दुनियाभर के सौ से ज्यादा वैज्ञानिकों ने 'दि लांसेट' पत्रिका के उस अध्ययन पर सवाल उठाए हैं, जिसमें कोविड-19 की रोकथाम के लिए कई देशों में इस्तेमाल हो चुकी एंटी-मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) को कोरोना वायरस के खिलाफ 'बेअसर' और मरीजों के लिए 'खतरनाक' बताया गया था। गौरतलब है कि इसी अध्ययन के प्रकाशन के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को अपने 'सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट' से जुड़े ट्रायलों में इस्तेमाल करने से रोक दिया था। उधर, भारत सरकार के नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के समर्थन में एक बार फिर कई तर्क दिए हैं।
सौ से ज्यादा वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल
चर्चित अमेरिकी अखबार 'दि न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एचसीक्यू से जुड़े दि लांसेट के अध्ययन पर सवाल उठाने वाले वैज्ञानिकों ने पत्रिका के संपादक रिचर्ड हॉर्टन को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि जिन जगहों (जैसे अस्पताल) के डेटा के आधार पर अध्ययन किया गया, उनकी जानकारी मुहैया कराई जाए और विश्व स्वास्थ्य संगठन या किसी अन्य संस्थान से उनकी स्वतंत्र जांच कराने को कहा जाए।
खबर के मुताबिक, इन वैज्ञानिकों ने कहा है कि हजारों कोविड-19 मरीजों से जुड़े इस अध्ययन को केवल पांच हफ्तों में पूरा कर दिया गया। उन्होंने पत्र में सवालिया लहजे में लिखा है कि इतने कम समय में हजारों मरीजों से जुड़े डेटा का विश्लेषण कर उसे लिख दिया गया और पत्रिका ने उसकी समीक्षा करके प्रकाशित भी कर दिया। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययन के प्रकाशित होने की यह गति सामान्य से कहीं ज्यादा तेज है।
इसके अलावा, इन मेडिकल विशेषज्ञों ने अध्ययय करने के लांसेट के तरीके (मेथडॉलजी) की भी आलोचना की है। साथ ही, अध्ययन के लेखकों द्वारा ऐसे किसी भी अस्पताल का उल्लेख नहीं किए जाने पर सवाल खड़े किए हैं, जहां अध्ययन में शामिल मरीज भर्ती थे। इसके अलावा, इन वैज्ञानिकों ने पत्र में दावा किया है कि अध्ययन में ऑस्ट्रेलिया के मरीजों से जुड़ा डेटा वहां के सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खाता है। उधर, इस मामले में दि लांसेट की एक प्रवक्ता ने कहा है कि उन्हें वैज्ञानिकों का पत्र मिल गया है, जिसे अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं और लेखकों को भेज दिया गया है।
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एचसीक्यू का इस्तेमाल जारी रखने का फैसला जिम्मेदारी के साथ लिया: भारत सरकार
दि लांसेट पत्रिका के शोध पर सवाल ऐसे में उठाए गए हैं, जब भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ड्रग का इस्तेमाल जारी रखने का फैसला चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां भी कई मेडिकल एक्सपर्ट ने इस दवा को कोविड-19 के मरीजों के लिए जोखिम भरी बताते हुए सरकार और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के इसे जारी रखने के फैसले पर हैरानी जताई है। लेकिन सरकार का कहना है कि उसने यह फैसला जिम्मेदारी के साथ लिया है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत सरकार के नीति आयोग के सदस्य (हेल्थ) और कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र द्वारा अधिकृत समूह के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि देश में एचसीक्यू को लेकर किए गए अध्ययन बताते हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों पर इसके फायदे, नुकसान से ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में आईसीएमआर की गाइडलाइंस सही हैं।
खबर के मुताबिक, डॉ. पॉल ने कहा है, 'हम जो कर रहे हैं वह पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रहे हैं। हम क्लिनिकल प्रोटोकॉल के तहत ही इसका प्रयोग करेंगे और डेटा के हिसाब से गाइडलाइंस में परिवर्तन करेंगे।' नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि डब्ल्यूएचओ एकमात्र प्लेटफॉर्म नहीं है, जहां एचसीक्यू को आजमाया गया है। उनके मुताबिक, दुनियाभर में कई देशों में यह दवा इस्तेमाल हो रही है और टिशूज की वृद्धि पर इसके प्रभाव की जानकारी भली-भांति ज्ञात है।