भारत समेत दुनियाभर में कोविड-19 बीमारी का प्रकोप कम होने का नाम नहीं ले रहा है। अब तक 3 करोड़ 35 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं और 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। (30 सितंबर के आंकड़े) इतना ही नहीं अब तक इस बीमारी का कोई स्वीकृत इलाज या टीका भी विकसित नहीं हो पाया है। इसे देखते हुए, कोविड-19 के प्रकोप को रोकने के तरीके के रूप में कुछ वैज्ञानिक सार्स-सीओवी-2 वायरस (जो रोग का कारण बनता है) के खिलाफ स्वाभाविक रूप से अधिग्रहित इम्यूनिटी के फायदों की वकालत कर रहे हैं। यह इम्यूनिटी व्यापक या विस्तृत इम्यूनिटी के रूप में हो सकती है या फिर उन लोगों में एंटीबॉडी की उपस्थिति के रूप में जो इस संक्रमण से स्वाभाविक रूप से ठीक हुए हों।

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व्यापक (वाइडस्प्रेड) इम्यूनिटी, हर्ड इम्यूनिटी से थोड़ी अलग है। हर्ड इम्यूनिटी एक अवधारणा है जो कहती है कि जब किसी आबादी में मौजूद एक निर्धारित संख्या में लोगों के अंदर किसी रोगाणु के खिलाफ इम्यूनिटी आ जाती है तो ये लोग रोगाणु के प्रति अतिसंवेदनशील लोगों को भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। व्यापक इम्यूनिटी के साथ, विचार ये है कि जब अधिकांश आबादी किसी रोगाणु के लिए इम्यून हो जाती है तो उस रोगाणु या सूक्ष्मजीव में पर्याप्त व्यवहार्य मेजबान नहीं होते हैं और वह समुदाय में नहीं फैलता है। हर्ड इम्यूनिटी और वाइडस्प्रेड इम्यूनिटी के बीच अंतर ये है कि कितने प्रतिशत आबादी को इम्यून होने की जरूरत है और कैसे।

इस आर्टिकल में हम आपको कोविड-19 के प्रति इम्यूनिटी के बारे में जानकारी दे रहे हैं। 

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  1. कोविड-19 के प्रति व्यापक इम्यूनिटी बनाम हर्ड इम्यूनिटी
  2. मानव प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया
  3. वायरल इंफेक्शन और कोविड-19 के मामले में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया
  4. इम्यून प्रतिक्रिया की अनिश्चितता
कोविड-19 के प्रति इम्यूनिटी के डॉक्टर

भारत के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष डॉ जयप्रकाश मुलियाल ने समझाया है कि महामारी से बाहर निकलने के लिए व्यापक या विस्तृत इम्यूनिटी एक अच्छा तरीका हो सकता है। व्यापक इम्यूनिटी 2 तरीकों से हर्ड इम्यूनिटी से अलग है। पहला- हर्ड इम्यूनिटी की पुष्टि करने के लिए, वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करते हैं कि किसी समुदाय की सुरक्षा के लिए कितने प्रतिशत लोगों का उस रोगाणु के प्रति इम्यून होना जरूरी है। 

उदाहरण के लिए- मीजल्स या खसरा वायरस के प्रति हर्ड इम्यूनिटी तब ट्रिगर होती है जब समुदाय के कम से कम 95% लोग इसके प्रति इम्यून हों। पोलियो का कारण बनने वाले वायरस के लिए, यह प्रतिशत 80-85 प्रतिशत के बीच है। सार्स-सीओवी-2 वायरस के लिए, जो कोविड-19 का कारण बनता है, हम अभी तक यह नहीं जानते हैं कि हर किसी की सुरक्षा के लिए कितने प्रतिशत आबादी का इम्यून होना आवश्यक है। हालांकि शुरुआती अनुमान के आंकड़े इसे 75% मान रहे हैं।

