शरीर के इम्यून सिस्टम की अतिसक्रियता को दबाने में इस्तेमाल होने वाले एक ड्रग से कोविड-19 के मरीजों की हालत में तेजी से सुधार किया जा सकता है, अस्पतालों में होने वाली मौतों में कमी की जा सकती है और मरीजों को वेंटिलेटर पर ले जाने की आशंका भी कम हो सकती है। यूरोप की चर्चित गैर-सरकारी संस्था यूरोपियन लीग अगेन्स्ट रूमटिजम (ईयूएलएआर) द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका ऐनल्स ऑफ रूमैटिक डिसीजेज (एआरडी) में छपी रिपोर्ट में कोविड-19 और साइटोकिन स्टॉर्म सिंड्रोम (सीएसएस)  के संबंध और इससे जुड़े इलाज के अध्ययन की जानकारी दी गई है। खबर के मुताबिक, इस अध्ययन से यह पता चला है कि ग्लूकोकोर्टिकोइड्स और आईएल-6 अवरोधकों (जो एक प्रकार के स्टेरॉयड हैं) का इस्तेमाल करते हुए और मरीजों की बारीकी से निगरानी कर कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों की हालत में सुधार किया जा सकता है।

अध्ययन में दावा किया गया है कि इस प्रयोगात्मक इलाज से जुड़े प्रोटोकॉल का पालन कर अस्पतालों में कोविड-19 से होने वाली मौतों को 65 प्रतिशत तक किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि इस प्रयोग की मदद से कोविड-19 के मरीजों की सांस की तकलीफ में सुधार की गुंजाइश सामान्य उपचार से 79 प्रतिशत अधिक है, जिसे समय के साथ और बेहतर किया जा सकता है। इसके अलावा, इस प्रकार के इलाज से मकैनिकल वेंटिलेशन के लिए मरीजों की भर्ती में 71 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है।

(और पढ़ें - कोविड-19: कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले सामान्य ड्रग में कोरोना वायरस को रोकने की क्षमता, इजरायल के वैज्ञानिक ने अध्ययन के आधार पर किया बड़ा दावा)

मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि कोविड-19 बीमारी के गंभीर परिणामों को अक्सर साइटोकिन स्टॉर्म से जोड़ा जाता है। यह स्थिति तब पैदा होता है जब संक्रमण की वजह से इम्यून सिस्टम आवश्यकता से ज्यादा सक्रिय हो जाता है। इस कारण शरीर के अंदरूनी अंगों में सिस्टमैटिक तरीके से सूजन और जलन बढ़ने लगती है। कई बार इसके परिणाम मरीज की मृत्यु के रूप में सामने आते हैं। कोविड-19 को लेकर बताया जाता है कि इसके 25 प्रतिशत मरीजों में इम्यून हाइपरऐक्टिविटी एक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में देखने में आई है।

ऐसे में नीदरलैंड स्थित जाइडरलैंड मेडिकल सेंटर (जेडएमसी) के शोधकर्ताओं ने अध्ययन कर पाया है कि वहां मार्च महीने में भर्ती हुए कोविड-19 के गंभीर मरीजों में से 40 प्रतिशत की मृत्यु का कारण सीएसएस ही था। वहीं, अप्रैल महीने के डेटा के विश्लेषण में पता चला कि आईएल-6 और ग्लूकोकोर्टिकोइड्स युक्त ड्रग्स की मदद से 86 मरीजों का इलाज किया गया था। उनकी तुलना मार्च में भर्ती हुए मरीजों से करने पर मालूम हुआ कि ग्लूकोकोर्टिकोइड्स के इस्तेमाल से कोविड के गंभीर मरीजों की हालत सुधारने में नाटकीय ढंग से फायदा मिला है। यहां स्पष्ट कर दें कि ये परिणाम केवल साइटोकिन स्टॉर्म से प्रभावित कोविड-19 मरीजों के मामले में देखने को मिले। सभी मरीजों पर संबंधित अवरोधक युक्त ड्रग्स नहीं आजमाए गए।

(और पढ़ें - मुंबई में कोविड-19 से पीड़ित कम से कम 18 बच्चों में कावासाकी बीमारी से मिलते-जुलते सिंड्रोम के लक्षण दिखाई दिए, दो की मौत)

जानकारों के मुताबिक, इस अध्ययन में मिले परिणाम उन दावों के विपरीत हैं, जिनमें कहा गया है कि ग्लूकोकोर्टिकोइड्स से कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों का इलाज नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कुछ विशेषज्ञों समेत कई मेडिकल एक्सपर्ट ने इस बारे में चेतावनी देते हुए कहा है कि कोविड-19 के सीरियस केसों में ग्लूकोकोर्टिकोइड्स के इस्तेमाल का अंजाम गंभीर हो सकता है, जिसकी कीमत मरीजों को चुकानी पड़ सकती है।

लेकिन जेडएमसी के अध्ययन के परिणाम कुछ और ही कहानी बयान करते हैं। यहां के शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लूकोकोर्डिकोइड्स से इलाज को लेकर अभी तक जो दावे किए गए हैं, उनकी पुष्टि के लिए रैंडमाइज तरीके से कंट्रोल ट्रायल किए जाने की जरूरत है। इन वैज्ञानिकों को विश्वास है कि उनके अध्ययन में इस अवरोधक से संबंधित परिणाम जबर्दस्त हैं। उनका सुझाव है कि साइटोकिन स्टॉर्म सिंड्रोम को कोविड-19 की ऐसी जटिलता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, जिसका इलाज किया जा सकता है और प्रतिरक्षा यानी इम्यूनिटी को दबाने वाले इस ट्रीटमेंट को समय रहते शुरू किया जाना चाहिए।

(और पढ़ें - लांसेट पत्रिका ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन से कोविड-19 के खिलाफ 'डबल प्रोटेक्शन' मिलने की पुष्टि की, पहले-दूसरे चरण के ट्रायल के परिणाम सामने रखे)


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: इस प्रयोगात्मक इलाज से कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों की मृत्यु दर 65 प्रतिशत तक कम करने का दावा, जानें क्या है मामला है

ऐप पर पढ़ें