नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से फैलने वाली बीमारी कोविड-19 को भारत में और ज्यादा फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी। इस लॉकडाउन की वजह से हम में से बहुत से लोगों के जीवन में काफी उथल-पुथल हो गई है। स्वास्थ्य एजेंसियों और डॉक्टरों द्वारा बताए गए ऐहतियाती कदम उठाकर हम भले ही इस महामारी से बचने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन इस तरह की परिस्थिति में अक्सर हम अपनी मानसिक सेहत को भुला देते हैं।

ऐसे समय में चिंता और घबराहट महसूस होना आम बात है। हम में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इस तरह का तनावपूर्ण माहौल पहले कभी नहीं देखा होगा। वैसे लोग जिन्हें पहले से किसी न किसी तरह की मानसिक समस्या है उनके लिए यह लॉकडाउन और भी बड़ी परेशानी का सबब हो सकता है। लिहाजा कोविड-19 महामारी के दौरान आप अपनी मानसिक सेहत का ख्याल कैसे रख सकते हैं? 31 मार्च 2020 को हुए एक वेबीनार में फोर्टिस हेल्थकेयर के डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज के डायरेक्टर डॉ समीर पारिख ने इस सवाल से जुड़ी बातों पर काफी चर्चा की और कुछ जरूरी टिप्स भी दिए: 

  1. हर तरफ से कितनी बुरी खबरें मिल रही हैं, ऐसे में खुश कैसे रहें?
  2. लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं, क्या करना चाहिए?
  3. अगर कोई डॉक्टर से पूछे बिना दर्द निवारक दवाइयां (सिडेटिव्स) ले रहा हो तो क्या करना चाहिए?
  4. महामारी के दौरान हमें जो महसूस हो रहा है, क्या उसके लिए आप कोई दवा बता सकते हैं?
  5. अवसाद और बुरा महसूस करने (फीलिंग लो) के बीच क्या अंतर है?
  6. इस वक्त धार्मिक पुस्तकें पढ़ने और सात्विक भोजन करने से कितनी मदद मिल सकती है?
  7. इस समय किसी तरह का बड़ा फैसला लेना हो तो क्या करें?
  8. मानसिक सेहत को बनाए रखने के लिए क्या खाना चाहिए?
  9. मानसिक समस्याओं से जुड़े धब्बे से कैसे निपटें?
  10. लॉकडाउन के दौरान जीवनसाथी से लड़ाई न हो, इसके लिए क्या करें?
  11. अगर पैनिक महसूस हो रहा हो तो तुरंत क्या करना चाहिए?
  12. थेरेपी कितनी महंगी होती है, मैं क्या करूं?
  13. लॉकडाउन के दौरान घर में बंद रहने की स्थिति से कैसे निपटें?
  14. घर से काम करना ज्यादा तनावपूर्ण अनुभव क्यों है?
  15. दोस्तों की मदद करने के लिए मैं क्या कर सकता हूं? क्या कोई थेरेपी है जो मैं सीख सकता हूं?
  16. मौजूदा आर्थिक स्थिति बेहद डरावनी है। यह सब जानते हुए भी मैं कैसे शांत रहूं?
  17. पैनिक डिसऑर्डर के लक्षण क्या हैं?
  18. मेरे बच्चे इस दौरान बहुत जिद्दी हो गए हैं, मैं क्या करूं?
  19. अगर किसी तरह की कोई बुरी लत हो तो क्या करें?
  20. लॉकडाउन के समय घर से काम करना है, इसे पूरी कुशलता के साथ कैसे करें?
  21. परिवार से दूर रहने की इस स्थिति से कैसे निपटें?
  22. एंग्जाइटी और कोविड-19 इंफेक्शन दोनों में सांस लेने में तकलीफ : दोनों में अंतर कैसे पता करें?
  23. स्थिति को स्वीकार करना आसान नहीं है, इसके लिए क्या करें?
कोविड-19: शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहना है जरूरी, मेंटल हेल्थ के लिए ये टिप्स अपनाएं के डॉक्टर

