पूरी दुनिया इस वक्त कोविड-19 संक्रमण से जूझ रही है। इस वैश्विक आपातकाल ने लाखों लोगों की जिंदगियों को खतरे में डाल दिया है। 15 अप्रैल तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो दुनियाभर में 20 लाख से अधिक लोग संक्रमण का शिकार हो चुके हैं, जबकि 1.26 लाख से अधिक लोग अपनी जान गवां चुके हैं। संक्रमण ने भारत सहित पूरी दुनिया के  वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य कर्मियों,आवश्यक सेवा प्रदाताओं की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। सभी की लगातार कोशिशें यही हैं कि जल्द से जल्द इस संक्रमण को काबू में लाया जा सके।

चूंकि इस बीमारी को काबू करने के लिए अभी तक कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है, ऐसे में सख्ती से लॉकडाउन का पालन ही एक उपाय है। इस दिशा में बढ़ते हुए भारत ने 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 तक के लिए पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की ​थी। हालांकि, स्थिति को और अच्छी तरह से नियंत्रण में लाने के लिए इस लॉकडाउन को अब 3 मई तक बढ़ा दिया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस कदम से कोविड-19 से निपटने में दिन रात मेहनत कर रही स्वास्थ्य सेवा प्रणाली संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी। कुछ संबद्ध नतीजे हैं, जिन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। लॉकडाउन से एक ओर जहां संक्रमण पर काबू पाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ऐसे में इसका एक और पहलू है जिसपर भी ध्यान देने की जरूरत है।

इस लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार को लेकर भी विचार करने की आवश्यकता है। माना जा रहा है कि घरों में इस दौरान दुर्व्यवहार के मामले तेजी से बढ़े हैं। लॉकडाउन के दौरान चूंकि सभी अपने घरों में ही बंद हैं, ऐसे में वह बाहर मदद की गुहार भी नहीं लगा सकते हैं। चीन, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश इसका उदाहण हैं, जहां घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैंं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लॉकडाउन के पहले हफ्ते पर नजर डालें तो राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) के अनुसार उन्हें इस दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से 257 शिकायतें प्राप्त हुई। इनमें से 69 महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा से संबंधित थे।

देश की ज्यादातर पुलिस बल संक्रमण के निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के व्यवस्थित संचालन में लगी हुई है, ऐसे में इस दौरान घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार से निपटना मुश्किल हो सकता है। इतना ही नहीं लॉकडाउन के दौरान पीड़ित अपने घरों से बा​हर भी नहीं जा सकते हैं, जो उनकी समस्याओं को और बढ़ाने वाला हो सकता है। घरेलू हिंसा कई बार मौत (आत्महत्या, मारपीट और चोट के कारण) का कारण भी बन सकती हैं, ऐसे में इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत होती है।

इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए एनएसडब्ल्यू ने घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। आयोग ने घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं की मदद के लिए पहले से जारी ऑनलाइन शिकायत लिंक के अलावा एक व्हाट्सएप नंबर - 7217735372 भी शुरू किया है। इसके अलावा विभिन्न गैर-सरकारी संगठन, परामर्शदाता, चिकित्सक आदि भी लॉकडाउन के दौरान ऐसे पीड़ितों की मदद और मार्गदर्शन की दिशा में काम कर रहे हैं।

इसी मुद्दे को लेकर हमने चार अलग-अलग गैर-सरकारी संगठनों के सलाहकारों, शक्ति शालिनी (दिल्ली), नज़रिया (दिल्ली), सेंटर फ़ॉर इंक्वायरी फ़ॉर हेल्थ एंड एलाइड थीम्स (सीईएचएटी, मुंबई) और नारी समता मंच (पुणे) से बात की। इन लोगों से यह जानने की कोशिश की गई कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा बढ़ने के कारण क्या हैं और इन्हें किस तरह से रोका जा सकता है? इस विषय पर विशेषज्ञों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से प्राप्त जानकारियों और सुझावों का इस लेख में विस्तृत वर्णन किया गया है।

  1. लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा बढ़ने के कारण?
  2. लॉकडाउन के दौरान किस तरह की घरेलू हिंसा हो रहे है?
  3. लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा का खतरा किसे है?
  4. लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के खतरों को कैसे कम करें?
  5. घरेलू हिंसा की शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर

