चीन के वुहान शहर में पिछले साल दिसंबर से सुर्खियों में आया कोविड-19 वायरस पूरी दुनिया के लिए अभी भी एक अबूझ पहेली बना हुआ है। इस बेहद संक्रामक बीमारी की रोकथाम करने में जुटे वैज्ञानिकों से लेकर आम जनता तक इस बीमारी के लक्षणों के बारे में काफी जागरूक हो चुके हैं, बावजूद इसके अब भी कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सुझाव दिया है कि किसी भी नए वायरस को समझने के लिए बेहद जरूरी है कि उसके क्लीनिकल और महामारी-विज्ञान से जुड़े फीचर्स को बेहतर तरीके से समझा जाए। क्लीनिकल फीचर्स में जहां बीमारी के संकेतों और लक्षणों की बात की जाती है वहीं, महामारी-विज्ञान, आम लोगों की सेहत से जुड़ा विज्ञान है जिसमें किसी खास आबादी की सेहत से जुड़ी जानकारियों और डेटा को शामिल किया जाता है। उदाहरण के लिए- संक्रमण किस माध्यम से फैल रहा है, उसके जोखिम क्या-क्या हैं, ट्रांसमिशन पैटर्न और बीमारी की गंभीरता आदि।

इन मापदंडों का आकलन करके बीमारी रोकने की दिशा में काम करने में आसानी होती है। जैसा कि कोविड-19 के मामले में किया जा रहा है जिसमें लोगों को फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने और प्रभावित लोगों को क्वारंटाइन और आइसोलेट करने की सलाह दी जा रही है।

इस लेख में हम आपको WHO द्वारा कोविड-19 के लिए सूचीबद्ध किए गए ऐसे ही जांच के 5 प्रारंभिक बिंदुओं के बारे में जानकारी देंगे।

  1. संक्रमण के पहले मामले की पहचान और एक से दूसरे व्यक्ति में बीमारी फैलने की पहचान करना
  2. बीमारी के घरेलू प्रसार की जांच
  3. स्वास्थ्यकर्मियों में कोविड-19 के संभावित संक्रमण के खतरे की जांच
  4. कोविड-19 संक्रमण कितना फैला है, इसकी जानकारी के लिए जनसंख्या से जुड़े आंकड़े
  5. विभिन्न सतहों पर वायरस की मौजूदगी का अध्ययन
कोविड-19 की बारीकियां समझने के लिए WHO ने जारी किए दिशा-निर्देश के डॉक्टर

किसी नई बीमारी या संक्रमण को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है उस व्यक्ति की पहचान करना जिसमें सबसे पहले यह मामला देखने को मिला। उस व्यक्ति के आधार पर उससे संपर्क में आए अन्य लोगों की भी शीघ्रता से पहचान करना जरूरी हो जाता है। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के माध्यम से जितनी जल्दी संपर्क में आए अन्य लोगों की पहचान हो जाएगी,  दूसरे लोगों में बीमारी फैलने का खतरा उतना ही कम होगा।

क्लोज कॉन्टैक्ट को ऐसे समझा जा सकता है- ऐसे व्यक्ति जिसमें संक्रमण के लक्षण हों या फिर उसे संक्रमण होने के 4 दिन पहले भी उसके 1 मीटर के दायरे में जो लोग आते हैं उनमें भी संक्रमण का खतरा हो सकता है। क्लोज कॉन्टैक्ट का मतलब यह नहीं कि आप संक्रमित व्यक्ति से शारीरिक संपर्क में आए हों, एक मीटर के दायरे में आने पर भी आप संदिग्ध हैं। क्लोज कॉन्टैक्ट में परिवार के लोग, पड़ोसी, सहकर्मी, शिक्षक, सहपाठी या उसके सामाजिक दायरे में आने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकता है।

संक्रमण के शुरुआती मामले मिलने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे हो सकता है कि सं​क्रमित व्यक्ति पिछले 14 दिनों के भतीर किसी ऐसे देश से लौटा हो जहां संक्रमण के मामले पहले से ही जोरों पर हों। जब कोई व्यक्ति प्राथमिक संक्रमण के शिकार व्यक्ति के संपर्क में आने के एक दिन के भीतर ही जांच में पॉजिटिव पाया जाता है या फिर उसमें लक्षण दिखने लगते हैं ऐसे व्यक्ति को सेकेंडरी मामले के रूप में जाना जाता है।

यदि कोई भी व्यक्ति ऐसे देश या शहर की यात्रा करके आ रहा हो जहां पर वायरस का संक्रमण पहले से हो, भले ही उसमें लक्षण दिखें या नहीं, ऐसे व्यक्तियों को संदिग्ध मरीजों की सूची में रखा जाता है। संदिग्ध मरीजों की सूची इसलिए तैयार की जाती है ताकि बाद में उन्हें ट्रेस करना आसान हो।