न्यूज और खबरें देखना बंद कर दें। अपने दिमाग को पहले से चिंतामग्न होने से रोकें। खुद को अपडेट रखना सही बात है लेकिन दिनभर न्यूज देखते रहना या ऑनलाइन पढ़ते रहना, सही नहीं है। खुशी और संतुष्टि आपके अंदर से आती है। हो सकता है कि हमारी समस्याएं भी बाहर की दुनिया से जुड़ी न हों और हमारे ही अंदर से आ रही हों। मौजूदा समय में जीने की कोशिश करें और खुश रहने के लिए खुशी को अनुभव करें।

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घरेलू हिंसा एक गंभीर मामला है और उसे पूरी गंभीरता के साथ ही निपटना होगा। इसे करने के पीछे उस व्यक्ति की मंशा क्या है, कारण क्या है या फिर किसी और तरह का कोई स्पष्टीकरण यहां काम नहीं आना चाहिए। समाज में घरेलू हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और अगर किसी के साथ यह हो रहा है तो उसे तुरंत इसकी रिपोर्ट कर मदद लेनी चाहिए।

मुझे तो हैरानी इस बात की है कि बिना डॉक्टर के पर्चे या किसी तरह के चेक के बिना दर्द निवारक दवाइयां लोगों को मिल कैसे जाती हैं। आपको दवा देने वाले उस सप्लायर की शिकायत करनी चाहिए। इसे आप एक बुरी लत की तरह समझें और जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी मदद करें।

नहीं, मेरी सलाह यही है कि दवा खाना, समस्या का हल नहीं है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और इसे उसी तरह से लें। उदाहरण के लिए अगर आपके घर में आग लग जाए तो आप दवा खाकर सोने नहीं चले जाएंगे ना। आप घर से भागने की कोशिश करेंगे और मदद मांगेगे। इसलिए महामारी के दौरान जो करने के निर्देश दिए जा रहे हैं उसे ही करें। घर पर रहें, हाथों को साफ रखें और सभी जरूरी ऐहतियाती कदम उठाएं।

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डिप्रेशन यानी अवसाद एक बीमारी है दुनियाभर में 246 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है। इसके लक्षणों की बात करें तो किसी भी चीज में दिलचस्पी न होना, भूख न लगना, ध्यान लगाने में दिक्कत महसूस होना, निराशा और नाउम्मीदी होना, उदास रहना और हर वक्त थकान महसूस होना शामिल है। अगर ये लक्षण 2 हफ्ते से ज्यादा समय तक रहते हैं और आपके जीवन पर इसका बुरा असर पड़ रहा हो तो आप इसे डिप्रेशन मान सकते हैं। मस्तिष्क में होने वाले केमिकल इम्बैलेंस की वजह से डिप्रेशन होता है। इसे दूसरी बीमारियों की तरह ही समझना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ कुछ समय के लिए अगर आपको अच्छा महसूस न हो रहा हो, बुरा लग रहा हो यह आपके मूड से जुड़ा है किसी बीमारी से नहीं।

ज्यादातर लोगों के जीवन में विश्वास एक अहम भूमिका निभाता है। यह आपकी कैसे मदद कर सकता है यह आप पर निर्भर करता है। मेरा मानना यह है कि विज्ञान और विश्वास दोनों एक साथ चलते हैं। अगर आपको कोई बीमारी है और ईश्वर की प्रार्थना करने से आपको अच्छा महसूस होता है तो ऐसा जरूर करें। लेकिन डॉक्टरों ने आपको जो दवाइयां दी हैं उसकी भी अनदेखी न करें।

मौजूदा समय एक अस्थायी स्थिति है जो कुछ दिन बाद खत्म हो जाएगी इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए अपने फैसले न करें। यह महामारी हमेशा के लिए नहीं रहने वाली। लेकिन आपका फैसला आने वाले समय में आप पर असर डाल सकता है। इसलिए भविष्य को ध्यान में रखते हुए कोई फैसला करें जिसमें कोविड-19 जैसी कोई समस्या नहीं होगी।