एनसीडब्ल्यू प्रमुख रेखा शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों से घरेलू हिंसा के मामले सबसे ज्यादा सामने आते रहे हैं। ये केवल वे मामले हैं, जिनकी रिपोर्ट की गई थी। व्यक्तिगत भय, हिंसा के डर, कलंक, सामाजिक सम्मान में कमी आदि कारणों से ज्यादातर घरेलू हिंसा के मामले दर्ज नहीं कराए जाते हैं। इतना ही नहीं पीड़ितों को इस बात का भी डर है कि चूंकि लॉकडाउन के दौरान सारी पुलिस व्यवस्था इसे लागू कराने में व्यस्त है और अपराधों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई नहीं हो सकेगी, इसलिए भी मामले दर्ज नहीं कराए जा रहे हैं।

लंबे समय तक घरों के भीतर रहने से वैसे भी चिंता, तनाव, घबराहट और केबिन फीवर जैसे मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे में यदि आप ऐसे लोगों के साथ रह रहे हैं, जिनसे हिंसा का खतरा बना रहता है तो हालात और बदतर हो सकते हैं। पारिवारिक गतिविधियां, नौकरी छूटने का खतरा, वेतन में कटौती आदि ऐसी स्थितियां हैं जो घरेलू हिंसा के प्रमुख कारकों के रूप में देखी जा सकती हैं।

घर पर रहने के दौरान मन मुताबिक चीजों के ना होने से भी घरेलू हिंसा बढ़ने के मामले सामने आ सकते हैं। यह खास तौर पुरुषों के साथ देखने को मिलता है, जो एक पूर्व अवधारणा के आधार पर समाज को पुरुष प्रधान समझते हैं। आपकी शक्ति का परिचय कराने को लेकर भी उनका व्यवहार घरेलू हिंसा को जन्म दे सकता है। घरेलू हिंसा और शोषण के खिलाफ काम करने वाले संस्थानों के लिए भी इस तरह की परिस्थितियां समस्या पैदा करती हैं। लॉकडाउन और महामारी जैसी परिस्थितियों के बीच उन्हें त्वरित रूप से ऐसी व्यवस्थाएं बनानी होती हैं, जो लोगों के जीवन का सुखमय बना सकें। ऐसे में सभी अधिकारियों का समान रूप से कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करें कि लॉकडाउन के दौरान किसी भी तरह से हिंसा करने वाले स्वयं को बेलगाम महसूस न करें। अपराध करने वालों में डर बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।

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दुराचार और हिंसा के मामलों से निपटने के लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि हिंसा का अर्थ केवल किसी को शारीरिक रूप से चोट पहुंचाना नहीं होता है। घरेलू हिंसा के कई रूप हो सकते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से काम करने वाले परामर्शदाताओं के साथ हमारी बातचीत से पता चला है कि वर्तमान में देश में निम्न प्रकार के घरेलू हिंसा के मामले देखने को मिल रहे हैं।

शारीरिक शोषण :

यह किसी भी प्रकार से किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से हानि पहुंचाने को कहा जाता है। किसी व्यक्ति की भौतिक आवश्यकताओं जैसे भोजन, नींद, स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच) को प्रभावित करने के साथ उसे हानि पहुंचाने की धमकी देना भी शारीरिक शोषण के अंतर्गत आता है।

भावनात्मक शोषण :

ऐसा कोई भी व्यवहार जो किसी व्यक्ति की आलोचना, असुरक्षा, चारित्रिक हनन करे, वह भावनात्मक शोषण के रूप में जाना जाता है। किसी व्यक्ति को लगातार नीचा दिखाना, धमकाना, भड़काना, उस पर नियंत्रण करने का प्रयास करना, जो उस व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकता है, वह शोषण के अंतर्गत आता है।

मौखिक दुर्व्यवहार :

किसी व्यक्ति को डराने, धमकाने, शर्मिंदा करने या धमकी देने के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना मौखिक शोषण माना जाता है। किसी व्यक्ति पर शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार से कहीं ज्यादा उसपर मौखिक दुर्व्यवहार का प्रभाव पड़ सकता है।

यौन शोषण :

किसी व्यक्ति पर यौन संबंध बनाने के लिए दबाव डालने के लिए अपनाए जाने वाले तरीके यौन शोषण के रूप में जाने जाते हैं। यौन शोषण मौखिक और शारीरिक दोनों तरह से हो सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उससे यौन संबंध बनाना या इसके लिए मजबूर करना यौन शोषण है।

