कोविड-19 एंटीबॉडी को लेकर एक बड़ा दावा सामने आया है। इसके मुताबिक, कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ पैदा होने वाले रोग प्रतिरोधक बहुत तेजी से कम हो सकते हैं। अमेरिका की स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के मरीजों के पांच महीने के लंबे विश्लेषण के बाद यह दावा किया है। इसमें बीमारी की गंभीरता से जुड़े अलग-अलग प्रकार - असिम्प्टोमैटिक से लेकर जानलेवा कंडीशन तक - की जांच की गई है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ पैदा होने वाले आईजीए और आईजीएम एंटीबॉडी रिकवरी के बाद तेजी से लुप्त होते जाते हैं।
वहीं, आईजीजी एंटीबॉडी को लेकर कहा जाता है कि शरीर में इनकी स्थिरता तुलनात्मक रूप से लंबे समय तक रहती है। लेकिन नए अध्ययन की मानें तो कोरोना वायरस के मामले में ये रोग प्रतिरोधक भी ज्यादा समय तक नहीं टिकते। यहां तक कि उन मरीजों में भी इनकी मौजूदगी दीर्घकालिक नहीं होती, जो गंभीर कोविड-19 से ग्रस्त होकर रिकवर होते हैं।
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मेडिकल पत्रिका साइंस इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्च टीम ने अमेरिका के कोई 79 अस्पतालों में भर्ती हुए कोविड मरीजों, 175 आउटपेशंट (जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था) और बिना लक्षण वाले (असिम्प्टोमैटिक) संक्रमितों के प्लाज्मा सैंपल इकट्ठा कर उनका अध्ययन किया है। संक्रमण के बाद के पांच महीने तक चले इस विश्लेषण में पाया गया है कि हल्के कोविड मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी ने जिस अनुपात में वायरल स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ प्रतिक्रिया दी, वह गंभीर मरीजों की तुलना में ज्यादा था। संभवतः यह मुख्य कारण रहा कि रोग प्रतिरोधकों ने गंभीर लक्षणों को विकसित नहीं होने दिया। लेकिन रिकवरी के बाद ये एंटीबॉडी तेजी से कम होते पाए गए हैं, विशेषकर आउटपेशंट और असिम्प्टोमैटिक मरीजों में प्रतिरोधक ज्यादा तेजी से कम होते पाए गए हैं।
इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके अध्ययन के परिणाम सेरोप्रेवलेंस आधारित अध्ययनों की विश्वसनीयता पर महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर सकते हैं। अध्ययन के लेखकों ने कहा है, 'संक्रमण के बाद एंटीबॉडी में आई गिरावट से यह सवाल भी पैदा होता है कि वैक्सीनेशन से विकसित होने वाले एंटीबॉडी कितने लंबे समय तक बने रहेंगे और क्या वायरस से सुरक्षित रहने के लिए लगातार शॉट लेते रहने होंगे।'