देश-दुनिया में कोविड-19 बीमारी से आम लोगों के साथ डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। भारत की बात करें तो यहां जिन राज्यों में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या सैकड़ों में है, वहां कई डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी कोविड-19 के टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए हैं। इन राज्यों में दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि शामिल हैं। हालात ऐसे हैं कि कहीं-कहीं किसी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र का पूरा स्टाफ ही बीमार पड़ गया, जिसके चलते उसे बंद ही करना पड़ा।
खबरों के मुताबिक, दिल्ली में ऐसा मामला सामने आया है। यहां कथित रूप से दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में 18 स्वास्थ्यकर्मियों के कोविड-19 से ग्रस्त होने की पुष्टि हुई है। इसके बाद संस्थान के कई विभागों को बंद कर दिया गया है और मरीजों को किसी दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने की बात कही गई है। सोमवार को मुंबई में भी ऐसा ही मामला सामने आया। यहां एक अस्पताल के 29 स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना वायरस से पीड़ित पाए जाने के बाद उसे बंद कर दिया गया। इन 29 मरीजों में 26 नर्स और तीन डॉक्टर शामिल हैं।
पुणे में भी स्वास्थ्यकर्मियों के बीमार होने की खबरें आई हैं। यहां डीवाई पाटिल अस्पताल में डॉक्टरों समेत कम से कम 92 स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 से बीमार हो गए हैं। बताया जा रहा है कि एक हादसे में घायल हुए युवक के इलाज के दौरान यह संक्रमण अस्पताल में फैला। टेस्ट में मालूम चला कि युवक कोविड-19 से संक्रमित था।
देश में अब तक कई डॉक्टर संक्रमित
ताजा घटनाक्रम से पहले शुक्रवार तक के आंकड़ों की बात करें तो तब तक देशभर में 50 से ज्यादा डॉक्टर और नर्स कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों से हवाले से यह जानकारी दी गई थी। उन्होंने इन डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स के संक्रमित होने का कारण उनके दोस्त और संबंधियों को बताया। खबरों के मुताबिक, इन स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना वायरस का संक्रमण, कोविड-19 के उन रोगियों से नहीं मिला जिनका वे इलाज कर रहे थे, बल्कि ये उन व्यक्तियों के संपर्क में आए जिनका संबंध विदेश यात्रा से जुड़ा था।
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क्या सुरक्षा संसाधनों में कमी एक वजह?
एक तरफ डॉक्टर कोविड-19 से बीमार पड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनके और स्वास्थ्यकर्मियों के पास संक्रमण से बचने के लिए सुरक्षा संसाधनों की कमी देखने को मिल रही है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि इलाज के दौरान संक्रमण से बचने के लिए जरूरी पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वटमेंट यानी पीपीई किट जैसे कई उपकरणों की कमी देखने को मिल रही है। इसके चलते डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को अपनी सुरक्षा से समझौता कर मरीजों को देखना पड़ रहा है। गौरतलब है कि बीती 27 फरवरी को डब्ल्यूएचओ ने अपने निर्देशों में इसका जिक्र किया था। उसने कहा था वैश्विक स्तर पर पीपीई का स्टोरेज कम है और विशेष रूप से मेडिकल मास्क और चश्मों की कमी है।
इतना ही नहीं, भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय ने भी 18 मार्च को हुई एक बैठक में पीपीई की कमी को स्वीकारा था। मंत्रालय ने अपनी ओर से जारी दस्तावेज में कहा कि भारत को सात लाख 25,000 गाउन (मेडिकल कपड़े) और 60 लाख एन95 मास्क की जरूरत है, लेकिन सरकार मांग को पूरा करने कि हालत में नहीं है। यही वजह थी कि पीपीई की कमी को पूरी करने के लिए केंद्र सरकार ने अगले ही दिन यानी 19 मार्च को एक अधिसूचना जारी की। इसके तहत सरकार ने घरेलू रूप से निर्मित पीपीई के साथ-साथ कच्चे मामले के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
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केंद्र सरकार ने की देरी: मीडिया रिपोर्ट्स
लेकिन सरकार ने ऐसा करने में कथित रूप से देरी कर दी। पिछले हफ्ते आई एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पीपीई उपकरणों में देखी जा रही कमी के पीछे सरकार का ढुलमुल रवैया भी सामने आया है। प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (पीडब्ल्यूएमएआई) के चेयरमैन संजीव ने एक मीडिया संस्थान से बातचीत में कहा कि देश में पीपीई के उत्पादकों ने फरवरी में ही सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया था कि वह देश में पीपीई किट्स का स्टॉक करे, लेकिन उसने प्रतिक्रिया देने में पांच हफ्तों की देरी की। इसका परिणाम अब सामने आ रहा है। कोरोना संकट के बीच देशभर में डॉक्टरों के संक्रमित होने का खतरा पैदा हो गया है। यहां बता दें कि पीडब्ल्यूएमएआई के चेयरमैन संजीव पीपीई की कमी के संबंध में केंद्र सरकार के साथ काम कर रहे हैं।