कोविड-19 महामारी के इलाज के लिए तैयार की गई सबसे भरोसेमंद वैक्सीनों में से एक जॉनसन एंड जॉनसन (जेएनजे) कंपनी की 'एडी26-सीओवी-2-एस' (या जेएनजे-78436735) वैक्सीन के तीसरे और अंतिम चरण के ट्रायल शुरू हो गए हैं। कंपनी ने बुधवार को इसकी जानकारी दी। इस ट्रायल में जेएनजे ने 60 हजार प्रतिभागियों को शामिल किया है। दुनियाभर में कोविड-19 की किसी संभावित वैक्सीन का इतने बड़े स्तर पर निर्णायक मानव परीक्षण नहीं हुआ है। जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी को उम्मीद है कि वह ट्रायल को इसी साल पूरा कर इसके परिणाम इस वर्षांत या अगले साल की शुरुआत में सामने रख सकती है। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने जेएनजे के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी (सीएसओ) डॉ. पॉल स्टॉफेल्स के हवाले से यह जानकारी दी है। बुधवार को कंपनी के अधिकारियों ने अमेरिकी सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए वैक्सीन को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं। बता दें कि एडी26-सीओवी-2-एस को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने काफी उत्सुकता दिखाई है। हालांकि इस बार यह उत्सुकता अकारण नहीं है।
दरअसल, जेएनजे द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन से उम्मीद बंधने की कई वजहें हैं। इनमें से एक वजह यह है कि अगर यह वैक्सीन अंतिम ट्रायल में भी कोरोना वायरस के खिलाफ सक्षम साबित हुई तो इसका उत्पादन कई अन्य बड़े वैक्सीन दावेदारों के मुकाबले आसान होगा। जेएनजे ने इसका कारण बताया है कि अन्य कोविड वैक्सीन से अलग एडी26-सीओवी-2 की एक ही डोज कोरोना वायरस को रोकने के लिए काफी होगी। वैक्सीन को तैयार करने में भूमिका निभाने वाले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन रिसर्चर डॉ. डैन बैरक कहते हैं कि सिंगल शॉट वैक्सीन होने के चलते जेएनजे की वैक्सीन बड़े पैमाने के टीकाकरण के लिए उपुयक्त विकल्प साबित हो सकती है।
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एक और वजह जेएनजे वैक्सीन के निर्माण में इस्तेमाल हुई तकनीक है। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एडी26-सीओवी-2-एस को बनाने में जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, वह सुरक्षा के लिहाज से इस टीके को अन्य वैक्सीन दावेदारों से ज्यादा सुरक्षित बनाती है। एक और बड़ा एडवांटेज यह है कि इस वैक्सीन को प्रभावी बनाए रखने के लिए इसे लगातार ठंडे तापमान में रखने की जरूरत नहीं है, जबकि अन्य वैक्सीनों से अपेक्षित परिणाम लेने के लिए उन्हें लगातार कम तापमान में जमा कर रखना होगा जोकि अपनेआप में एक जटिल प्रबंधकीय चुनौती है। वैक्सीन की लाखों डोज खरीदने के अलावा इसके रखरखाव का खर्चा भी दुनियाभर की सरकारों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। लेकिन अंतिम ट्रायल के बाद अगर एडी26-सीओवी-2-एस को कोविड-19 के खिलाफ सक्षम करार दिया गया तो अमेरिका समेत तमाम सरकारों की यह चिंता दूर हो सकती है। हालांकि तब वैक्सीन नेशनलिज्म एक समस्या बनकर सामने आ सकता है, लेकिन वह बाद की बात है।
दरअसल, जेएनजे ने एडी26-सीओवी-2-एस को एडिनोवायरस की मदद से तैयार किया है। इस प्रकार की वैक्सीनों को रेफ्रीजरेट करने की आवश्यकता तो होती है, लेकिन बर्फ की तरह जमाने की जरूरत नहीं होती। वहीं, मॉडेर्ना और फाइजर जैसी बड़ी कंपनियों द्वारा निर्मित कोविड वैक्सीनों को जमा कर रखने की जरूरत होगी, क्योंकि वे कोरोना वायरस के जेनेटिक मटीरियल (एमआरएनए) से बनाई गई हैं। इस कारण इन वैक्सीनों का वितरण सरकारों के लिए एक जटिल कार्य हो सकता है, खासतौर पर उन जगहों पर जहां मेडिकल सुविधाएं बहुत अच्छी हालत में नहीं हैं। इस लिहाज से भारत जैसे देशों के लिए जेएनजे या इस तरह की कोई अन्य वैक्सीन का महत्व और बढ़ जाता है, जहां मेडिकल क्षेत्र की हालत पहले से काफी खराब है। यह बात एडी26-सीओवी-2-एस को अन्य प्रतियोगी वैक्सीनों से अलग करती है।
