कोविड-19 से ग्रस्त दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की हालत में सुधार बताया गया है। खबरों के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी दिए जाने के बाद सत्येंद्र जैन की सेहत में सुधार देखा गया है। दिल्ली के साकेत इलाके में स्थित मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों के हवाले से एनडीटवी ने बताया है कि सत्येंद्र जैन को अब बुखार नहीं है और उनका ऑक्सीजन लेवल भी पहले से बेहतर हुआ है। वहीं, समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय ने बताया है कि सत्येंद्र जैन को मंगलवार को जनरल वार्ड में शिफ्ट किया जा सकता है। इसके अलावा, समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर बताया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की एक टीम सत्येंद्र जैन का इलाज कर रहे डॉक्टरों की मदद करने के लिए रखी गई है।
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सुरक्षित और जीवनरक्षक है प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी की मदद से सत्येंद्र जैन की हालत में सुधार होने की खबर ऐसे समय में आई है जब इलाज करने की इस तकनीक को शोधकर्ताओं ने सुरक्षित और जीवन बचाने वाली थेरेपी बताया है। 'मायो क्लिनिक प्रोसीडिंग्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित होने वाले एक शोध के मुताबिक, कोविड-19 के मरीजों को कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी दिया जाना सुरक्षित है और यह इस बीमारी के मरीजों की मृत्यु दर को कम करने में भी प्रभावी है। शोधकर्ताओं ने अस्पतालों में भर्ती कोई 20 हजार कोविड-19 मरीजों पर किए रिसर्च के बाद यह बात कही है।
इससे पहले भी छोटे सैंपलों पर आधारित अध्ययनों में कहा गया है कि प्लाज्मा थेरेपी की मदद से कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों को बचाने में मदद मिल सकती है। लेकिन अब अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए ने अपने यहां के शोधकर्ताओं और ब्लड बैंकिंग से जुड़े लोगों के साथ मिलकर एक बड़े सैंपल पर आधारित शोध के हवाले से कहा है कि इलाज की यह तकनीक सुरक्षित होने के साथ-साथ कोविड-19 के गंभीर मरीजों की जान बचाने में कारगर भी है।
कैसे किया गया शोध?
शोधकर्ताओं ने 'यूएस एफडीए एंक्सपेंडेड एक्सेस प्रोग्राम' के तहत तीन अप्रैल से लेकर दो जून के बीच कोविड-19 के हजारों गंभीर मरीजों को बतौर प्रतिभागी अपने अध्ययन में शामिल किया। यह सुनिश्चित किया गया कि इन सभी 20 हजार मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी जाए। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के उन मरीजों से प्लाज्मा लिया, जो हाल ही में इस बीमारी से उबरे थे। सभी प्रतिभागियों को 200 से 500 मिलीग्राम कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा नसों के जरिये दिया गया। इसके बाद उनकी सेहत में होने वाले बदलाव के लिए सात दिनों तक इंतजार किया गया।
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विपरीत प्रभाव काफी कम
किसी बीमारी के इलाज के लिए दिए गए ड्रग या उपचार से मरीज पर विपरीत प्रभाव पड़ने को मेडिकल भाषा में 'सीरियस एडवर्स इवेंट' (एसएई) कहा जाता है। ये विपरीत प्रभाव कई अन्य प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का कारण बन सकते हैं, जिनसे मरीज की मौत भी हो सकती है। इस शोध में यह पाया गया कि प्लाज्मा थेरेपी दिए जाने के बाद मरीजों में एसएई के मामले तुलनात्मक रूप से कम थे। सात दिनों के बाद कुल 1,136 मरीजों में एसएई से जुड़े अलग-अलग मामले (जैसे ब्लड क्लॉटिंग, ब्लड प्रेशर और हदय संबंधी रोग) देखने को मिले, जबकि गंभीर मरीजों वाले सभी समूहों को मिलाकर मृत्यु दर नौ प्रतिशत से नीचे (8.6 प्रतिशत) रही। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 के कम गंभीर मरीजों से तुलना करने पर यह मृत्यु दर उल्लेखनीय रूप से कम है।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
इस तकनीक में बीमारी से ठीक हुए लोगों के शरीर के खून से प्लाज्मा निकाल कर उसी बीमारी से पीड़ित दूसरे मरीजों का दिए जाते हैं। प्लाज्मा रक्त में मौजूद पीले रंग का तरल पदार्थ होता है, जिसके जरिये रक्त कोशिकाएं और प्रोटीन शरीर के अलग-अलग अंगों तक पहुंचती हैं। प्लाज्मा थेरेपी को कॉन्वलेंसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी कहते हैं।
कोविड-19 या अन्य संक्रामक रोग होने के प्रतिक्रिया स्वरूप हमारा शरीर रोग-प्रतिकारकों यानी एंटीबॉडीज का निर्माण कर लेता है। ये रोग-प्रतिकारक कोविड-19 और अन्य बीमारियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिन लोगों की रोग-प्रतिकारक क्षमता या इम्यून सिस्टम पहले से मजबूत होती है या इलाज के दौरान दुरुस्त हो जाती है, वे आसानी से कोरोना वायरस के संक्रमण को मात दे देते हैं। यही वजह है कि दुनियाभर में डॉक्टर और शोधकर्ता कोविड-19 की काट ढूंढने के लिए प्रयोग के तहत ऐसे लोगों के ब्लड सैंपल में से प्लाज्मा अलग करके उन लोगों को दे रहे हैं, जिनमें एंटीबॉडीज या तो बने नहीं हैं या वायरस को रोक पाने अथवा खत्म करने में सक्षम नहीं हैं।
हालांकि, प्लाज्मा थेरेपी से मरीज का ठीक होना कई बातों पर निर्भर करता है। हाल के दिनों में इस विषय पर कुछ शोध सामने आए हैं। इनमें से एक में बताया गया है कि कोविड-19 के मरीजों के ठीक होने के बाद उनके शरीर में कोरोना वायरस को खत्म करने वाले एंटीबॉडीज कुछ समय के बाद कम या खत्म हो जाते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि इस बीमारी के मरीजों के ठीक होने के बाद जितना जल्दी हो सके उनके शरीर से प्लाज्मा के रूप में एंटीबॉडी ले लिए जाएं। इससे उस मरीज के बचने की संभावना बढ़ सकती है, जिसे एंटीबॉडीज दिए जा रहे हैं।