परीक्षण के दौरान जिन लोगों में जांच के परिणाम पॉजिटिव पाए जाते हैं उन्हें कंफर्म और जिनमें अपूर्ण परिणाम आते हैं, यानि मामलों की पुष्टि नहीं हो पाती है उन्हे संभावित मामलों की श्रेणी में रखा जाता है।

संदिग्ध और पुष्टि के मामलों का पता लगाने के लिए पहले ही दिन प्राइमरी या सबसे पहले संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हुए लोगों के श्वसन के नमूने और खून की जांच की जाती है। इसके बाद 14 से 21 दिनों के बीच दूसरा टेस्ट किया जाता है। इस अवधि के दौरान उस व्यक्ति पर विशेष निगरानी रखी जाती है। इस दौरान अगर किसी व्यक्ति में संक्रमण के लक्षण दिखते हैं तो उसे कंफर्म मामलों की सूची में डाल दिया जाता है। जांच के दौरान संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए सभी लोगों के नाम की गोपनीयता को बनाए रखना होता है।

सबसे पहले संक्रमित हुए और उसके संपर्क में आए लोगों को ट्रेस करना

  • अन्य लोगों में बीमारी का संक्रमण तो नहीं फैला यह जानने में मदद मिलती है।
  • इससे बीमारी के शुरू होने का समय (incubation period) का पता लगाने में मदद मिलती है। इन्क्यूबेशन पीरियड, वायरस के संपर्क में आने के बाद से व्यक्ति में लक्षण दिखने के बीच का वक्त होता है।
  • बीमारी का संचरण किस तरीके से हो रहा है यह जानने में भी मदद मिलती है।
  • सेकेंड्री मामले कितने हैं या किस तेजी से बढ़ रहे हैं, इस बारे में भी पता चलता है।
  • रोग की प्रजनन क्षमता जानने में मदद मिलता है। इसका अर्थ है कि संक्रमित व्यक्ति अन्य  कितने लोगों को संक्रमित कर सकता है। दो संक्रमणों के बीच की अवधि के बारे में भी पता चलता है।
  • बीमारी की गंभीरता के अनुपात की जांच करने में मदद मिलती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि कितने मामले बहुत गंभीर हैं और कितने में खतरा कम है?

बाहर से आए मामलों की पहचान करने के लिए, नैशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल ने उन लोगों से स्वत: एक फॉर्म भरने की अपील की है जिनमें कोविड-19 के लक्षण दिख रहे हैं या जिन्हें संक्रमण का खतरा है। फॉर्म में व्यक्ति की सभी व्यक्तिगत जानकारी जैसे नाम, पता, फोन नंबर, उम्र और लिंग शामिल हैं। फॉर्म में उस व्यक्ति की पिछली बीमारियों, संक्रमित क्षेत्रों में यात्रा की सूची, किस-किस के संपर्क में वह व्यक्ति आया है, इस तरह की जानकारियां भी मांगी जाती हैं।

उपरोक्त अध्ययनों से निम्न लिखित निष्कर्ष निकलते हैं

  • प्राथमिक मामले और उनके निकट संपर्क में आए लोगों की संख्या।
  • संपर्क में आए लोगों में कितने मामलों में लक्षण दिख रहे हैं, कितनों में नहीं दिख रहे, कितने संदिग्ध हैं और कितने मामलों की लैब में पुष्टि हो चुकी है, यह पता चलता है।
  • संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए कितने लोगों के शरीर ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बना ली है।

सभी निष्कर्षों का उम्र, लिंग, समय और स्थान के हिसाब से अध्ययन किया जाता है।

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जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, इस परीक्षण के माध्यम से घर के भीतर कोविड-19 के प्रसार का पता लगाया जाता है। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के मामलों का पता लगाने के लिए इस जांच को किया जाता है। इस स्तर के परीक्षण के निम्न फायदे होते हैं।

  • कोविड-19 के इन्क्यूबेशन पीरियड, संक्रमण का अंतराल और वायरस कितनी तेजी से फैल रहा है, इसका पता लगाया जाता है।
  • कुल मामलों में कितने लोगों में लक्षण दिख रहे हैं और कितनों में नहीं, इसके अनुपात का पता लगाया जाता है।
  • किन समूहों में जोखिम का खतरा सबसे ज्यादा है उसका पता लगाया जाता है।
  • संक्रमित व्यक्ति कितने समय तक वायरस का संचरण करता है, और उसके शरीर में वायरस के सक्रियता की अवधि क्या है इस बारे में पता लगाया जाता है।
  • दूसरे समूहों में स्वास्थ्यसेवा से जुड़े पैटर्न कैसे हैं इसकी जानकारी हासिल करना।