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हम इस बात को पूरे यकीन के साथ नहीं कह सकते कि मानसिक सेहत और भोजन का कोई रिश्ता है या नहीं। इसलिए आपको जो खाना पसंद हो वह खाएं। जहां तक जरूरी हो अपनी मेडिकल जरूरतों का ध्यान रखें।

पुराने जमाने में जब दवाइयां बहुत ज्यादा अडवांस नहीं थी उस वक्त मानसिक समस्याओं को धब्बा या कलंक के तौर पर देखा जाता था। उनसे कई बार लोगों की पर्सनैलिटी में भी बदलाव होता था। लेकिन आज के समय में इस्तेमाल होने वाली दवाएं बेहद अडवांस्ड हैं और उनका कोई साइड-इफेक्ट भी नहीं है। इसलिए अब ये किसी तरह का धब्बा नहीं रहा। इस धब्बे को कैसे दूर करना है, इसकी शुरुआत खुद से करें। इस बात का ध्यान रखें कि आप और आपसे जुड़े लोग, आपके दोस्त सभी मानसिक सेहत से जुड़ी समस्याओं को भी दूसरी मेडिकल प्रॉब्लम की तरह ही समझें।

आपका रिश्ता कैसा है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। आप साथ में जितना समय बिताएंगे उतना ही लड़ाई करेंगे। लेकिन जीवन का मतलब ही लोगों के साथ रहना है। आपको ये समझना होगा कि इस वक्त सभी लोगों को उतना ही तनाव महसूस हो रहा है जितना आपको। कोशिश करें कि लाइफ में भी एक स्ट्रक्चर बन पाए। अपना पर्सनल टाइम और शेयरिंग टाइम अलग-अलग रखें। जो लोग एक दूसरे से मिल भी नहीं पा रहे हैं वे भी इस समय लड़ाई कर रहे हैं। इसलिए मौजूदा समय में यह सब होना सामान्य सी बात है।

किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें जिनसे बात करके आपको सांत्वना मिले, तसल्ली मिले। अपनी जगह बदल दें और अपना ध्यान दूसरी तरफ ले जाने की कोशिश करें। 1 गिलास पानी पिएं। ऐसा करने से भी शांति महसूस होती है। अपनी सांसों को कंट्रोल में करने की कोशिश करें। इनमें से कौन सी तकनीक आपके लिए काम करती है इसका पता लगाएं।

दुनिया के मापदंडों से तुलना करें तो भारत में थेरेपी उतनी ज्यादा महंगी नहीं है। बावजूद इसके यह व्यक्ति और उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। सभी लोगों को थेरेपी की जरूरत होती भी नहीं है। ऐसे में अगर आपके पास थेरेपी के पैसे नहीं हैं तो आप हेल्पलाइन से मदद ले सकते हैं। आपको अब ऑनलाइन भी थेरेपी मिल जाएगी। अगर आप सोचते हैं कि मानसिक सेहत से जुड़ी चीजें बहुत महंगी हैं तो ऐसा नहीं है।

सबसे अहम बात ये है कि आप इस बात को स्वीकार करें और उससे लड़ने की कोशिश न करें। खुद को ये यकीन दिलाने की जरूरत नहीं है कि आप पूरी तरह से इम्यून हैं और आपको कुछ नहीं होगा। स्वास्थ्य एजेंसियों के निर्देशों का पालन करें और घर पर ही रहें। इससे पहले हमारे पास अपने परिवार से साथ बिताने के लिए बिलकुल समय नहीं था, काम और जीवन के बीच संतुलन नहीं बना पा रहे थे, इस वजह से कितना तनाव और उदासी महसूस होती थी। अब अचानक हमारे पास इतना समय है तो हमें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें। इसलिए जहां तक संभव हो पॉजिटिव बने रहें, परिवार के साथ समय बिताएं और दूसरे लोग जो दूर हैं उनके साथ सोशल मीडिया के जरिए जुड़े रहें।

