भारत में कोरोना वायरस के एयरबोर्न ट्रांसमिशन यानी हवा में फैलने की संभावना को लेकर पहली बार कोई अध्ययन होने जा रहा है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार दि इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि कोविड-19 महामारी की वजह बने सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस के एयरबोर्न ट्रांसमिशन को समझने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों से जुड़े कार्यस्थलों से एयर सैंपल लिए जाएंगे। सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर मांडे ने अखबार से कहा कि अध्ययन के लिए आईसीयू, हॉस्पिटल कॉरिडोर, वेटिंग रूम और स्वास्थ्यकर्मियो से जुड़ी अन्य जगहों से हवा के नमूने इकट्ठे किए जाएंगे। इनकी जांच कर यह पता लगाया जाएगा कि क्या कोरोना वायरस हवा में फैलकर भी कोविड-19 महामारी को बढ़ाने का काम कर रहा है या नहीं।

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गौरतलब है कि कुछ समय पहले दुनियाभर के 239 वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर कहा था कि वह इस जानकारी को स्वीकार करे कि कोरोना वायरस हवा के जरिये भी फैलता है। इन वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अध्ययनों में सार्स-सीओवी-2 के एयरबोर्न ट्रांसमिशन की बात सामने आने के आधार पर यह बात कही थी। इन स्टडीज में कहा गया है कि इसकी काफी संभावना है कि नया कोरोना वायरस सूक्ष्म कणों के जरिये भी हवा में काफी देर तक मौजूद रहकर लोगों को संक्रमित कर सकता है।

डब्ल्यूएचओ ने इस संभावना के केवल अस्पताल या अन्य स्वास्थ्य केंद्रों तक सीमित होने की बात स्वीकारी है। खुले माहौल में भी वायरस के हवा में फैलने के दावे की समीक्षा अभी की जा रही है। इस बीच, भारत में कोविड-19 के मरीजों की संख्या लगातार नए रिकॉर्ड बना रही है। ऐसे में वायरस के ट्रांसमिशन के संभावित माध्यम के रूप में यहां के वैज्ञानिकों ने एयरबोर्ड ट्रांसमिशन की जांच करने का फैसला किया है। इस बारे में सीएसआईआर के महानिदेशक का कहना है, 'मैंने उस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, लेकिन सीएसआईआर की वेबसाइट पर उसे पोस्ट जरूर किया था। मैं समझता हूं कि हमें इस संभावना को लेकर खोजबीन करनी चाहिए। अगर हम कहते हैं कि (वायरस) हवा में नहीं है तो इसे साबित करने की जरूरत है।'

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डॉ. मंडे ने अपने एक ब्लॉग में अलग-अलग अध्ययनों के हवाले से कहा है कि इनमें सामने आए सबूत और दावे यह कहते हैं कि सार्स-सीओवी-2 का एयरबोर्न ट्रांसमिशन एक संभावना है। वहीं, इसकी पुष्टि के लिए होने वाले अध्ययन को लेकर उनका कहना है, 'आने वाले दिनों में कई तरह के सैंपल लिए जाएंगे। सीएसआईआर से जुड़े संस्थान इस अध्ययन में शामिल होंगे। इनमें चंडीगढ़ के इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबायल टेक्नॉलजी और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी शामिल हैं।'

सीएसआईआर प्रमुख ने कहा कि इस अध्ययन का मकसद यह चेक करना है कि वायरस हवा में मौजूद कणों में बना रहता है या नहीं, अगर ऐसा है तो वायरस कितनी देर तक हवा में रहता है। डॉ. मंडने कहा, 'हम यह समझना चाहते हैं कि क्या वाकई में अस्पतालों के गलियारों या वेटिंग रूम्स में इंतजार करने वाले लोगों को खतरा है या नहीं।' बता दें कि इस अध्ययन के तहत शुरुआती जांच के लिए 300 से 400 एयर सैंपल लिए जाएंगे। साथ ही अलग-अलग लोकेशन से स्वास्थ्यकर्मियों को भी शामिल किया जाएगा। विश्लेषण के तहत यह पता लगाया जाएगा कि एयरबोर्न ट्रांसमिशन है या नहीं और अगर है तो स्वास्थ्यकर्मियों को उससे कितना खतरा है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: भारत में कोरोना वायरस के एयरबोर्न ट्रांसमिशन की जांच होगी, सीएसआईआर अध्ययन में शामिल होगा है

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