इस अध्ययन के लिए संक्रमण की पुष्टि हो चुके रोगी के सभी परिजनों का 28 दिनों की अवधि में 4 बार परीक्षण किया जाता है। इसमें पहले, सातवें, 14वें और 28वें दिन सभी लोगों के श्वसन अंगों से संबंधित आवश्यक सैंपल लिए जाते हैं। इसके बाद पहले और 28वें दिन खून और सीरम के सैंपल लिए जाते हैं। इस अवधि के दौरान सभी सदस्यों के जांच की डायरी बनाई जाती है जिसके आधार पर उनका अध्ययन किया जाता है। इस स्टडी में निम्नलिखित बातों को रिपोर्ट किया जाता है:

  • सबसे पहले संक्रमित व्यक्ति के घर में कितने लोग हैं और उनमें से कितने लोगों में कोविड-19 के लक्षण सकारात्मक पाए गए हैं।
  • उन सदस्यों की संख्या जिनके खून की जांच में पता चला है कि उनमें पहले से ही संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडी मौजूद है।
  • कितने लोगो में संक्रमण के लक्षण नजर आ रहे हैं और कितने लोगों में नहीं।

कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों का संक्रमण को फैलने से रोकने में अहम योगदान होता है। चूंकि वे लोग लगातार संक्रमित रोगियों के संपर्क में रहते हैं, ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों में भी कोविड-19 संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।

अध्ययन में मुख्य रूप से उन स्वास्थ्य कर्मियों को शामिल किया गया जो संक्रमित रोगियों के साथ सीधे संपर्क में आते हैं, रोगी के शरीर से ​निकले किसी दूषित द्रव्य या रोगी पर प्रयोग किए गए किसी उपकरण के संपर्क में आते हैं। इस अध्ययन के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति होती है:

  • स्वास्थ्य ​कर्मियों में संक्रमण के जोखिम के बारे में पता चलता है।
  • स्वास्थ्य ​कर्मियों द्वारा सुरक्षा हेतु उपयोग में लाया गया व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) कितना कारगर साबित हो रहा है इसका भी पता चलता है।
  • स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण की रफ्तार का पता चलता है।
  • इससे सेकेंड्री स्तर पर संक्रमण में आने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों के बारे में पता लगाया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय स्तर और स्वास्थ्य सुविधा के स्तर पर संक्रमण नियंत्रण कार्यक्रमों की गुणवत्ता की जांच में आसानी होती है।
  • संक्रमण के खिलाफ व्यक्ति के शरीर की सेरोलॉजिकल प्रतिक्रिया (सीरम में कोविड-19 एंटीबॉडी के स्तर में परिवर्तन) का अध्ययन किया जा सकता है।
  • किन किन माध्यमों से वायरस का संचरण हो रहा है इसका पता लगाया जा सकता है।

पुष्टि हो चुके मामलों के साथ कितने लोग संपर्क में आए, पीपीई का उपयोग और संक्रमण के लक्षण (यदि किसी स्वास्थ्य कर्मी में नजर आता है), जैसे डेटा का इस्तेमाल अध्ययनों के लिए किया जाता है। श्वसन अंगों के सैंपल को बीमारी का पता लगाने और सेरोलॉजिकल (खून/सीरम) सैंपल को प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (एंटीबॉडी बनना) के अध्ययन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अध्ययन की रिपोर्ट में निम्नलिखित विवरणों को शामिल किया जाता है।

  • जिन स्वास्थ्य कर्मियों में कोविड-19 का परिणाम पॉजिटिव आया है, उनका कार्य क्या था? क्या वे डॉक्टर, नर्स या स्टाफ सदस्य हैं?
  • जिन स्वास्थ्य कर्मियों में कोविड-19 का परिणाम पॉजिटिव आया है, उनके घर में अन्य कितने लोग संक्रमण के शिकार हैं?