आमतौर पर घरेलू हिंसा की मुख्य वजह वैवाहिक कलह है। इसे विवाहित जोड़ों से संबंधित माना जाता है। हालांकि, सामाजिक परिदृश्यों को देखते हुए इसके कई अन्य रूप भी हो सकते हैं। नीचे दिए गए कुछ समूह ऐसे ही हैं, जिनमें कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा का डर सबसे अधिक है।

महिलाएं :

महिलाओं में घरेलू हिंसा के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं। यह उस समाज में अधिक देखने को मिलता है जहां महिलाओं को पितृसत्ता लैंगिक मानदंडों का पालन करना होता है। महिलाओं को समान वेतन नहीं मिलता है और माना जाता है कि उनका स्थान पुरुषों से निम्न है। भारत में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा एक बड़ी चिंता का विषय है। जहां महिलाओं के साथ शारीरिक, यौन, मौखिक और भावनात्मक शोषण के मामले सामने आते रहे हैं।

सीईएचएटी में काउंसलर संगीता रेगे बताती हैं, ऐसा नहीं है कि शोषण का शिकार वही महिलाएं हो रही हैं जो घर में रहती हैं, कामकाजी महिलाएं भी इससे अछूती नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि शायद महिलाओं को घर का काम करने के लिए ही जाना जाता है। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि महिला घर पर रहती है या बाहर काम करने जाती है।

समलैंगिक समुदाय (एलजीबीटी)

पहले से ही निशाने पर रहने वाले एलजीबीटी समुदाय को कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा से निपटने के प्रयास करने चाहिए। लेस्ब्यिन, गे, बाइसेक्सुशल, ट्रांसजेंडर समुदायों को पहले से ही स्टिग्मा का शिकार होना पड़ता रहा है। यह मामले तब और बढ़ सकते हैं जब वे घर पर रहते हैं और उनके माता-पिता उनकी पहचान को स्वीकार नहीं करते हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी है, जो इस स्वास्थ्य आपातकाल के वक्त में और बढ़ जाता है। नजरिया के एक वरिष्ठ परामर्शदाता ने बताया कि ट्रांस समुदाय में बहुत से लोगों के पास पहले से ही नौकरी नहीं है और कई ऐसे हैं जो दैनिक मजदूरी से जीवन यापन करते हैं। लॉकडाउन से उपजी आर्थिक स्थिति से उनकी समस्याएं और बढ़ सकती हैं।

वृद्ध माता-पिता

लॉकडाउन के दौरान अपने मध्यम आयुवर्ग वाले बच्चों के साथ रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता पर भी घरेलू शोषण का खतरा बढ़ जाता है। शक्ति शालिनी क्राइसेस इंटरवेशन एंड काउंसलिंग सेंटर नामक संस्था की परामर्शदाता और को-आर्डिनेटर मोनिका बताती हैं कि हमें ऐसे मामले मिले हैं, जहां कुछ माताएं रिपोर्ट कर रही हैं कि बच्चे बड़े हो गए हैं और अब हमें प्रताड़ित कर रहे हैं। वह हम पर टिप्पणियां करते रहते हैं। यह हमारे लिए भावनात्मक रूप से काफी मुश्किलें पैदा करता है। बुजुर्गों को कोविड-19 से अधिक खतरा रहता है और उन्हें सही से देखभाल की आवश्यकता है। इसके बावजूद उनके साथ किसी तरह से किया जाने वाला दुर्व्यवहार काफी हानिकारक हो सकता है।

बच्चे

ऐसे घर जिनमें हिंसा होती है, उनमें रहने वाले बच्चों में भी डर होता है कि वे बड़े होकर हिंसक प्रवृति के हो सकते हैं। यह हिंसा सिर्फ शारीरिक या यौन रूप से ही नहीं, बल्कि मौखिक और भावनात्मक भी हो सकती है। बच्चे अपनी भावनाओं को ठीक से व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घरेलू हिंसा के मामलों का उनपर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। घरेलू अत्याचार का सामना करने वाली महिलाओं को सहायता प्रदान करने के साथ-साथ उनके बच्चों पर भी ध्यान केंद्रित करना बहुत आवश्यक होता है। ऐसे वक्त में उन्हें भी सहानुभूति की अत्यंत आवश्यकता होती है।

पुरुष

भारत जैसे देश जहां आमतौर पर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में निम्न माना जाता है, वहां पुरुष भी इस प्रकार की हिंसा के शिकार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली के शक्ति शालिनी के काउंसलरों के सामने पुरुषों के साथ भी घरेलू हिंसा के मामले सामने आए हैं। संभव है कि भारत में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा का आंकड़ा प्रतिशत में बहुत कम हो, लेकिन इस आधार पर हिंसा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

