कोविड-19 के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा शुरू किए गए 'सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट' में भारत के पांच अस्पतालों को शामिल किया गया है। डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से होने वाली इस बीमारी के इलाज की खोज के लिए कुछ समय पहले इस मुहिम की शुरुआत की थी। खबर है कि अहमदाबाद के दो और चेन्नई, जोधपुर और भोपाल स्थित एक-एक अस्पताल को इस सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट के तहत क्लिनिकल ट्रायल करने के लिए अप्रूवल मिल गया है। अब ये अस्पताल कोविड-19 के कारगर इलाज के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा मुहैया की जाने वाली दवाओं का परीक्षण कर सकेंगे। अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स ने बताया है कि इनमें से चार में ट्रायल शुरू भी हो चुके हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इन पांचों अस्पतालों में जोधपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), चेन्नई का अपोलो अस्पताल और अहमदाबाद स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज और सिविल अस्पताल शामिल हैं। इन सभी में डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित प्रोटोकोल के तहत चार दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल किया जाएगा। ये चारों दवाएं हैं रेमडेसिवियर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, लोपिनावीर तथा रिटोनावीर का मिश्रण और इन दोनों ड्रग्स के साथ इंटरफेरन बेटा-1ए का कॉम्बिनेशन।
आईसीएमआर-नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में महामारी विभाग की प्रमुख और भारत में डब्ल्यूएचओ के सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट की राष्ट्रीय संयोजक डॉ. शीला गोड़बोले ने बताया कि कोविड-19 का इलाज ढूंढने की कोशिश के तहत क्लिनिकल ट्रायल के लिए कम से कम 20 केंद्रों की पहचान करने की योजना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर ट्रायल के दौरान मरीजों में किसी भी तरह के विपरीत प्रभाव (यानी दुष्प्रभाव) दिखे तो परीक्षणों से संबंधित ट्रीटमेंट प्रोटोकोल रोक दिए जाएंगे।
बताया गया है कि इन ट्रायल को अंजाम देने से पहले इन अस्पतालों को ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया यानी डीजीसीआई से नियामक अप्रूवल लेना होगा, साथ ही क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया में पंजीकरण करना होगा। वहीं, ट्रायल संबंधी योजना के बारे में बताते हुए डॉ. गोड़बोले ने कहा, 'हम जितना जल्दी हो सके ज्यादा से ज्यादा मरीजों को क्लिनिकल ट्रायल के लिए नामांकित करना चाहते हैं ताकि परिणाम भी जल्दी सामने आ सकें।' डॉ. गोड़बोले के मुताबिक, ट्रायल के लिए चुने गए सभी अस्पतालों में बतौर सैंपल कम से कम 1,500 मरीज होने चाहिए। उन्होंने बताया कि ऐसे कई देश जो इसी तरह के ट्रायल कर रहे हैं, अपने इलाज की क्षमता को साबित करने के लिए बड़ी संख्या में मरीजों को शामिल कर रहे हैं।
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क्या है सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट?
कोरोना वायरस संकट के बीच इबोला की दवा रेमडेसिवियर, मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और एंटी-एचआईवी ड्रग्स लोपिनावीर और रिटोनावीर को लेकर कई देशों ने दावा किया था कि इनके प्रयोग से कोविड-19 के कई मरीजों की हालत में सुधार हुआ है। इसके बाद कोविड-19 बीमारी का जल्द से जल्द इलाज ढूंढने के लिए कुछ समय पहले डब्ल्यूएचओ ने कई देशों के सहयोग से इन चार दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल करने की अनुमति दी थी। इस कोशिश को उसने 'सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट' का नाम दिया था, जिसका मकसद यह पता लगाना है कि इन दवाओं में से कौन सी इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकती है या लोगों को मरने से बचा सकती है। वहीं, परीक्षणों के दौरान कोई अन्य ड्रग वायरस के इलाज के रूप में सामने आता है, तो उसे भी प्रोजेक्ट में शामिल किया जा सकता है।