कोविड-19 से होने वाले मृत्यु दर सहित अब तक के सभी आंकड़े गंभीर मामलों पर निर्धारित हैं। हालांकि अब तक ऐसे मामले जिनमें लक्षण नजर नहीं आते या जिनमें खतरा कम है, उनका संक्रमित मामलों में कितना योगदान है इस संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आम लोगों के सेरोलॉजिकल डेटा (खून में कोविड-19 एंटीबॉडी की उपस्थिति) का आकलन करने से इस प्रकार के मामलों के साथ साथ गंभीर मामलों का भी पता चल सकेगा। इसके आधार पर सामुदायिक संक्रमण के मामलों को समझा जा सकेगा, साथ ही इससे मृत्युदर के आंकड़े को समझने में भी आसानी होगी।

चूंकि इस अध्ययन में उम्रवार के आंकड़ों को शामिल किया जाता है, इस आधार पर संक्रमण दर की तस्वीर साफ हो जाती है। इसके अलावा, इस डेटा के माध्यम से कोविड-19 के जोखिम कारकों का आकलन भी किया जा सकता है। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि इस अध्ययन के लिए संक्रमण के कम और अधिक दोनों मामलों वाले आबादी क्षेत्रों को चुना जाना चाहिए। अध्ययन की रिपोर्ट में निम्नलिखित विवरणों को शामिल किया जाना चाहिए।

  • आयु और लिंग के आधार पर अध्ययन में शामिल कुल व्यक्तियों की संख्या।
  • संक्रमण के प्रकोप के दौरान किस वक्त सैंपल एकत्रित किए गए।
  • कितने लोगो में कोविड-19 के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी मौजूद हैं। कितने लोगों में संक्रमण के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं लेकिन वह संदिग्ध है साथ ही कितने लोगों में स्पष्ट लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
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चूंकि कोविड-19 छींकने और खांसने से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है, इसलिए यह निर्धारित करना महत्वपूर्ण है कि वायरस विभिन्न सतहों पर कितने समय तक जीवित रह सकता है। इस अध्ययन के आधार पर कोविड-19 के प्रसार में पर्यावरण प्रदूषण की भूमिका के बारे में पता चलने के साथ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करना भी आसान होता है।

इस अध्ययन के लिए जिस वॉर्ड में कोविड-19 रोगी रहते हैं, वहां उन सतहों के सैंपल लिए जाते हैं जो सतह बार बार रोगियों के संपर्क में आ रही हैं। रोगी के वॉर्ड छोड़ने से एक सप्ताह तक यह अध्ययन किया जाता है।

WHO ने कोविड-19 को लेकर अध्ययन के लिए निम्न स्थानों से सैंपल लेने का सुझाव दिया है।

  • एम्बुलेंस- रोगी के स्ट्रेचर के बगल की दीवारें, हैंडलबार और एम्बुलेंस की छत। ब्लड प्रेशर ​कफ का अदुरुनी हिस्सा।
  • प्रवेश द्वार, गलियारे, प्रतीक्षा कक्ष और रोगी का कमरे से भी सैंपल लें।
  • दरवाजों के हैंडल, कुंडी, कीबोर्ड, लाइट स्विच, सिंक, नल और कपड़े- इनका सैंपल इसलिए क्योंकि हो सकता है अस्पताल के किसी सदस्य में संक्रमण का संभावित खतरा हो।
  • रोगी का बिस्तर, IV पोल,  रोगी की जांच के लिए इस्तेमाल किया गया स्टेथेस्कोप, उनके थर्मामीटर, कप, पर्दे, कूड़ेदान इत्यादि। मतलब रोगी के शरीर के संपर्क में आने वाली सभी वस्तुएं।
  • वायरस कितनी दूर तक फैल सकता है इसका पता लगाने के लिए रोगी से 2 मीटर, 3 मीटर की दूरी में रखी सभी वस्तुओं से सैंपल लिए जा सकते हैं।

अध्ययन की रिपोर्ट में निम्नलिखित विवरणों को शामिल किया जाना चाहिए।

  • उन स्थानों की संख्या जहां से नमूने लिए गए हैं और वे रोगी से कैसे संबंधित हैं।
  • सैंपल लिए जाने के समय और उसके आसपास कितने मरीज वहां मौजूद थे।
  • कितने सैंपल एकत्र किए गए थे।
  • कितने सैंपलों में वायरस के आरएनए थे और कितने में वायरस की सक्रिय मौजूदगी पाई गई।
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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 की बारीकियां समझने के लिए WHO ने जारी किए दिशा-निर्देश है

संदर्भ

  1. Brachman PS. Epidemiology. In: Baron S, editor. Medical Microbiology. 4th edition. Galveston (TX): University of Texas Medical Branch at Galveston; 1996. Chapter 9
  2. World Health Organization [Internet]. Geneva (SUI): World Health Organization; Coronavirus disease (COVID-19) technical guidance: Early investigations protocols
  3. National Centre for Disease Control [Internet]. Ministry of Health and Family Welfare. India; Disease Alerts
  4. Johns Hopkins Medicine [Internet]. The Johns Hopkins University, The Johns Hopkins Hospital, and Johns Hopkins Health System; Suctioning
  5. MedlinePlus Medical Encyclopedia [Internet]. US National Library of Medicine. Bethesda. Maryland. USA; Bronchoscopy
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