घरेलू हिंसा के मामलों मे बढ़ोतरी को रोकने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि पुलिस या स्थानीय प्रशासन को इसकी त्वरित शिकायत पहुंचाई जाए। ताकि मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी आवश्यक कदम उठाए जा सकें। वैसे तो पुलिस लॉकडाउन को प्रभावी रूप से लागू कराने में लगी हुई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपकी सहायता नहीं कर सकते हैं। चूंकि, लॉकडाउन के दौरान आप कहीं और जा नहीं सकते हैं, ऐसे में घर में ही रहकर बिना किसी कार्रवाई के आपका जीवन काफी मुश्किलों भरा हो सकता है। काउंसलर, चिकित्सक आदि तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इनसे फोन, इंटरनेट, आदि के माध्यम से सहायता ली जा सकती है। गंभीर मामलों के लिए पुलिस हमेशा मदद के लिए तैयार रहती है।

घरेलू हिंसा को कैसे दूर किया जा सकता है इस बारे में किए गए सवाल पर काउंसलरों ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं।

स्थिति का आकलन करें

स्थिति का मूल्यांकन करें और पता लगाने की कोशिश करें कि इसे आपसी सामंजस्य से कैसे ठीक किया जा सकता है। मामला अगर बहुत गंभीर है तो इसकी शिकायत कर सहायता मांगने में देरी नहीं की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में की गई देरी आपके लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। यदि आपको लगता है कि मामले को सुलझाया जा सकता है तो आप निम्न सुझावों को पालन में ला सकते हैं।

मामले को बढ़ाने वाले कारकों से बचें

यदि आपको लगता है कि किसी मामले में हिंसा की आशंका बढ़ जाती है, तो उन कारकों से बचने का प्रयास करें जिससे हिंसा बढ़ रही होती है। ऐसे समय में आपका ध्यान किसी तरह से स्थिति को शांत करने पर होना चाहिए। इससे हिंसा के डर को कम किया जा सकता है।

फिजिकल डिस्टेंस बनाए रखें

जिस व्यक्ति से हिंसा का डर हो उससे दूरी बनाकर रखें। जैसे उस कमरे में न रहें जहां वह हो। यदि एक अलग कमरा नहीं है, तो स्वयं को दूसरे कामों में व्यस्त रखें और उस व्यक्ति से कुछ समय के लिए दूरी बनाए रखें।

ध्यान बांटने का प्रयास करें

जब आप ऐसे व्यक्ति या स्थित में रह रहे ​हों तो कोशिश करें कि स्वयं को ऐसी गतिविधियों में व्यस्त रखें, जिससे आपका ध्यान भटके। उदाहरण के लिए आप टीवी देख सकते हैं, इससे एक साथ रहते हुए भी शारीरिक रूप से एक-दूसरे से अलग रहेंगे।

सहायता मांगें

घरेलू हिंसा के मामलों में काउंसलर और थेरेपिस्ट से संपर्क करें और मामले के बारे में उन्हें सारी जानकारी दें। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और यह सुनिश्चित होगा कि ये लोग आपको इस मुसीबत से निकाल सकते हैं। यदि घर पर हिंसा जैसी स्थिति देखें तो तुरंत हेल्पलाइन पर कॉल करें और जितनी जल्दी हो सके दोस्तों, परिवार आदि की मदद लें। लॉकडाउन में होने का मतलब यह नहीं है कि आप हिंसा जैसे मामलों पर चुप्पी बनाए रखें।

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घरेलू हिंसा या शोषण के किसी भी मामले की शिकायत के लिए आप इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। अगर आपके जानने में कोई इस तरह के मामलों का शिकार हो तो उसकी भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

  • राष्ट्रीय महिला आयोग : 7217735372
  • शक्ति शालिनी, दिल्ली : 011-24373737
  • नज़रिया, दिल्ली : 9818151707
  • जागोरी, दिल्ली : 26692700
  • नारी समता मंच, पुणे : 9987720696
  • स्वयं, कोलकाता : 9830747030; 9830204393
  • आली, लखनऊ : 9415343437
  • आली, झारखंड : 9693853019
  • आकांक्षा सेवा सदन, मुजफ्फरपुर : 9905443544
  • सेहत, मुंबई : 9029073354

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संदर्भ

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