कोरोना वायरस के खिलाफ विकसित रोग-प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी पहले लगाए गए अनुमानों से ज्यादा हो सकती है। इसका मतलब है कि जिन लोगों के शरीर में सार्स-सीओवी-2 को खत्म करने वाले एंटीबॉडी विकसित हुए हैं, उनकी संख्या अनुमानित आंकड़ों से काफी अधिक होने की संभावना है। स्वीडन स्थित कैरोलिन्स्का इंस्टीट्यूट और कैरोलिन्स्का यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल (केयूएच) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बात कही है। हालांकि, यहां स्पष्ट कर दें कि यह अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा होना बाकी है। फिलहाल इसे वैज्ञानिक शोधपत्र को ऑनलाइन उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म 'बायोआरकाइव' पर पढ़ा जा सकता है।
स्वीडन के शोधकर्ताओं का यह दावा इस ओर ध्यान खींचता है कि पूरी दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है, जिनका शरीर सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद उसे खत्म करने वाले टी-सेल्स रेस्पॉन्स आधारित इम्यून सिस्टम को पैदा कर चुका है, लेकिन उन लोगों के कोविड-19 एंटीबॉडी टेस्ट किए ही नहीं गए हैं। यह दावा सही है तो इसका मतलब है कि कोरोना वायरस से संक्रमित कई लोगों के शरीर में इम्यूनिटी विकसित हो गई है, लेकिन टेस्ट नहीं होने की वजह से इसका पता नहीं चला।
क्या है दावे का आधार?
कोविड-19 के खिलाफ रोग-प्रतिकारक क्षमता पैदा होने से जुड़े इस दावे की खोज के लिए शोधकर्ताओं ने 200 से ज्यादा लोगों के ब्लड सैंपल का विश्लेषण किया। इनमें से ज्यादातर में या तो कोरोना वायरस के बहुत कम लक्षण दिखे थे या कोई भी लक्षण नहीं दिखाई दिया था। शोधकर्ताओं ने केयूएच में भर्ती कुछ कोरोना मरीजों को भी अध्ययन में शामिल किया था। इसके अलावा कुछ ऐसे प्रतिभागियों को भी (बतौर कंट्रोल ग्रुप) शामिल किया गया, जिन्होंने पिछले और इस साल रक्तदान किया था।
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जांच के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि जो प्रतिभागी कोविड-19 के टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए थे, उनमें तो टी-सेल इम्यूनिटी जनरेट हुई ही, साथ ही उनके परिवार के सदस्यों में भी कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित हो गई थी। ये सभी असिम्प्टोमैटिक थे यानी इन लोगों में कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे थे और इनके एंटीबॉडी टेस्ट नहीं हुए थे। वहीं, मई 2020 में रक्तदान करने वाले लोगों में से 30 प्रतिशत के शरीर में भी कोरोना वायरस को रोकने वाले विशेष टी-सेल विकसित हो गए थे। शोधकर्ताओं ने बताया है कि कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी हासिल कर चुके ऐसे लोगों की यह संख्या पहले किए गए एंटीबॉडी परीक्षणों में सामने आई संख्या से ज्यादा थी।
शोध में सामने आए परिणामों की मानें तो जो लोग कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार पड़े थे, उनके शरीर में टी-सेल्स की प्रतिक्रिया तेजी से हुई थी। यह प्रतिक्रिया कम गंभीर मरीजों के शरीर में भी हुई। लेकिन हल्के लक्षण होने या कोई भी लक्षण नहीं दिखने के चलते टी-सेल्स रेस्पॉन्स को डिटेक्ट करना कई बार संभव नहीं हो पाया। इसका मतलब है कि लोगों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी रेस्पॉन्स विकसित हुआ, लेकिन या तो यह धीरे-धीरे लुप्त हो गया या फिर परीक्षण में इसका पता नहीं चल सका। निष्कर्ष के तौर पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि सार्वजनिक रूप से सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के खिलाफ पैदा हुई इम्यूनिटी का दायरा एंटीबॉडी टेस्ट में सामने आए परिणामों से ज्यादा है।