अमेरिकी दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन (जेएनजे) ने अपने द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट 'जेएनजे-78436735' के तीसरे ट्रायल को अस्थायी रूप से रोक दिया है। खबर है कि ट्रायल के दौरान एक प्रतिभागी अज्ञात कारण से बीमार पड़ गया है। इसके बाद कंपनी ने अपने सभी ट्रायलों को अस्थायी रूप से रोकने का फैसला किया है। यह अभी साफ नहीं है कि प्रतिभागी को हुई बीमारी वैक्सीन डोज के कारण हुई है या किसी और वजह से। घटना के बारे में बयान जारी करते हुए जॉनसन एंड जॉनसन ने कहा है कि नागरिकों की सुरक्षा उसके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, इसलिए वह ट्रायल पर फिलहाल के लिए रोक लगा रही है और घटना की जांच कर रही है। बयान में कंपनी ने कहा है कि बीमारियां, दुर्घटनाएं और अन्य प्रकार की अनचाहे इवेंट्स क्लिनिकल स्टडी का हिस्सा हैं, जिनका सामने आना अप्रत्याशित नहीं है, विशेषकर बड़े पैमाने वाले अध्ययनों में।
लेकिन जेएनजे ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है कि जिस प्रतिभागी में ट्रायल के दौरान बीमारी के लक्षण दिखे हैं, उसे वास्तव में हुआ क्या है। इसके लिए कंपनी ने प्रतिभागी की निजता का हवाला देते हुए ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया है और कहा है कि पहले वह सभी तथ्यों को जानेगी। इससे पहले सितंबर महीने में यूनाइटेड किंगडम में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और वहां की जानी-मानी दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका की चर्चित कोरोना वायरस वैक्सीन चडॉक्स एनसीओवी1 का तीसरा ट्रायल भी एक प्रतिभागी में विपरीत न्यूरोलॉजिकल लक्षण दिखने के बाद स्थायी रूप से रोक दिया गया था। उस घटना के सामने आने के बाद भारत से लेकर अमेरिका तक में इस वैक्सीन के ट्रायलों पर वहां के दवा नियामकों द्वारा रोक लगा दी गई थी। हालांकि बाद में इनकी बहाली कर दी गई थी। लेकिन अमेरिका में ज्यादा दिनों तक ट्रायल को फिर से शुरू करने की इजाजत नहीं दी गई थी।
बहरहाल, जेएनजे-78436735 वैक्सीन का ट्रायल रुकना जॉनसन एंड जॉनसन के लिए एक झटका तो है ही। कंपनी दुनिया के सबसे बड़े क्लिनिकल ट्रायल के तहत इस टीके को 60 हजार प्रतिभागियों पर आजमा रही है, यह साबित करने के लिए कि उसके वैक्सीन कैंडिडेट का एक ही शॉट नए कोरोना वायरस के खिलाफ सक्षम एंटीबॉडी पैदा करने के लिए काफी है और ऐसा करते हुए वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं होता। हालांकि अब एक मरीज के ट्रायल के दौरान बीमार होने का मामला सामने आया है, जिसे कंपनी ने भी स्वीकार किया है। इस बारे में उसने जो बयान जारी किया, उसके मुख्य अंश इस प्रकार हैं-
- लोगों की सुरक्षा और स्वास्थ्य हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है
- ट्रायल में एक प्रतिभागी में एक अस्पष्ट (या अज्ञात) बीमारी का पता चलने के बाद हमने अपने सभी ट्रायलों को अस्थायी रूप से रोक दिया है
- कंपनी की गाइडलाइन के मुताबिक, प्रतिभागी की बीमारी की समीक्षा की जा रही है और ट्रायल से जुड़ा डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड भी अपना मूल्यांकन कर रहा है
- इस तरह की प्रतिकूल घटनाएं - जैसे बीमारी, दुर्घटना आदि - क्लिनिकल अध्ययन, विशेषकर बड़े स्तर के अध्ययनों का प्रत्याशित हिस्सा हैं
- हमें प्रतिभागी की निजता का सम्मान करना चाहिए, हम उसकी बीमारी के बारे में और जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं
- आगे और जानकारी देने से पहले हमारे लिए सभी तथ्यों की जानकारी हासिल करना जरूरी है
क्या है एडी26-सीओवी-2-एस?
जॉनसन एंड जॉनसन ने जुलाई महीने में घोषणा की थी कि उसने कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को खत्म करने के लिए 'एडी26-सीओवी-2-एस' नामक वैक्सीन का विकास किया है। इस टीके को 'जेएनजे-78436735' भी कहा जाता है। दो महीने पहले जब पहली बार कंपनी इस वैक्सीन के एनीमल ट्रायलों के परिणाम लेकर सामने आई थी तो दावा किया गया था कि बंदरों पर किए गए इन परीक्षणों में वैक्सीन ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। तब जानी-मानी विज्ञान व मेडिकल पत्रिका 'नेचर' ने इन परिणामों और इनसे जुड़े अध्ययन को प्रकाशित किया था। इसमें बताया गया है था जेएनजे की कोरोना वैक्सीन 'एडी26' (एडिनोवायरस) नाम के वायरस पर आधारित है। रिपोर्टों के मुताबिक, वैक्सीन बनाने वाले शोधकर्ताओं ने इस विषाणु में कुछ इस तरह के बदलाव किए हैं कि यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को जीवित रखते हुए उसे अपने साथ रखकर चल सकता है। पत्रिका की मानें तो एडी26 मानव कोशिकाओं में घुस सकता है, लेकिन अपनी कॉपियां नहीं बना सकता। यह विशेषता एडी26-सीओवी-2-एस को सुरक्षित बनाती है। वायरस के मुख्य कोशिका में घुसने के बाद वह इसके स्पाइक जीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने में करती है।
अध्ययन के तहत बंदरों को वैक्सीन दिए जाने के बाद वैज्ञानिकों ने छह हफ्तों तक का इंतजार किया था। इसके बाद उन्होंने इन जानवरों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया। दावा है कि सात में से छह वैक्सीन वैरिएंट से बंदरों को कोरोना वायरस के खिलाफ आंशिक सुरक्षा मिली थी। बताया गया कि वैक्सीन के प्रभाव के चलते जानवरों में वायरस की कॉपिया बनने का स्तर काफी कम रहा। वहीं, सातवें वैक्सीन वैरिएंट ने बाकी सभी वैक्सीन से ज्यादा क्षमता वाली सुरक्षा प्रदान की। 'नेचर' की मानें तो छह में से जिन पांच बंदरों को यह वैक्सीन दी गई, उनमें टेस्टिंग के दौरान कोरोना वायरस डिटेक्ट नहीं हो पाया। वहीं, छठवें बंदर में काफी कम लेवल पर वायरस पाया गया। इस परिणाम से चकित जेएनजे कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. पॉल स्टॉफेल्स ने कहा था कि उनकी वैक्सीन के एक ही शॉट से जानवरों में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित होना हैरान करने वाला था।