एक अध्ययन के तहत ट्राइवेलेंट फ्लू वैक्सीन कोविड-19 के मरीजों की जान बचाने, वेंटिलेटर की जरूरत को कम करने और बीमारी को गंभीर रूप लेने से रोकने में सक्षम पाई गई है। ब्राजील में किए गए इस अध्ययन में कोविड-19 के 92 हजार से ज्यादा मरीजों को शामिल किया गया था। इसके परिणामों के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोविड-19 के गंभीर खतरे को कम करने के लिए ट्राइवेलेंट फ्लू वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, खासकर उन लोगों पर जिनके बीमारी के चपेट में आने की संभावना ज्यादा है। यहां बता दें कि यह अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। फिलहाल इसे 'मेडआरकाइव' पर पढ़ा जा सकता है, जहां यह बीते महीने प्रकाशित हुआ था।

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शोध से जुड़ी रिपोर्टों में बताया गया है कि इसमें शामिल प्रतिभागियों को हाल में फ्लू के इन्जेक्शन नहीं लगाए गए थे। इन सभी 92 हजार मरीजों में से 84 प्रतिशत आरटी-पीसीआर टेस्ट के तहत पॉजिटिव पाए गए थे। बाकी मरीजों की पहचान क्लिनिकली की गई थी। कुल मरीजों में 57 प्रतिशत पुरुष थे। सभी को 59 वर्ष की औसत उम्र वाले अलग-अलग समूहों में बांटा गया था। ज्यादातर मरीजों की आयु 60 से 69 वर्ष के बीच थी। उनमें से 37 प्रतिशत को अलग-समय में आईसीयू में भर्ती करना पड़ा था। वहीं, 23 प्रतिशत को वेंटिलेटर पर लिटाने की जरूरत पड़ी थी।

इसके अलावा 66 प्रतिशत मरीज पहले से कार्डियोवसक्युलर से पीड़ित थे, 55 प्रतिशत डायबिटीज से परेशान थे, 11 प्रतिशत को न्यूरॉजिकल (तंत्रिका) संबंधी बीमारी थी और 12 प्रतिशत किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। अध्ययन के इम्यूनाइजेशन (प्रतिरक्षा) साइकिल के तहत करीब एक-तिहाई मरीजों को फ्लू इन्जेक्शन के शॉट दिए गए। जिन मरीजों को ये शॉट लगाए गए, उनमें से ज्यादातर की उम्र 60 साल या उससे ज्यादा थी।

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रिपोर्ट के मुताबिक, सभी समूहों में शामिल लोगों में से 50 प्रतिशत से कम को फ्लू वैक्सीन लगाई गई। इनमें बच्चे और 60 या उससे ज्यादा उम्र के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा थी। विश्लेषण के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में शामिल जिन प्रतिभागी मरीजों को फ्लू वैक्सीन नहीं दी गई, उनकी मृत्यु दर में बढ़ोतरी देखने को मिली। वहीं, जिन मरीजों को वैक्सीन दी गई, उनमें मृत्यु दर पहले से कम पाई गई। वहीं, जब फ्लू वैक्सीन के प्रभाव को उम्र के हिसाब से देखा गया तो पता चला कि उसने मरीजों में मृत्यु दर 35 प्रतिशत तक कम कर दी थी।

यह भी पता चला कि जिन मरीजों को फ्लू वैक्सीन दी गई, उनमें आईसीयू या इंटेंसिव केयर में जाने की दर आठ प्रतिशत तक कम हो गई थी। वहीं, ऑक्सीजन सपोर्ट पर जाने वाले मरीजों की संख्या 20 प्रतिशत रही। अध्ययन में पाया गया कि जिन मरीजों को कोविड-19 के लक्षण दिखने से पहले वैक्सिनेट किया गया था, उनमें मृत्यु दर 20 प्रतिशत तक कम हो गई थी।

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जानकारों की मानें तो अध्ययन से यह साफ हुआ कि इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन से कोविड-19 के बुरे प्रभावों का खतरा नहीं बढ़ता, लेकिन उनसे सुरक्षा मिल सकती है। इसमें सहज प्रतिरोधक क्षमता की भूमिका अहम है। बताया गया है कि शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद इम्यूनोलॉजिकल मेमेरी सेल्स कृत्रिम या नेचुरल एंटीजन की मदद से सक्रिय किए जा सकते हैं। परिणामस्वरूप, इनैट इम्यून सेल्स शरीर को कई प्रकार के रोगाणुओं से बचाने में लग जाते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले शोधों में भी यह तथ्य सामने आ चुका है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 की गंभीरता और मृत्यु दर से सुरक्षा दे सकती है इन्फ्लूएंजा वैक्सीन: शोध है

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