उधर, ट्रायल को लेकर डॉ. स्टॉफेल्स ने कहा है कि वे तीसरे चरण के परीक्षणों से जुड़े प्रोटोकॉल की जानकारी जल्दी ही प्रकाशित करेंगे। साथ ही, पहले और दूसरे ट्रायल के परिणाम भी रिलीज करने की तैयारी की जा रही है। स्टॉफेल्स ने बताया कि इन ट्रायलों में वैक्सीन में वही क्षमता और सुरक्षित स्तर दिखाई दिया है, जैसा कि जानवरों पर किए गए परीक्षणों में देखने को मिला था। उन्होंने कहा कि पहले और दूसरे फेज के ट्रायलों से यह फिर पता चला है कि जेएनजे वैक्सीन का एक ही शॉट लंबे वक्त तक वायरस से सुरक्षा देने के लिए काफी है। यानी अन्य वैक्सीन उम्मीदवारों से अलग इस वैक्सीन के डबल डोज बनाने की जरूरत नहीं होगी, जो व्यापक और तेज इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के लिहाज से एक अच्छी खबर है। निर्णायक परीक्षणों को लेकर सीएसओ स्टॉफेल्स ने कहा है कि कंपनी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, मैक्सिको और पेरू में 215 टेस्टिंग साइटों पर वैक्सीन प्रतिभागियों पर आजमाएगी। उन्होंने बताया कि जेएनजे की योजना अगले साल 100 करोड़ वैक्सीन डोज तैयार करने की है।
क्या है एडी26-सीओवी-2-एस?
अमेरिका की जानी-मानी मेडिकल डिवाइस और फार्मास्यूटिकल कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन (जेएनजे) ने कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को खत्म करने के लिए इस वैक्सीन का निर्माण किया है। इस टीके को 'जेएनजे-78436735' भी कहा जाता है। जुलाई महीने में जब पहली बार कंपनी इस वैक्सीन के एनीमल ट्रायलों के परिणाम लेकर सामने आई थी तो दावा किया गया था कि बंदरों पर किए गए इन परीक्षणों में वैक्सीन ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। तब जानी-मानी विज्ञान व मेडिकल पत्रिका 'नेचर' इन परिणामों और इनसे जुड़े अध्ययन को प्रकाशित किया था। इसमें बताया गया है था जेएनजे की कोरोना वैक्सीन 'एडी26' (एडिनोवायरस) नाम के वायरस पर आधारित है। रिपोर्टों के मुताबिक, वैक्सीन बनाने वाले शोधकर्ताओं ने इस विषाणु में कुछ इस तरह के बदलाव किए हैं कि यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को जीवित रखते हुए उसे अपने साथ रखकर चल सकता है। पत्रिका की मानें तो एडी26 मानव कोशिकाओं में घुस सकता है, लेकिन अपनी कॉपियां नहीं बना सकता। यह विशेषता एडी26-सीओवी-2-एस को सुरक्षित बनाती है। वायरस के मुख्य कोशिका में घुसने के बाद वह इसके स्पाइक जीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने में करती है।
अध्ययन के तहत बंदरों को वैक्सीन दिए जाने के बाद वैज्ञानिकों ने छह हफ्तों तक का इंतजार किया था। इसके बाद उन्होंने इन जानवरों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया। दावा है कि सात में से छह वैक्सीन वैरिएंट से बंदरों को कोरोना वायरस के खिलाफ आंशिक सुरक्षा मिली। बताया गया कि वैक्सीन के प्रभाव के चलते जानवरों में वायरस की कॉपिया बनने का स्तर काफी कम रहा। वहीं, सातवें वैक्सीन वैरिएंट ने बाकी सभी वैक्सीन से ज्यादा क्षमता वाली सुरक्षा प्रदान की। 'नेचर' की मानें तो छह में से जिन पांच बंदरों को यह वैक्सीन दी गई, उनमें टेस्टिंग के दौरान कोरोना वायरस डिटेक्ट नहीं हो पाया। वहीं, छठवें बंदर में काफी कम लेवल पर वायरस पाया गया। इस परिणाम से चकित जेएनजे कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. पॉल स्टॉफेल्स ने कहा था कि उनकी वैक्सीन के एक ही शॉट से जानवरों में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित होना हैरान करने वाला था।