दूसरा- आमतौर पर हर्ड इम्यूनिटी को सुनिश्चित करने का एकमात्र सुरक्षित तरीका एक प्रभावी वैक्सीन है जिसे समुदाय के अधिकांश लोगों को दिया जाता है- मौजूदा समय में कोविड-19 से सुरक्षा के लिए कोई वैक्सीन मौजूद नहीं है।

सुरक्षित रूप से इम्यूनिटी को कैसे सुनिश्चित किया जाए?
आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि कोविड-19 बुजुर्गों में गंभीर लक्षणों के साथ प्रकट होता है। चूंकि भारत की लगभग 90% जनसंख्या 60 वर्ष से कम आयु की है, इसलिए डॉ मुलियाल कहते हैं कि भारत के युवा और स्वस्थ लोगों के बीच प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी, समुदाय में बीमारी के नियंत्रित संचरण से प्राप्त की जा सकती है। हालांकि, डॉ. मुलियाल के अनुसार कोविड-19 से बचने के लिए किसी भी क्षेत्र में कम से कम 60% आबादी का इम्यून होना आवश्यक है। इस संख्या को हासिल करने में निस्संदेह अधिक जीवन को संकट में डालना होगा, जब तक कि उच्च जोखिम वाले समूहों को सुरक्षित नहीं रखा जाता है और सुरक्षित आबादी में बीमारी फैलने की दर को काफी कम रखा जाता है।

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वैक्सीन भी इम्यूनिटी की अवधारणा पर काम करती है: जब एंटीजन का एक कमजोर रूप -माइक्रोबियल प्रोटीन- खून में इंजेक्ट किया जाता है, तो शरीर का इम्यून सिस्टम इस एंटीजन से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने लगता है। एक बार जब शरीर किसी भी चीज के लिए एंटीबॉडी बना लेता है, तो यह कई वर्षों तक संक्रमण से लड़ने और जीतने के लिए एक तरह का उपकरण प्राप्त कर लेता है।

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यहां पर एक चेतावनी का उल्लेख किया जाना जरूरी है। हालांकि यह अभी भी अज्ञात है कि क्या कोविड-19 वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज की कई पीढ़ियां रोग के खिलाफ दीर्घकालिक इम्यूनिटी प्रदान करने के लिए पर्याप्त है या नहीं। कोविड-19 बीमारी के रीलैप्स या रीइंफेक्शन के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, जिसमें कोविड-19 का इलाज करा चुके मरीज में दोबारा इंफेक्शन हो गया।

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हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) में कोशिकाओं और अणुओं का एक जटिल समूह होता है जो हमें रोगाणुओं और सूक्ष्मजीवों से बचाने के लिए एक साथ काम करता है। हम सभी के पास एक जन्मजात इम्यून सिस्टम होता है जिसके साथ हम पैदा होते हैं और एक अधिग्रहित (अक्वायर्ड) इम्यून सिस्टम होता है जिसे हम कई सालों में समय के साथ विकसित करते हैं जब हम विभिन्न रोगाणुओं के संपर्क में आते हैं।

विशिष्ट एंटीजन या रोगाणु के खिलाफ हमारे शरीर में विशिष्ट एंटीबॉडी का निर्माण होता है। इसलिए हर बार जब एक नया सूक्ष्म जीव दिखाई देता है, तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को इसे पहचानने और इसके खिलाफ एंटीबॉडी विकसित करने में कुछ समय लगता है। अनुकूलनीय (अडैप्टिव) प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के 2 हाथ होते हैं:

1. ह्यूमोरल (तरल) इम्यूनिटी : यह इम्यूनिटी बी-कोशिकाओं द्वारा ट्रिगर की जाती है और विशिष्ट एंटीजन के खिलाफ एंटीबॉडी के उत्पादन का नेतृत्व करती है। 5 विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी होते हैं (इम्यूनोग्लोबुलिन, एक प्रकार का प्रोटीन):

