कोविड-19 की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से बचाव के लिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मास्क बनाया है, जिसे लेकर दावा है कि यह वायरस को डीएक्टिवेट यानी निष्क्रिय कर सकता है। इस मास्क से जुड़ा अध्ययन चिकित्सा क्षेत्र की प्रमुख पत्रिका मैटर में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि इस मास्क के आने से कोरोना संक्रमण के ट्रांसमिशन का जोखिम कम हो सकता है। खबर के मुताबिक, इस मास्क को अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। इसके अध्ययन में उन्होंने दावा किया है कि मास्क बनाने में इस्तेमाल हुए कपड़े में एंटीवायरल केमिकल की लेयर है, जो सांस के जरिए बाहर निकलने वाली छोटी बूंदों (ड्रॉपलेट) को सैनिटाइज करने का काम करेगी।
प्रयोगशाला में शोधकर्ताओं ने शारीरिक गतिविधियों - श्वसन प्रक्रिया, छींकना और खांसना - का अनुकरण कर जाना है कि ज्यादातर मास्क में इस्तेमाल होने वाले नॉन-वोवेन कपड़े इस तरह के मास्क बनाने के लिए उपयुक्त हैं। वहीं, इस अध्ययन में पता चला है कि केवल 19 प्रतिशत फाइबर डेंसिटी वाला एक लिंट-फ्री वाइप (आयतन के अनुसार) भी 82 प्रतिशत द्रव्य बूंदों को सैनिटाइज कर सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसे कपड़े में सांस लेने में भी कोई मुश्किल नहीं आती। इसके अलावा, अध्ययन में यह भी पता चला है कि नए विकसित मास्क पर लगा केमिकल भी टेस्टिंग के दौरान हटा नहीं था।
मास्क तैयार करने वाली रिसर्च टीम के सदस्य शियाजिंग हुआंग ने बताया है, 'मास्क पहनना इस महामारी की रोकथाम से जुड़े सबसे अहम उपायों में से एक है। हमने महसूस किया है कि मास्क न केवल उस व्यक्ति की रक्षा करता है जो इसे पहनता है, बल्कि यह दूसरों को भी संक्रमित बूंदों के संपर्क में आने से बचाता है।' मास्क ड्रॉपलेट्स को रोकने उनकी दिशा बदलने में भी सक्षम होते हैं। हालांकि इसके बावजूद कुछ वायरस युक्त बूंदे (सामने की तरफ) निकल ही जाती हैं और किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (सतह के जरिए) रूप से संक्रमित कर सकती हैं। वैज्ञानिकों ने नया मास्क बनाते हुए इस बात को ध्यान में रखा है। उनका मकसद ऐसा मास्क तैयार करना था जो ड्रॉपलेट्स के रूप में बाहर निकलने वाले वायरस को तेजी से निष्क्रिय कर सके।
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किस तरह बनाया गया है मास्क?
इस मास्क को तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने दो एंटीवायरस केमिकल (फॉस्फोरिक एसिड और कॉपर सॉल्ट) का इस्तेमाल किया है। इन नॉन-वोलेटाइल केमिकलों का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, क्योंकि इन्हें भाप नहीं बनाया जा सकता, जिससे मास्क पहनने वाला गैस को सांस के जरिये अंदर नहीं ले सकता। इससे उसे मास्क पहने हुए सांस लेने में कोई परेशानी नहीं आती। इस तरह दोनों केमिकल वायरस के खिलाफ प्रतिकूल रासायनिक माहौल बनाते हैं। शोधकर्ता हुआंग का कहना है कि असल में वायरस काफी नाजुक होते हैं। अगर उनका कोई हिस्सा कमजोर या खराब हो तो वे कई हिस्सों में टूट सकते हैं। ऐसा होने पर वायरस संक्रमण फैलाने की क्षमता खो सकता है। इसको ध्यान में रखते हुए ही शोधकर्ताओं ने मास्क फैब्रिक फाइबर की सतह पर पॉलीमर पॉलिनेनील की एक परत विकसित की है। इसमें मौजूद एसिड और कॉपर सोल्ट वायरस को फैलने से रोकने का काम करते हैं।
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