कोविड-19 बीमारी की जांच के लिए भारत ने अपना पहला स्वदेशी एंटीबॉटी टेस्ट विकसित कर लिया है। इस टेस्ट का नाम 'एलिसा' है, जिसकी किट को 'कोविड कवच एलिसा' नाम दिया गया है। पुणे स्थित नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरॉलजी (NIV) द्वारा तैयार किया गया एंटीबॉडी टेस्ट 'एलिसा' (एंजाइन-लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट एस्से) एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। जानकारी के मुताबिक, इसकी किट रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट जैसी ही है, जो किसी व्यक्ति के खून की जांच कर यह पता लगाती है कि वह कोविड-19 के इन्फेक्शन से संक्रमित है या नहीं।

'कोविड कवच एलिसा' का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए आईसीएमआर ने भारतीय फार्मा कंपनी जाइडस कैडीला के साथ साझेदारी की है। बताया जा रहा है कि कंपनी ने कोविड कवच एलिसा की 30 हजार किट्स तैयार कर आईसीएमआर को दे भी दिया है। केंद्र सरकार ने भी इस टेस्ट के जरिये कोविड-19 के परीक्षण को मंजूरी दे दी है। इस एलिसा टेस्ट के जरिये ढाई घंटे में एक साथ 90 सैंपलों की जांच कर परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही एलिसा-आधारित परीक्षण जिला स्तर पर किए जा सकते हैं।

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  1. कोविड-कवच एलिसा है क्या?
  2. क्या कोविड-कवच एलिसा से कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी का पता चल सकता है?
  3. कोविड कवच एलिसा टेस्ट का इस्तेमाल
  4. कोविड कवच एलिसा की रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और आरटी-पीसीआर टेस्ट से तुलना
कोविड-19 टेस्टिंग के लिए बने भारत के पहले स्वदेशी एंटीबॉडी टेस्ट 'कवच' एलिसा के बारे में जानें सारी बातें के डॉक्टर

एलिसा या एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट एसे एक तरह का ब्लड टेस्ट है जिसमें एंटीबॉडीज की तलाश की जाती है। एंटीबॉडीज खास तरह के प्रोटीन होते हैं जिसे हमारा शरीर खास तरह के इंफेक्शन की प्रतिक्रिया में बनाता है। लिहाजा जब तक आपको इंफेक्शन नहीं होगा आपके खून में वो एंटीबॉडीज नहीं बनेंगे। NIV द्वारा विकसित किया गया कोविड कवच एलिसा टेस्ट सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 के लिए बनने वाले igG एंटीबॉडीज की खोज करता है। igG या इम्यूनोग्लोबुलिन जी इंसान के शरीर द्वारा बनाया जाने वाला सबसे छोटा, प्रचूर मात्रा में बनने वाला और सबसे ज्यादा समय तक जीवित रहने वाला एंटीबॉडी है।

कैसे काम करता है टेस्ट?
एलिसा टेस्ट एंटीबॉडीज का पता लगाने के साथ ही उसे नापता भी है। इसका मतलब है कि यह टेस्ट आपको बता सकता है कि आपको कोई खास तरह का इंफेक्शन पहले भी हुआ है या नहीं। अगर खून में एंटीबॉडीज मौजूद हों तो एलिसा टेस्ट का रंग बदल जाता है। अधिक गहरे रंग का मतलब है ज्यादा एंटीबॉडीज की मौजूदगी और रंग में कोई बदलाव न होने का मतलब है कि खून में एंटीबॉडीज मौजूद  नहीं हैं। इससे पहले एलिसा का सफलतापूर्वक कई तरह के वायरस और बैक्टीरियल इंफेक्शन का पता लगाने के लिए किया जा चुका है। जैसे- एचआईवी-एड्स, सिफलिस, पर्निशियस एनीमिया, रोटावायरस और जीका वायरस आदि। 

क्या इसका इस्तेमाल कोविड-19 को डायग्नोज करने के लिए किया जा सकता है?
नहीं, एलिसा टेस्ट सिर्फ इस बात का पता लगा सकता है कि आपके खून एंटीबॉडीज मौजूद हैं या नहीं। वह सक्रिय संक्रमण का पता नहीं लगा सकता।