  • आईजीडी : ये इम्यूनोग्लोबुलिन आमतौर पर बी-कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं; उनका एक काम एंटीजन या विदेशी तत्व की उपस्थिति के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को सचेत करना है।
  • आईजीएम : जब भी इम्यून सिस्टम किसी एंटीजन का सामना करता है तो आईजीएम आमतौर पर वह पहला एंटीबॉडी होता है जो सामने आता है। बाकी के एंटीबॉडीज कुछ देर बाद दिखायी देते हैं।
  • आईजीए : आईजीए श्लेष्म झिल्ली (म्यूकोसल) सतहों पर पाया जाता है। (मुंह और नाक की कैविटी और आंत की परत में)
  • आईजीजी : आईजीजी सीरम या खून में मौजूद होता है। किसी रोगाणु के खिलाफ आईजीजी एंटीबॉडीज की मौजूदगी पिछले संक्रमण का संकेत देती है और आईजीएम एंटीबॉडी की उपस्थिति सक्रिय संक्रमण का संकेत देती है।
  • आईजीई : एलर्जी के मामले में आईजीई एंटीबॉडी का उत्पादन होता है और यह त्वचा, श्लेष्म झिल्ली और फेफड़ों में मौजूद होता है।

2. सेल-मध्यस्थता प्रतिरक्षा : यह इम्यूनिटी टी-कोशिकाओं द्वारा ट्रिगर होती और आमतौर पर वायरल संक्रमण के मामले में संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद करती है।

  • टी-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ भी काम करती हैं।
  • मेमोरी सेल्स : एक बार जब हमारा इम्यून सिस्टम किसी रोगाणु या सूक्ष्मजीव की पहचान कर लेता है और उसके खिलाफ लड़ाई कर लेता है, तो यह विशिष्ट कोशिकाओं को विकसित करता है जिसे मेमोरी सेल्स कहा जाता है जो उक्त रोगाणु को याद रखता है। अगली बार जब यही रोगाणु शरीर पर हमला करता है, तो ये मेमोरी कोशिकाएं रोगाणु के खिलाफ तुरंत एंटीबॉडी विकसित करती हैं और उसे बेअसर कर देती हैं। बी और टी दोनों ही मेमोरी सेल संक्रमण के बाद शरीर में बनती हैं।

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वायरस इंट्रासेल्युलर परजीवी होते हैं (जो स्वस्थ कोशिकाओं के अंदर रहते हैं)। एक बार जब वे स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं, तो वे ह्यूमोरल या तरल इम्यूनिटी के प्रति अदृश्य हो जाते हैं। संक्रमित कोशिकाएं तब अपनी सतह पर विशेष रिसेप्टर्स का उपयोग करती हैं जो वायरल एंटीजन को इम्यून सिस्टम के सेल-मध्यस्थता शाखा में पेश करती हैं जो किलर टी-कोशिकाओं को सक्रिय करता है, जो फिर जाकर वायरस के साथ ही संक्रमित कोशिकाओं को भी मार देता है।

वायरल इंटरफेरॉन विशेष रसायन होते हैं जो संक्रमित कोशिकाओं के अंदर उत्पन्न होते हैं और जो कोशिकाओं के अंदर वायरस को बेअसर करते हैं। ये इंटरफेरॉन आस-पास की कोशिकाओं को भी संकेत भेजते हैं और उन्हें शरीर में वायरस की उपस्थिति के बारे में उन्हें चेतावनी देते हैं। ये कोशिकाएं तब सुनिश्चित करती हैं कि टी-कोशिकाएं आसानी से वायरस से संकमित कोशिकाओं की पहचान कर पाएं और इसके लिए वे अपने सतह के अणुओं को सामान्य दिखाती हैं।

एंटीबॉडीज वायरस को बेअसर कर सकती हैं जब वे स्वस्थ कोशिकाओं के बाहर होते हैं या फिर जब उन्होंने कोशिकाओं के अंदर प्रवेश नहीं किया होता है। एंटीबॉडीज वायरस को बेअसर करने के लिए इन तरीकों से काम करती हैं:

