अमेरिका की जानी-मानी मेडिकल डिवाइस और फार्मास्यूटिकल कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन (जेजे) ने दावा किया है कि उसके द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन के बंदरों पर किए गए परीक्षण के सकारात्मक परिणाम मिले हैं। जानी-मानी विज्ञान व मेडिकल पत्रिका नेचर में इस दवा से जुड़े एनीमल ट्रायल का अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि जेजे कंपनी की यह वैक्सीन 'एडी26' नाम के वायरस पर आधारित है। वैक्सीन बनाने वाले शोधकर्ताओं ने इस विषाणु में कुछ इस तरह के बदलाव किए हैं कि यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को जीवित रखते हुए उसे अपने साथ रखकर चल सकता है। पत्रिका की मानें तो एडी26 मानव कोशिकाओं में घुस सकता है, लेकिन अपनी कॉपियां नहीं बना सकता। वायरस के मुख्य कोशिका में घुसने के बाद वह इसके स्पाइक जीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने में करती है। एडी26 वैक्सीन को लेकर एक जानकारी यह भी है कि यूरोप के ड्रग नियामकों ने इसी महीने इस टीके को इबोला के इलाज के लिए अप्रूव किया है। यह पहली बार है कि किसी बीमारी के इलाज के लिए वायरस-एसिस्टेड जीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है।
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प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जेजे ने हाल ही में यूरोप और अमेरिका में अपनी एडी26 वैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल के तहत इंसानों पर आजमाना शुरू किया है। इसे लेकर मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने संतोषजनक प्रतिक्रियाएं दी हैं। हालांकि, उन्होंने वैक्सीन से जुड़े शुरुआती परिणामों के आधार जल्दबाजी में बड़े ट्रायल करने को लेकर सावधानी बरतने को भी कहा है। इन विशेषज्ञों में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में विषाणु विशेषज्ञ एंजिला रैसम्युसन भी शामिल हैं। वे जेजे वैक्सीन पर हुए स्टडी से नहीं जुड़ी हैं। उनका कहना है, 'यह हफ्ता अच्छा गया है। अब हमारे पास दो वैक्सीन हैं जो बंदरों पर काम करती हैं। लेकिन हमें शॉर्टकट नहीं अपनाने चाहिए।' वहीं, बॉस्टन स्थित बेथ इजरायल डीकोनेस मेडिकल सेंटर के विषाणु विज्ञानी और वैक्सीन बनाने वाले शोधकर्ताओं की टीम के प्रमुख डॉ. डैन बरूच का कहना है कि वैक्सीन के ट्रायल के परिणाम कोरोना वायरस के खिलाफ काफी ज्यादा सुरक्षा देने का आश्वसान देते हैं। हालांकि डॉ. एंजिला का कहना है कि जल्दाबाजी में नए परिणामों का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर होने वाले मानव परीक्षणों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
बहरहाल, एनवाईटी के मुताबिक, जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी की वैक्सीन को इंसानों को दो बार लगाए जाने की जरूरत पड़ सकती है। अखबार ने बताया कि डॉ. बरूच और उनके सहयोगियों ने मार्च महीने में कोरोना वायरस के इलाज के लिए एडी26 वैक्सीन के सात अलग-अलग वैरिएंट डिजाइन किए थे। इसके लिए उन्होंने स्पाइक जीन में छोटे-छोटे बदलाव किए, यह देखने के लिए कि वे कोशिकाओं में वायरल प्रोटीन की और कॉपियां बना सकते हैं या नहीं। एडी26 से जोड़े गए स्पाइक प्रोटीन की स्थिरता को और सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने इन वैरिएंट्स के टेस्ट भी किए। पिछले शोध के परिणाम के चलते डॉ. बरूच और उनकी टीम को एडी26 की क्षमता को लेकर संदेह था। इसीलिए उन्होंने पहले एक डोज के वैक्सीन का प्रयोग करने का फैसला किया ताकि यह जाना जा सके कि इतनी मात्रा इम्यूनिटी विकसित करने के लिए पर्याप्त है या नहीं।
बंदरों को वैक्सीन दिए जाने के बाद इन वैज्ञानिकों ने छह हफ्तों तक का इंतजार किया। इसके बाद उन्होंने इन जानवरों को वायरस से संक्रमित किया। दावा है कि सात में से छह वैक्सीन वैरिएंट से बंदरों को कोरोना वायरस के खिलाफ आंशिक सुरक्षा मिली। इसका मतलब है कि वैक्सीन के प्रभाव के चलते जानवरों में वायरस की कॉपिया बनने का स्तर काफी कम रहा। वहीं, सातवें वैक्सीन वैरिएंट ने बाकी सभी वैक्सीन से ज्यादा क्षमता वाली सुरक्षा प्रदान की। 'नेचर' की मानें तो छह में से जिन पांच बंदरों को यह वैक्सीन दी गई, उनमें टेस्टिंग के दौरान कोरोना वायरस डिटेक्ट नहीं हो पाया। वहीं, छठवें बंदर में काफी कम लेवल पर वायरस पाया गया। इस परिणाम से चकित जेजे कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. पॉल स्टॉफेल्स ने कहा कि उनकी वैक्सीन के एक ही शॉट से जानवरों में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित होना हैरान करने वाला था।
एनवाईटी के मुताबिक, इस परिणाम के बाद जॉनसन एंड जॉनसन ने पिछले हफ्ते से सबसे अच्छे वैक्सीन वैरिएंट के पहले मानव परीक्षण शुरू कर दिए हैं। अगर इनमें भी वैक्सीन ने अपेक्षित परिणाम दिए तो सितंबर तक तीसरी स्टेज के ट्रायल किए जाने की योजना है। कंपनी का कहना है कि वह वैक्सीन के एक और दो दोनों प्रकार के डोज की टेस्टिंग करना चाहती है।