दुनियाभर में कोविड-19 के इलाज और रोकथाम के लिए इस्तेमाल हो रही एंटी-मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) एक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में कोरोना वायरस के खिलाफ 'बेअसर' साबित हुई है। 'दि न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कनाडा और अमेरिका के मिनेसोटा स्थित विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं ने बताया है कि उनके द्वारा किए गए अध्ययन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोविड-19 ग्रस्त लोगों के शरीर में नए कोरोना वायरस को फैलने से नहीं रोक पाई।
अखबार के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस से संक्रमित कोई 821 लोगों को एचसीक्यू दी थी। ट्रायल का मकसद यह जानना था कि यह एंटी-मलेरिया ड्रग लोगों में कोविड-19 को फैलने से रोक सकता है या नहीं। परीक्षण के लिए मरीजों का चयन रैन्डम (कहीं से भी) तरीके से किया गया। इसके बाद उन्हें एंटी-मलेरिया दवा या प्लैसबो ड्रग दिए गए। किसी ड्रग की क्षमता या प्रभाव को जानने के लिए अध्ययन करने का यह तरीका काफी विश्वसनीय माना जाता है।
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इस अध्ययन के तहत स्वास्थ्यकर्मियों और आम लोगों दोनों को प्रतिभागी बनाया गया। ऐसा क्यों किया गया, इसकी वजह और अध्ययन के परिणाम के बारे में बताते हुए मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड आर बोलवेयर ने कहा, 'आम लोगों को इसलिए शामिल किया गया ताकि लोगों को यह संदेश जाए कि अगर आपके जरिये घर के किसी सदस्य को कोविड-19 हुआ है तो उसके बाद बीमारी को रोकने (पोस्ट-एक्सपोजर प्रिवेंटिव थेरेपी) के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन प्रभावी नहीं है।'
कैसे किया गया अध्ययन?
इस स्टडी में शामिल लोगों में कोरोना वायरस के गंभीर और हल्के लक्षण वाले मरीज शामिल थे। 33 से 50 वर्ष के बीच की उम्र वाले इन प्रतिभागियों को कोरोना संक्रमण कोविड-19 से ग्रस्त किसी अन्य व्यक्ति से मिला था। अध्ययन का हिस्सा बने इन लोगों में से 66 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी थे और बाकी आम लोग। किसी को पहले से कोई बीमारी नहीं थी। यानी सभी प्रतिभागी स्वस्थ थे। ऐसी कोई वजह नहीं थी कि एचसीक्यू उनके लिए घातक साबित होती।
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अखबार के मुताबिक, प्रतिभागियों में से किसी में भी बीमारी के लक्षण नहीं दिख रहे थे और लगभग सभी घर के ही किसी सदस्य से संक्रमित हुए थे। इनमें से आधे से ज्यादा मरीज हाई-रिस्क एक्सपोजर वाले थे। इसका मतलब है कि वे पहले से संक्रमित किसी व्यक्ति से छह फीट की कम दूरी पर दस मिनट तक खड़े थे। उस समय उन्होंने न तो मास्क पहना था और न ही फेस शील्ड का इस्तेमाल किया था। वहीं, कम खतरे वाले मरीज का मतलब है कि उसने मास्क पहना था, लेकिन फेस शील्ड का इस्तेमाल नहीं किया था।
अध्ययन के तहत प्रतिभागियों को एचसीक्यू या प्लैसबो देने के लिए रैन्डमली चुना गया। इसके बाद उन्हें ये ड्रग भेज दिए गए और इनके प्रभाव से जुड़ी जानकारी वैज्ञानिकों को ऑनलाइन भेजने को कहा गया। हालांकि, प्रतिभागियों की तरफ से ऐसा किए जाने के बाद सभी का टेस्ट नहीं किया जा सका, क्योंकि टेस्टिंग की कमी हो गई थी।
अध्ययन के परिणाम
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन लेने वाले 414 प्रतिभागियों में से 49 (11.8 प्रतिशत) का टेस्ट किया गया जो कोविड-19 से ग्रस्त पाए गए। वहीं, प्लैसबो ड्रग लेने वाले 407 प्रतिभागियों के समूह से 58 लोगों (14.3 प्रतिशत) में कोविड-19 की पुष्टि हुई। इस तरह यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्लैसबो ड्रग और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दोनों ही से बीमारी को रोकने में खास मदद नहीं मिली और इनके प्रयोग के बाद भी दोनों समूहों के संक्रमित लोगों में कोई विशेष अंतर नहीं था।
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इसके अलावा, यह भी पाया गया कि एचसीक्यू बीमारी की गंभीरता को कम करने में भी कोई भूमिका नहीं निभा पाई। बजाय इसके कई प्रतिभागियों में मतली की शिकायत देखने को मिली। अध्ययन के मुताबिक, एचसीक्यू लेने वाले 40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को मतली की समस्या हुई, जबकि प्लैसबो लेने वाले ऐसे मरीजों की संख्या करीब 17 प्रतिशत रही। हालांकि दोनों ही समूहों में से किसी के भी प्रतिभागी में हृदय की गति प्रभावित होने या अन्य गंभीर दुष्प्रभाव नहीं दिखे।
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