  • वे स्वस्थ कोशिकाओं में वायरल बाइंडिंग के साथ हस्तक्षेप कर सकते हैं
  • वे वायरस के साथ बंधकर उन्हें बेअसर कर सकते हैं
  • वे वायरस को संलग्न कर उन्हें मार सकते हैं।

आईजीजी, आईजीए, आईजीएम एंटीबॉडीज में एंटीवायरल गुण होते हैं।

(और पढ़ें - इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण)

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भले ही हमारे इम्यून सिस्टम की मूल बातें सभी को पता हों लेकिन हकीकत यही है कि सबकुछ किसी पाठ्यपुस्तक की व्याख्या जितना आसान और परफेक्ट नहीं होता। हमारा इम्यून सिस्टम अलग-अलग रोगाणुओं के खिलाफ अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है:

  • उदाहरण के लिए, एक बार जब किसी को चिकनपॉक्स हो जाता है तो आप जीवनभर के लिए इस बीमारी से सुरक्षित हो जाते हैं। हालांकि चिकनपॉक्स वायरस (वैरिसेला वायरस) आपकी रीढ़ की हड्डी की नसों में निष्क्रिय बना रहता है लेकिन अगर यह दोबारा सक्रिय होता है तो यह दाद का कारण बन सकता है।
  • इसी तरह, अगर आपको टाइफाइड बुखार होता है, तो इस बात की आशंका होती है कि आप बीमारी के वाहक बन सकते हैं। वाहक वे होते हैं जो अपने मूत्र और मल में टाइफाइड बैक्टीरिया को बहा सकते हैं या छोड़ सकते हैं लेकिन जिनमें स्वयं रोग के लक्षण नहीं होते हैं। आप इस बीमारी के स्वास्थ्यलाभ से संबंधि कैरियर भी हो सकते हैं, जो बीमारी का इलाज के कुछ दिन बाद तक बैक्टीरिया को छोड़ते रहते हैं या फिर क्रोनिक कैरियर भी हो सकते हैं जो संक्रमण के लंबे समय बाद तक टाइफाइड बैक्टीरिया को छोड़ते रहते हैं।
  • टेटनस के लिए, हमारा इम्यून सिस्टम इम्यूनिटी विकसित नहीं करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीमारी का कारण बनने के लिए जितनी मात्रा में विष की आवश्यकता होती है वह वास्तव में बहुत कम होता है और टिटनेस जानलेवा हो सकता है।
  • एचआईवी वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं पर खुद ही हमला करता है।
  • चूंकि कोविड-19 एक नई बीमारी है और इसके खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि क्या एक बार संक्रमण होने के बाद आप बीमारी के लिए इम्यून हो सकते हैं या नहीं और यदि हां, तो कब तक।

एक मजबूत इम्यून प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति को रोगियों में संक्रमण के रिलैप्स या रीइंफेक्शन के कारणों में से एक माना जा रहा है। दूसरी ओर, एक छोटे से अध्ययन से पता चला कि कोविड-19 मरीजों में विशिष्ट आईजीएम एंटीबॉडी रोग की शुरुआत के 9 दिनों के भीतर नजर आयी और आईजीजी एंटीबॉडीज 2 सप्ताह के भीतर देखी गईं। 

एंटीबॉडीज ने सार्स-सीओवी-2 वायरस के साथ क्रॉस-रिएक्टिविटी दिखाई। पहले के अध्ययनों में, इस सार्स वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी संक्रमण के 2 साल बाद भी रोगी के सीरम में पाए गए हैं। हालांकि वास्तव में कोविड-19 से लड़ने के दौरान शरीर में क्या होता है, और बीमारी से रिकवर हो चुके मरीजों में किस तरह की इम्यूनिटी की उम्मीद की जा सकती है यह केवल और अधिक शोध से पता चल सकता है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के प्रति इम्यूनिटी है

संदर्भ

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