एक आबादी में पर्याप्त संख्या में लोग किसी बीमारी के खिलाफ प्राकृतिक रूप से इम्यूनिटी जनरेट कर लें। इस वायरस का फैलाव रुक जाता है, क्योंकि शरीर में एंटीबॉडी पैदा होने के चलते लोग बीमारी को आगे किसी और लोगों तक नहीं पहुंचाते।
लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने ही कह दिया है कि भारत जैसे (बड़ी आबादी वाले) देश में सामुहिक प्रतिरक्षा प्रणाली कोविड-19 जैसी बीमारी को रोकने का विकल्प नहीं है। इस बयान से हाल में हर्ड इम्यूनिटी पैदा होने को लेकर जगी उम्मीदों को बड़ा झटका लगी है। गौरतलब है कि दिल्ली और महाराष्ट्र में हाल में किए गए सेरो सर्वे में पता चला है कि इन दोनों शहरों की आबादी के एक बड़े हिस्से में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मिले हैं। इसका मतलब है कि ये कोरोना वायरस से संक्रमति हुए थे, लेकिन इनके शरीर ने उसके खिलाफ प्राकृतिक रूप से रोग प्रतिरोधक विकसित कर लिए। हालांकि इसका पता नहीं चला, क्योंकि ज्यादातर संक्रमित असिम्प्टोमैटिक थे, यानी उनमें कोविड-19 के लक्षण नहीं दिखे थे। बता दें कि दिल्ली में 23 प्रतिशत तो मुंबई के स्लम एरिया की 57 फीसदी आबादी में वायरस को रोकने वाले एंटीबॉडी पैदा होने की बात कही गई है।
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