हमारा शरीर किसी भी छोटे मोटे संक्रमण और बीमारी से स्वयं ही अपनी रक्षा कर सकता है। शरीर की प्रतिरोधी क्षमता उस बीमारी से न सिर्फ लड़ती है बल्कि यह भी प्रयास करती है कि इसका कम से कम असर दिखे। यह सतत रूप से चलने वाली प्रक्रिया है। किसी भी तरह के संक्रामक रोगाणुओं या बाहरी पदार्थ के शरीर में आने पर हमारी प्रतिरोधी क्षमता सक्रिय हो जाती है जिसके संकेत कई बार शरीर पर इन्फ्लेमेशन यानी सूजन और जलन जैसी शारीरिक प्रतिक्रिया के रूप में भी दिखाई देते हैं।
यह एक जटिल प्रक्रिया है जो रोगाणुओं से लड़ने के साथ-साथ शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचने से भी बचाती है। लेकिन शरीर में इन्फ्लेमेशन हो इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपको किसी तरह का संक्रमण ही हुआ हो। कई बार हाथ में चोट या चीड़ा लगने पर भी हाथ लाल हो जाता है या सूजन हो जाती है, यह उसी प्रक्रिया का उदाहरण है।
श्वसन संबंधी बीमारियां जैसे- कोविड-19 और SARS में शरीर के श्वसन तंत्र में अचानक ही बहुत तेज इन्फ्लेमेशन होता है जबकि अस्थमा और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) में धीरे-धीरे लेकिन लंबे समय तक इन्फ्लेमेशन बना रहता है।
शरीर पर होने वाली इस प्रतिक्रिया के भी दो पहलू हैं। वैसे तो यह प्रक्रिया शरीर को रोगाणुओं और उत्तेजकों से बचाती है लेकिन अगर यह प्रतिक्रिया अधिक हो जाए यानी सूजन या जलन अचानक बहुत बढ़ जाए तो इससे शरीर के टीशू यानी ऊतकों को क्षति भी पहुंच सकती है। कोविड-19 के गंभीर मामलों में भी इस तरह की समस्याएं देखने को मिल रही हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब वैज्ञानिकों ने इस विषय पर विचार शुरू कर दिया है कि क्या इस प्रक्रिया में किसी प्रकार के हस्तक्षेप से कोविड-19 की जटिलताओं को कम करने में मदद मिल सकती है?
शरीर में अगर हद से ज्यादा सूजन और जलन होने लगे तो इससे खुद को बचाने के लिए शरीर की अपनी व्यवस्था है। इस सिस्टम में एंटी-इन्फ्लेमेटरी कोशिकाएं और केमिकल्स शामिल है। इन प्रतिक्रियाओं को शांत करने वाली कोशिकाओं को पीसकीपिंग कोशिका नाम दिया गया है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता की कोशिकाओं का ही एक प्रकार है जो इन्फ्लेमेशन को दबाने में मदद करता है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे इन्फ्लेमेशन और पीसकीपिंग कोशिकाओं के बीच होने वाली परस्पर क्रियाओं के बारे में। साथ ही यह भी बताएंगे कि सांस से संबंधित गंभीर बीमारियों में ये किस प्रकार से काम करती हैं।