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सार्स-सीओवी-2 एंटीबॉडीज का खून में मौजूद होने का मतलब कि आप इस बीमारी के प्रति इम्यून है या नहीं इस बारे में फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि कोविड-19 और इम्यूनिटी के बारे में अब तक बेहद कम जानकारी मौजूद है। अनुसंधानकर्ता इस बारे में कई कारकों की खोज कर रहे हैं जिसमें वायरस के दूसरे स्ट्रेन से होने वाले री-इंफेक्शन को भी शामिल किया गया है। हालांकि एंटीबॉडीज की मौजूदगी इस बात की ओर इशारा जरूर करती है कि आपको पहले संक्रमण से लड़ने में सक्षम रहे हैं। igG एंटीबॉडीज आमतौर पर इंफेक्शन होने के 2 सप्ताह बाद खून में दिखने लगती हैं। इसके अलावा इंफेक्शन से रिकवर होने के महीनों बाद भी इन एंटीबॉडीज का पता लगाया जा सकता है।

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कितने लोगों में हो सकती है कोविड-19 एंटीबॉडीज?
कोविड-19 एक नया वायरल इंफेक्शन है जिसके बारे में दुनिया को दिसंबर 2019 में पता चला था। वैश्विक आबादी का एक छोटा सा हिस्सा जिन्हें यह बीमारी हुई है और जो लोग इससे रिकवर हुए हैं सिर्फ उनमें ही ये एंटीबॉडीज होंगे। 10 जून 2020 के आंकड़ों की मानें तो अब तक दुनियाभर के करीब 34 लाख लोग कोविड-19 बीमारी से ठीक हो चुके हैं। हालांकि इसमें वे लोग शामिल नहीं हैं जिन्हें पता ही नहीं कि उन्हें यह बीमारी है क्योंकि वे अलक्षणी हैं यानी उनमें बीमारी के लक्षण नहीं दिख रहे।

कोविड-19 महामारी के दौरान कोविड कवच एलिसा टेस्ट के इस्तेमाल में इन जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • सरकार ने फिलहाल डॉक्टरों, नर्सों, हॉस्पिटल स्टाफ और अग्रिम पंक्ति में खड़े स्वास्थ्यकर्मियों के लिए इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी है। इन लोगों को संक्रमण होने का खतरा सबसे अधिक है। इस टेस्ट की मदद से जानने में मदद मिलेगी कि क्या इन्हें इंफेक्शन हुआ था और वे उसे हराने में कामयाब हुए या नहीं। इसकी मदद से उन्हें बिना किसी बेचैनी के काम पर वापस लौटने में मदद मिलेगी।
  • इसके अलावा टेस्ट के जरिए संक्रमण को रोकने में भी मदद मिल सकती है खासकर देश के सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 10 मई को इस टेस्ट के बारे में ट्वीट किया था, 'यह टेस्ट सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस इंफेक्शन के संपर्क में आने वाली आबादी के अनुपात की निगरानी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।'
  • हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने यह जानकारी साझा नहीं कि लेकिन यह टेस्ट इस बात को भी निर्धारित करने में मदद करेगा कि कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी में कौन सा मरीज अपना ब्लड प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। इस थेरेपी में मरीज के शरीर से एंटीबॉडीज युक्त ब्लड प्लाज्मा को रिकवर किया जाता है और इसे कोविड-19 के गंभीर मरीज के शरीर में डाला जाता है। हालांकि अब तक आईसीएमआर ने सिर्फ एक्सपेरिमेंट थेरेपी के तौर पर गंभीर रूप से बीमार मरीजों में इस थेरेपी की इजाजत दी है।

(और पढ़ें: हर्ड इम्यूनिटी क्या है, कोविड-19 को रोकने में कैसे सहायक है)

कोविड-19 के लिए किए जाने वाले रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से तुलना करें तो कोविड कवच एलिसा ज्यादा भरोसेमंद है क्योंकि इसकी संवेदनशीलता और विशिष्टता काफी अधिक है। इसका मतलब है कि यह किट एंटीबॉडीज का सही ढंग से पता लगा सकता है और ब्लड प्लाज्मा में इनकी संख्या कितनी है इसका भी पता लगा सकते हैं। रैपिड टेस्ट जहां 15 से 30 मिनट में नतीजे देता है वहीं, एलिसा टेस्ट एक बार में 90 सैंपल्स के नतीजे दे सकता है। दोनों ही टेस्ट द्वारा दिए गए नतीजों को नंगी आंखों से देखा जा सकता है।

कोविड-19 के लिए किए जाने वाले आरटी-पीसीआर टेस्ट से तुलना करें तो आरटी-पीसीआर टेस्ट वायरस के जेनेटिक मटीरियल की खोज करता है और यह सक्रिय संक्रमण का पता लगा सकता है। एलिसा एंटीबॉडी टेस्ट सस्ता और तेज है लेकिन एलिसा टेस्ट सैंपल सक्रिय संक्रमण का पता लगाने के लिए नहीं बना है। साथ ही आरटी-पीसीआर की तुलना में एलिसा टेस्ट में कम बायो-सेफ्टी उपायों की जरूरत है।

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