(और पढ़ें: लॉकडाउन के दौरान घर में बंद हैं, जानें कैसे निपटें कोविड-19 के तनाव से)

कुछ महीने पहले तक हम सभी चाहते थे कि घर से काम करने का मौका मिले लेकिन अब जब मिल गया है तो हमें यह पसंद नहीं आ रहा। हमें एक ऐसी नई स्थिति के अनुकूल ढलने के लिए कहा जा रहा है जिसके लिए हम तैयार नहीं थे। साथ ही हमें कोई विकल्प भी नहीं दिया गया। पहले हम ट्रैफिक और आने जाने में लगने वाले समय के बारे में शिकायत करते थे, अब तो वो भी नहीं है। इसलिए हम घर से काम करने को लेकर शिकायत कर रहे हैं। अगर आप शेड्यूल बनाकर काम करेंगे, पॉजिटिव बने रहेंगे और अपने समय को सही तरीके से मैनेज करेंगे तो आपको तनाव कम महसूस होगा।

किसी भी तरह की थेरेपी की जगह आप संगीत, कविता और नाच-गाने की मदद ले सकते हैं। आपको जो अच्छा लगता हो वो करें और वही दोस्तों के साथ भी शेयर करें। जब बात संगीत की आती है तो धीमा संगीत और जिसमें पॉजिटिव गीत हो वह आपकी ज्यादा मदद कर सकता है। लेकिन अगर आपको किसी और तरह का संगीत पंसद है तो आप वो भी सुन सकते हैं।

आगे भविष्य में क्या होने वाला है कोई नहीं जानता। इसको लेकर कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इतना जरूर है कि यह स्थिति हमेशा ही ऐसी नहीं रहने वाली। हमें पता नहीं कि जब यह खत्म होगा तब क्या होगा, कैसा होगा, लेकिन इतना जरूर है कि हम सब मिलकर इसका सामना कर लेंगे। हम सभी ने अपने जीवन में इससे पहले भी मुश्किलों का सामना किया है और उससे बाहर भी आए हैं। यह किसी की निजी असफलता नहीं है बल्कि सभी की मिली-जुली है। सभी लोग इसी परिस्थिति से गुजर रहे हैं। इस वक्त आपको सिर्फ एक काम करना है और वह है खुद में यकीन रखना।

पैनिक डिसऑर्डर एक तरह की ऐंग्जाइटी से जुड़ी बीमारी ही है जिसमें आपको पैनिक अटैक आता है। इस अटैक के दौरान आपको अचानक बहुत ज्यादा पैनिक होने लगता है यानी डर और घबराहट महसूस होने लगती है। यह अटैक करीब 45 मिनट तक रह सकता है। लक्षणों की बात करें तो पसीना निकलना, शरीर का कांपना, गले में कुछ अटक रहा हो ऐसा महसूस होना, सिर घूमना, दिल की धड़कन का बढ़ना, चक्कर आना, जी मिचलाना, उल्टी आना, पेट से जुड़ी दिक्कतें आदि। पैनिक अटैक कई बार बिना कारण भी हो सकता है। इस दौरान आपका दिमाग अगले अटैक को लेकर पहले ही पूर्वानुमान लगाने लगता है और इसलिए आप किसी खास जगह या किसी खास इंसान से बचने लगते हैं जिस वजह से आपको पिछला अटैक आया हो।

बच्चे इस वक्त घर से बाहर जाकर खेल नहीं सकते, अपने दोस्तों से मिल नहीं सकते, इसलिए उनके लिए भी यह एक कठिन समय है। अगर बच्चों में किसी तरह की कोई क्रिएटिविटी हो तो उन्हें उसे करने के लिए बढ़ावा दें। बच्चों को फोन या ऑनलाइन उनके दोस्तों से बात करवाएं। आप चाहें तो बच्चों के साथ कोई किताब पढ़ें, कोई गेम खेलें। उन्हें जहां तक संभव हो व्यस्त रखें। अगर बच्चे इस वक्त ज्यादा टीवी देख रहे हों तो परेशान न हों। वो जो करना चाहते हैं उन्हें करने दें। उन्हें बात-बात में टोकना बंद करें।

