एक हालिया स्टडी में कहा गया है कि कोविड-19 के चलते अस्पताल में भर्ती होने की एक बड़ी वजह नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर की बीमारी है। हेपटिक स्टेटोसिस नामक इस बीमारी को आंत के मोटेपन, विकसित मेटाबॉलिक रोग के साथ-साथ दीर्घकालिक प्रत्यक्ष इनफ्लेमेशन से भी जोड़कर देखा जाता है। चूंकि इनफ्लेमेशन कोविड-19 का एक प्रमुख लक्षण है, ऐसे में अपने ऑब्जर्वेशनल अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने वाले लोगों में नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिसीज और स्टेटोहेपटाइटिस (फैटी लिवर का ही एक एडवांस रूप) एक बड़ा फैक्टर हो सकता है, जिसके चलते उनकी हालत ज्यादा बिगड़ जाती है।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा, यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी और जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने फैटी लिवर डिसीज (नॉन-एल्कोहॉलिक) और स्टेटोहेपेटाइटिस की वजह से कोविड-19 के मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने के खतरे का मूल्यांकन किया है। इसके लिए उन्होंने अमेरिका में कोविड-19 के हॉस्पिटल एडमिशन से जुड़े विस्तृत डेटा का विश्लेषण किया है। साथ ही इससे बचने के संदर्भ में संभावित उपचारों पर भी गौर किया गया है।
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अध्ययन के दौरान पता चला कि अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों के बढ़ने की एक वजह हेपटिक स्टेटोसिस भी है। जिन लोगों को पहले से यह बीमारी है, उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। अध्ययन की मानें तो जो मरीज जितने सालों से फैटी लिवर से पीड़ित होता है, कोविड-19 होने पर उसके अस्पताल में भर्ती होने की संभावना उतनी ज्यादा होती है। डेमोग्राफिक विशेषताओं के आधार पर यह भी जानने में आया है कि फैटी लिवर से ग्रस्त पुरुषों और महिलाओं दोनों के हॉस्पिटलाइजेशन का खतरा होता है। इसके अलावा यह खतरा वंश-संबंधी भी हो सकता है।
हालांकि इन परिणामों की पुष्टि के लिए और शोध व अध्ययन करने की बात कही गई है। फिर भी इनके आधार पर यह कहा गया है कि जिन मरीजों का बॉडी मास इंडेक्स बढ़ा हुआ है, उनकी फैटी लिवर आधारित जांच होनी चाहिए और आंत के मोटे होने से जुड़े खतरों के बारे में बताया जाना चाहिए। शोधकर्ताओं ने मेटफॉर्मिन, पेप्टाइड-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट्स और बैरियाट्रिक सर्जरी जैसे उपचारों को फैटी लिवर/स्टेटोहेपेटाइटिस के लिए भरोसेमंद बताया है। लेकिन साथ ही अन्य वैकल्पिक इलाजों को तुरंत ढूंढने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है। वजन कम करना इस बीमारी के इलाज का सबसे भरोसेमंद तरीका बताया गया है। दवाओं के जरिये भी मोटापे को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कामयाबियां हाल के समय में मिली हैं। यानी इस तरह भी फैटी लिवर की समस्या को दूर किया जा सकता है।
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क्या है फैटी लिवर?
लिवर हमारे शरीर का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है। यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि और दूसरा सबसे बड़ा अंग होता है। लिवर पित्त का निर्माण करता है, जिसे वसा यानी फैट को टूटने में मदद मिलती है। यह रक्त के डिटॉक्सिफिकेशन या साधारण भाषा में कहें तो खून की साफ-सफाई में मदद करता है। जानकार बताते हैं कि एक सामान्य लिवर में कुछ फैट जरूरत होता है। लेकिन कभी-कभी लिवर की कोशिकाओं में गैर-जरूरी फैट की मात्रा बढ़ जाती है। इस गंभीर रोग की स्थिति माना जाता है, जिसे सामान्यतः फैटी लिवर कहा जाता है। यह बीमारी के दो मुख्य प्रकार होते हैं- एल्कोहॉलिक फैटी लिवर और नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, गलत खानपान के अलावा नियमित रूप से और अधिक मात्रा में शराब पीने से फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। मोटापा भी इस बीमारी का एक कारण हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को फैटी लिवर है तो उससे उसके बच्चों को भी इससे खतरा हो सकता है। यानी फैटी लिवर एक आनुवंशिक बीमारी भी हो सकती है।
नोट: यह अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा की जानी बाकी है। ऐसे में हम इसके परिणामों का समर्थन और विरोध दोनों ही नहीं करते हैं। फिलहाल इस स्टडी को मेडिकल शोधपत्र ऑनलाइन मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म मेडआरकाइव पर जाकर पढ़ा जा सकता है।