कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता को लेकर कई अध्ययन सामने आ चुके हैं, जिसमें बताया गया है कि कैसे सार्स-सीओवी-2 वायरस मानव शरीर को प्रभावित करता है। यह वायरस शरीर के कई अंगों को काफी हद तक नुकसान पहुंचाता है, जिसके बाद संक्रमण से ठीक हुआ व्यक्ति भी लंबे समय तक कई प्रकार की जटिलताओं को महसूस करता है। वहीं, एक ताजा रिसर्च में शोधकर्ताओं को कोविड-19 के गंभीर मरीजों में बेहतर रिकवरी के संकेत मिले हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि गंभीर संक्रमण के बाद ठीक हुए कई मरीजों के फेफड़ों के ऊतकों (टिशूज) में अच्छी रिकवरी दिखाई दी है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस अध्ययन को नीदरलैंड की रैडबाउंड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है जिसे स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रमुख पत्रिका 'क्लीनिकल इंफेक्शन डिजीज' में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस समूह के मरीजों को एक सामान्य चिकित्सक (जीपी-जनरल प्रैक्टिशनर) द्वारा उपचार दिया गया था। साथ ही वो मरीज जिन्हें अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई यानी आईसीयू में भर्ती कराया गया था, वो पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए और उन्हें पूरी तरह से रिकवर होने के लिए महीनों का समय लगा।
कैसे की गई थी रिसर्च?
इस रिसर्च के तहत शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में 124 मरीजों को शामिल किया, जो कि कोविड-19 के गंभीर संक्रमण से ठीक हो चुके थे। इसके बाद सीटी स्कैन और लंग फंक्शन टेस्ट के जरिए इन रोगियों की जांच की गई। तीन महीने बाद, शोधकर्ताओं ने जांच की और पाया कि रोगियों के फेफड़ों के टिशूज (ऊतक) अच्छी तरह से ठीक हो रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस दौरान फेफड़े के ऊतकों में होने वाला नुकसान सीमित था और आईसीयू में भर्ती होने वाले रोगियों में सबसे अधिक पाया गया। अध्ययन के अनुसार, संक्रमण से ठीक होने के तीन महीने के बाद तक मरीजों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा, जिसमें थकान, सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द सबसे आम शिकायतें हैं।
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पल्मोनोलॉजिस्ट यानी फेफड़े संबंधी रोग विशेषज्ञ ब्रैम वान डेन बोरस्ट का कहना है, 'हमें इन मरीजों में गंभीर निमोनिया या एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस- फेफड़ों में पानी जमा होने की स्थिति ) के बाद रिकवरी के पैटर्न में एक समानता दिखाई दी। हालांकि, इन स्थितियों से उबरने में भी आमतौर पर लंबा समय लगता है। लेकिन यह एक अच्छी बात है कि कोविड-19 के गंभीर संक्रमण के बाद फेफड़ों में इस तरह की रिकवरी का स्तर देखने को मिला है।'
मरीजों को तीन ग्रुप में बांटा गया था
इस अध्ययन के तहत शोधकर्ताओं ने रोगियों को तीन कैटेगरी में विभाजित किया था। एक समूह में वो लोग थे जो आईसीयू में भर्ती थे। दूसरे समूह में वो मरीज थे, जिन्हें अस्पताल में एक नर्सिंग वार्ड में भर्ती कराया गया था। वहीं, एक अन्य ग्रुप में वो लोग थे जिन्हें घर पर आइसोलेट किया गया था। हालांकि, ऐसे मरीजों में लगातार संक्रमण से जुड़े लक्षण देखे जा सकते थे। इन्हें सामान्य चिकित्सकों ने आफ्टरकेयर क्लीनिक में रेफर किया था।
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शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन का मूल्यांकन किया गया कि तीन महीने के बाद मरीजों का इलाज कैसे हुआ और पता चला कि जिन मरीजों को उनके सामान्य चिकित्सकों द्वारा आफ्टरकेयर क्लीनिक में रेफर किया था, उनकी रिकवरी सबसे खराब रही। इन रोगियों में लगातार लक्षण बने हुए थे, इसलिए ही उन्हें रैफर किया गया था। डॉ. वैन डेन बोरस्ट का कहना है 'ऐसा लगता है कि रोगियों का एक स्पष्ट उपसमूह है जिन्हें शुरू में कोविड-19 के हल्के लक्षणों का अनुभव हुआ और बाद में लगातार एक लंबे समय के लिए कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करते रहे।'