कोविड-19 के संक्रमण को रोकने और रोगियों की पहचान कर उन्हें तवरित उपचार मुहैया कराने का प्रयास लगातार जारी है। रोगी के खून में किसी खास तरह के रोगाणु के खिलाफ एंटीबॉडीज है या नहीं इसका पता लगाने के लिए एक खास तरह का सीरमीय परीक्षण यानी सेरोलॉजिकल टेस्ट किया जाता है जिसका नाम है एलिसा।

हाल ही में माउंट सिनाई हॉस्पिटल में आईकैन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने कोविड-19 के लिए एलिसा टेस्ट विकसित किया। इस टेस्ट के माध्यम से पता लगाया जा सकेगा कि क्या सार्स-सीओवी-2 (कोविड-19) वायरस से लड़ने के लिए शरीर ने एंटीबॉडी विकसित कर ली है?

यह टेस्ट शरीर में कोविड-19 वायरस की पहचान करने के लिए नहीं है। लेकिन इसके माध्यम से संक्रमण की निगरानी करने और यह पता लगाना आसान होगा कि रोगी का शरीर इस वायरस से लड़ने में सक्षम है या नहीं?

जिस रिसर्च टीम ने इस टेस्ट को बनाया है उनका कहना है इस टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाया जा सकेगा कि मरीजों का इलाज करने वाले कौन से डॉक्टर इस वायरस के अलक्षणी इंफेक्शन के साथ पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। यानी वैसे डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी जो इस वायरस के प्रति पूरी तरह से इम्यून हो चुके हैं उन्हें ही मरीजों के इलाज के लिए आगे रखा जाएगा।

  1. एलिसा टेस्ट क्या है?
  2. एलिसा परीक्षण का प्रयोग
कोविड-19 के लिए एलिसा एंटीबॉडी टेस्ट के डॉक्टर

एलिसा (ELISA) का मतलब है एन्जाइम-लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट एसे। यह टेस्ट एंटीजन या एंटीबॉडी रिऐक्शन के आधार पर काम करता है। इस टेस्ट के माध्यम से यह जानने की कोशिश की जाती है कि दिए गए नमूने में एंटीजन, एंटीबॉडी, प्रोटीन, हार्मोन और पेप्टाइड्स (प्रोटीन को बनाने वाले अमीनो ऐसिड का छोटा सा चेन) मौजूद हैं या नहीं। 

एंटीजन एक ऐसा प्रोटीन है जो या तो रोगाणु की सतह पर मौजूद होता है या फिर रोगाणु द्वारा उत्पन्न किया जाता है। वहीं, एंटीबॉडी एक ऐसा प्रोटीन है जिसे इंसान के शरीर का इम्यून सिस्टम बनाता है ताकि एंटीजन के खिलाफ लड़ा जा सके।

इसके बाद एक सेकेंडरी एंटीबॉडी को प्लेट में डाला जाता है, जो एंटीबॉडी-एंटीजन कॉम्प्लेक्स में जाकर पहले वाले एंटीबॉडी से खुद को जोड़ लेता है। सेकेंडरी एंटीबॉडी की सतह से एक एंजाइम जुड़ा होता है। यह आमतौर पर ऐल्कलाइन फॉस्फेट या ग्लूकोज ऑक्सीडेज होता है। फिर जब एंजाइम के लिए सब्सट्रेट को प्लेट में रखा जाता है, तो यह एक रंग उत्पन्न करता है जिसे सामान्य आंखों से देखा जा सकता है। यह रंग उभर के तभी आता है जब रोगी के सीरम में एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। सीरम में एंटीबॉडी न होने की स्थिति में कोई भी रंग नजर नहीं आता।

इस रंग के गाढ़ेपन के आधार पर ही यह पता लगाया जाता है कि रोगी के खून में मौजूद एंटीबॉडी की मात्रा कितनी है?

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एलिसा एक अत्यंत संवेदनशील और पुख्ता परीक्षण है जिसके माध्यम से सैंपल में बहुत छोटी मात्रा में भी मौजूद एंटिजन (एंटीबॉडी) का पता लगाया जा सकता है। इसमें एक साथ कई सैंपलों का भी परीक्षण किया जा सकता है जिससे समय की बचत होती है। 

सीरम में मौजूद एंटीबॉडी के आधार पर एलिसा परीक्षण से यह भी पता चल सकता है कि आप पहली बार किसी रोगाणु से संक्रमित हुए हैं या पहले भी आप किसी संक्रमण के शिकार हो चुके हैं। एचआईवीमलेरिया और कुछ अन्य बीमारियों के लिए पहले से इस एलिसा टेस्ट को प्रयोग में लाया जाता रहा है।

कोविड-19 के मामले में एलिसा टेस्ट का इस्तेमाल उन डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की पहचान के लिए किया जा सकता है जो इस वायरस के प्रति इम्यून हैं और जिन्हें संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए सबसे आगे रखा जा सकता है।  

इसके अलावा, कोविड-19 के गंभीर मामलों के इलाज के लिए संभावित प्लाज्मा डोनर्स की स्क्रीनिंग के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने हाल ही में कोविड-19 के गंभीर और जानलेवा मामलों के लिए प्लाज्मा के उपयोग को मंजूरी दी है। 

प्लाज्मा सिर्फ उन्हीं लोगों से लिया जा सकता है जो बीमारी से उबर चुके हैं और जिनके शरीर में इस बीमारी से लड़ने के लिए अभी भी एंटीबॉडी शेष बचा हुआ है। गौरतलब है कि प्लाज्मा खून का एक प्रमुख हिस्सा है जो पानी,एंजाइम, नमक और एंटीबॉडी से मिलकर बना होता है।

Dr.Vasanth

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Dr. Khushboo Mishra.

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के लिए एलिसा एंटीबॉडी टेस्ट है

संदर्भ

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  2. Gan Stephanie D., Patel Kruti R. Enzyme Immunoassay and Enzyme-Linked Immunosorbent Assay. Journal of Investigative Dermatology. 2013; 133(9):e12.
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