देशभर के वैज्ञानिकों ने भारत सरकार से अपील की है कि वह 21 दिनों के लॉकडाउन का इस्तेमाल कोविड-19 के उन मरीजों को ज्यादा से ज्यादा ढूंढने के लिए इस्तेमाल करे, जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण के हल्के लक्षण हैं या कोई लक्षण नहीं (अलक्षणी) दिखे हैं। वैज्ञानिकों ने सरकार को आगाह किया है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता तो देश में कोरोना वायरस के मामलों में तेज उछाल देखने को मिल सकता है। उधर, सरकार के विश्वस्त सूत्रों के हवाले से आई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि वह कोविड-19 के मरीजों के संबंध में अपनी नीति में बदलाव करने पर विचार कर रही है।

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क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
देशभर के अकादमिक संस्थानों के जीवविज्ञानियों और स्वास्थ्य शोधकर्ताओं ने सरकार से कहा है कि वह कोविड-19 की टेस्टिंग तेजी से बढ़ाए। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा है कि लॉकडाउन की अवधि का इस्तेमाल कम गंभीर और अलक्षणी मरीजों का पता लगाने में नहीं किया गया है। इसके अलावा उन्होंने सरकार से यह अपील भी की है कि वह लॉकडाउन के बाद भी एक अलग योजना की घोषणा करे। इन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने प्रवासी मजदूरों तथा कामगारों के शहर छोड़ने और फिर वापस आने को लेकर भी सावधानी बरतने को कहा है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, सरकारी को भेजे पत्र में इन लोगों ने लिखा है, 'लॉकडाउन से, बड़े सामाजिक नुकसान के साथ, इस बीमारी को रोकने में अस्थायी सफलता मिल सकती है। लेकिन हमारी चिंता यह है कि सरकार इस कीमती अवधि का इस्तेमाल कोरोना वायरस के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा ढूंढने में नहीं कर रही है।'

इसके अलावा वैज्ञानिकों ने कोविड-19 को लेकर अपनाई गई 'सीमित टेस्टिंग की नीति' पर भी सवाल खड़े किए हैं। बयान में उन्होंने कहा कि इस नीति के चलते यह खतरा पैदा हो गया है कि कोविड-19 के हल्के बीमार और अलक्षणी मरीजों की एक बहुत बड़ी संख्या की पहचान नहीं हो पाएगी और यह संभावना लॉकडाउन के अंत तक बनी रहेगी। पत्र में लिखा है, 'ये मामले आसानी से इस बीमारी के वापस आने का मुख्य कारण बन सकते हैं।'

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क्या सोच रही है सरकार?
भारतीय वैज्ञानिक समुदाय कोविड-19 को लेकर जो सलाह सरकार को दे रहा है, उसे सरकार मानेगी या नहीं यह अभी देखने वाली बात है। फिलहाल मीडिया रिपोर्टों के हवाले से जो जानकारी मिल रही है, उसे जानकर शायद वैज्ञानिकों को निराशा मिले। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार में उच्च पदों पर बैठे विश्वस्त सूत्रों के हवाले से बताया है कि वह कोरोना वायरस से कम बीमार लोगों को सीमित रूप से अस्पताल में भर्ती करने पर विचार कर रही है। अखबार के मुताबिक, सरकार के अंदर यह बात चल रही है कि इस तरह के मरीजों को घरों में ही क्वारंटीन के तहत देखा जाए और उनकी निगरानी फोन के जरिये की जाए।

सूत्रों ने बताया कि इस नीति के तहत सरकार स्वास्थ्यकर्मियों को बीमारी का शिकार होने से बचाने के लिए उपलब्ध बेडों का तर्कसंगत इस्तेमाल करना चाहती है। गौरतलब है कि देश में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के भी वायरस से संक्रमित होने की खबरें आई हैं। इस खतरे को देखते हुए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नाम की एंटी-मलेरिया दवा के इस्तेमाल का सुझाव भी दिया गया है ताकि इसकी मदद से स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाया जा सके। हालांकि यहां साफ कर दें कि यह दवा अभी ट्रायल में है और ऐसी कोई सूची भी उपलब्ध नहीं कराई गई है जिसमें बताया गया हो कि कितने डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी मरीजों की देखरेख के दौरान संक्रमित हुए हैं।

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सरकार के भीतर हो रहे इस विचार को लेकर एक सूत्र ने अखबार को बताया, 'कोविड-19 के मरीजों की चार श्रेणियां हैं। पहले श्रेणी में ऐसे मरीज आते हैं जिन्हें केवल निगरानी और आइसोलेशन में रखने की जरूरत है ताकि उनसे दूसरों में संक्रमण न फैले। दूसरे मरीज वे लोग हैं जिन्हें थोड़ा ज्यादा देखरेख की जरूरत है। ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है। तीसरी श्रेणी में वे मरीज आते हैं जिन्हें आईसीयू में रख कर लगातार निगरानी करने की जरूरत होती है। और चौथी श्रेणी के मरीज वे लोग होते हैं जिन्हें वेंटिलेटर्स चाहिए होता है।' सूत्र ने आगे कहा, 'रिपोर्टों से पता चलता है कि 80 से 85 प्रतिशत मरीजों में हल्के लक्षण होते हैं। उन्हें केवल इनसे राहत देने की जरूरत होती है। हम ऐसे मरीजों को घर में रखने की योजना बना रहे हैं। उन पर फोन के जरिये निगरानी रखी जाएगी। अगर जरूरत पड़ी तो उन्हें तुरंत अस्पताल शिफ्ट कराया जाएगा।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: वैज्ञानिकों की राय, हल्के और बिना लक्षण वाले मरीजों को ढूंढें, सरकार कम बीमारों को घर भेजने पर कर रही विचार है

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