यह एक बेहतर मौका है जब आप अपनी इस बुरी लत को छोड़ सकते हैं। फिर चाहे शराब या सिगरेट की लत हो या फिर गेमिंग की लत। इस समय का उपयोग आप इस तरह की लत यानी अडिक्शन को छोड़ने में कर सकते हैं। शरीर में पानी की कमी न होने दें, हेल्दी ऐक्टिविटी में शामिल हों। अगर किसी लत को छोड़ने के बाद आपको खुद में कोई गंभीर लक्षण जैसे- जी मिचलाना, उल्टी आना, कंपकंपी महसूस होना जैसी दिक्कतें हों तो डॉक्टर से बात करें।

सबसे बेस्ट सलाह यही है कि आप एक रूटीन बनाएं। घर से काम करने के दौरान भी आपकी प्रॉडक्टिविटी बनी रहे इसके लिए जरूरी है कि आप अपने रूटीन को सख्ती से फॉलो करें। अपने ऑफिस वाले कपड़े पहनकर काम करने से भी आपको मदद मिल सकती है। आप अपने मस्तिष्क को किस तरह से ट्रेनिंग देते हैं सबकुछ उसी पर निर्भर करता है। अगर आप घर के ही कपड़ों में बैठे रहेंगे तो हो सकता है कि आपका दिमाग काम करने से मना कर दे।

(और पढ़ें: पूरी कुशलता के साथ घर से कैसे करें काम, यहां जानें)

अगर आप किसी दूसरे शहर में हैं तो यह बिलकुल वैसा ही है जब वायरस का यह खतरा नहीं था। अंतर सिर्फ इतना है कि इस वक्त लॉकडाउन की वजह से परिवारवालों से जाकर मिल नहीं सकते। अगर आप नौकरी करते हैं तो अचानक से काम छोड़कर परिवार के पास जाना तो आप तब भी नहीं कर पाते। इसलिए वही करें जो आप पहले करते थे। परिवारवालों के साथ संपर्क में रहें और जब भी अकेलापन महसूस हो तो दोस्तों से बात कर लें। दोस्तों को जोक्स भेजें और कनेक्शन बनाकर रखें।

(और पढ़ें: लॉकडाउन में परिवार से दूर हैं, मानसिक सेहत का ऐसे रखें ख्याल)

इस नए कोरोना वायरस इंफेक्शन में सिर्फ सांस लेने में तकलीफ ही एकमात्र लक्षण नहीं है। इसके अलावा भी खांसी, बुखार, पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे लक्षण नजर आते हैं। अगर किसी तरह की ऐंग्जाइटी यानी चिंता की वजह से सांस से जुड़ी समस्या हो रही है तो वह कुछ देर में अपने आप ठीक हो जाएगी। ऐंग्जाइटी के साथ ही बेचैनी, नींद न आने जैसी दिक्कतें भी होती हैं। हालांकि अगर फिर भी आपके मन में किसी तरह की शंका हो तो डॉक्टर को फोन करें। आप चाहें तो टेलिमेडिसिन भी ट्राई कर सकते हैं। यह इन दिनों काफी पॉप्युलर हो रहा है।

(और पढ़ें: कोविड-19 की चिंता और तनाव को ऐसे करें दूर)

जब हम स्वीकृति की बात करते हैं तो इसका मतलब है कि आपको अपनी चिंता, अनिश्चितता की स्थिति और जीवनशैली में आए बदलाव को स्वीकार करना होगा। ऐसा करने से आपको स्थिति के अनुसार खुद को ढालने में मदद मिलेगी। इसका मतलब यह नहीं कि आप खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ न करें। आपको फिर भी सतर्क रहने की जरूरत है।

Dr. Sumit Kumar.

Dr. Sumit Kumar.

मनोचिकित्सा
9 वर्षों का अनुभव

Dr. Kirti Anurag

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Dr. Anubhav Bhushan Dua

Dr. Anubhav Bhushan Dua

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Dr. Sumit Shakya

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