जॉनसन एंड जॉनसन (जेएनजे) द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन 'एडी2-सीओवी2-एस' इस बीमारी को खत्म करने वाले संभावित सक्षम टीके के रूप में सामने आई है। खबर है कि प्रारंभिक और मध्यम (पहले-दूसरे) चरण के क्लिनिकल ट्रायल में वैक्सीन ने कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिभागियों में मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करने का काम किया है। शुक्रवार को कंपनी की तरफ से जारी किए गए अंतरिम परिणामों में यह जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया है कि ट्रायल के तहत वैक्सीन को दो अलग-अलग डोज (सिंगल और डबल) में आजमाया गया था। दोनों ही से प्रतिभागियों में कोई मेजर साइड इफेक्ट नजर नहीं आए हैं। बता दें कि एडी26-सीओवी2-एस अपने सिंगल शॉट की क्षमता को लेकर पहले से चर्चा में है। अगर बड़े ट्रायल में भी वैक्सीन एक ही शॉट में कोरोना वायरस को रोकने में सक्षम पाई गई तो सरकार से वितरण संबंधी अप्रूवल पाने की दौड़ में जेएनजे अन्य दावेदारों, जैसे मॉडेर्ना और फाइजर, से आगे निकल जाएगी।
हालांकि, शुक्रवार को सामने आए परिणामों से यह साफ नहीं हो पाया है कि जेएनजे की वैक्सीन बुजुर्ग लोगों के लिए कितनी कारगर साबित होने वाली है। गौरतलब है कि अभी तक के ट्रेंड में यह देखने में आया है कि कोविड-19 बुजुर्गों और पहले से अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए ज्यादा घातक और जानलेवा है। कोरोना वायरस की चपेट में आए लोगों में बहुत बड़ी संख्या इन्हीं लोगों की है और मृतकों के आंकड़े में सबसे बड़ी संख्या इसी प्रकार के मरीजों की है। ऐसे में यह स्पष्ट होना जरूरी है कि क्या जेएनजे या कोई संभावित कोविड वैक्सीन बुजुर्गों पर में उस स्तर की इम्यूनिटी जनरेट कर पाएगी, जैसा कि युवा संक्रमितों में अब तक देखने को मिला है। फिलहाल जो आंकड़े और तथ्य कंपनी ने जारी किए हैं, उससे इस बारे में कुछ पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है।
जेएनजे वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायलों के परिणाम मेडिकल शोधपत्र मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म मेडआरकाइव पर प्रकाशित किए गए हैं। अभी तक किसी मेडिकल जर्नल ने इन्हें अप्रूव करते हुए प्रकाशित नहीं किया है। इनकी समीक्षा की जानी है। हालांकि एडी26-सीओवी2-एस अपने एनीमल ट्रायल के परिणामों के समय से ही चर्चा में है और अब कंपनी का दावा है कि उसकी वैक्सीन इन्सानों को भी कोरोना वायरस से बचाने में कामयाब साबित हुई है। मेडआरकाइव पर प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में कंपनी ने बताया है कि अमेरिकी सरकार द्वारा समर्थित उसके परीक्षण में करीब 1,000 प्रतिभागियों को वैक्सीन लगाई गई थी।
खबर के मुताबिक, ट्रायल में शामिल शोधकर्ताओं का दावा है कि वैक्सीन से 98 प्रतिशत प्रतिभागियों में सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी पैदा हुए हैं। परीक्षण से जुड़े उपलब्ध डेटा के आधार पर पता चला है कि टीका लगने के 29 दिन बाद प्रतिभागियों में कोरोना वायरस को खत्म करने वाले एंटीबॉडी विकसित हुए हैं। हालांकि डेटा में दिए आंकड़े केवल 15 प्रतिभागियों से जुड़े हैं, जिनकी आयु 65 वर्ष से ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, जेएनजे की वैक्सीन से इन बुजुर्ग प्रतिभागियों में विपरीत प्रतिक्रिया दिखने की दर केवल 36 प्रतिशत पाई गई है। इन रिऐक्शनों में थकान और मांसपेशी का दर्द शामिल है। वहीं, युवाओं में एडवर्स रिऐक्शन की दर 64 प्रतिशत पाई गई है। इससे संकेत गया है कि हो सकता है वैक्सीन बुजुर्गों में उतना इम्यून रेस्पॉन्स जनरेट नहीं कर पाई, जितना की युवाओं में। उधर, शोधकर्ताओं ने कहा है कि अध्ययन पूरा होने के बाद वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभाव से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
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क्या है एडी26-सीओवी-2-एस?
अमेरिका की जानी-मानी मेडिकल डिवाइस और फार्मास्यूटिकल कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने जुलाई महीने में घोषणा की थी कि उसने कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को खत्म करने के लिए इस वैक्सीन का निर्माण किया है। इस टीके को 'जेएनजे-78436735' भी कहा जाता है। दो महीने पहले में जब पहली बार कंपनी इस वैक्सीन के एनीमल ट्रायलों के परिणाम लेकर सामने आई थी तो दावा किया गया था कि बंदरों पर किए गए इन परीक्षणों में वैक्सीन ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। तब जानी-मानी विज्ञान व मेडिकल पत्रिका 'नेचर' इन परिणामों और इनसे जुड़े अध्ययन को प्रकाशित किया था। इसमें बताया गया है था जेएनजे की कोरोना वैक्सीन 'एडी26' (एडिनोवायरस) नाम के वायरस पर आधारित है। रिपोर्टों के मुताबिक, वैक्सीन बनाने वाले शोधकर्ताओं ने इस विषाणु में कुछ इस तरह के बदलाव किए हैं कि यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को जीवित रखते हुए उसे अपने साथ रखकर चल सकता है। पत्रिका की मानें तो एडी26 मानव कोशिकाओं में घुस सकता है, लेकिन अपनी कॉपियां नहीं बना सकता। यह विशेषता एडी26-सीओवी-2-एस को सुरक्षित बनाती है। वायरस के मुख्य कोशिका में घुसने के बाद वह इसके स्पाइक जीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने में करती है।
अध्ययन के तहत बंदरों को वैक्सीन दिए जाने के बाद वैज्ञानिकों ने छह हफ्तों तक का इंतजार किया था। इसके बाद उन्होंने इन जानवरों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया। दावा है कि सात में से छह वैक्सीन वैरिएंट से बंदरों को कोरोना वायरस के खिलाफ आंशिक सुरक्षा मिली। बताया गया कि वैक्सीन के प्रभाव के चलते जानवरों में वायरस की कॉपिया बनने का स्तर काफी कम रहा। वहीं, सातवें वैक्सीन वैरिएंट ने बाकी सभी वैक्सीन से ज्यादा क्षमता वाली सुरक्षा प्रदान की। 'नेचर' की मानें तो छह में से जिन पांच बंदरों को यह वैक्सीन दी गई, उनमें टेस्टिंग के दौरान कोरोना वायरस डिटेक्ट नहीं हो पाया। वहीं, छठवें बंदर में काफी कम लेवल पर वायरस पाया गया। इस परिणाम से चकित जेएनजे कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. पॉल स्टॉफेल्स ने कहा था कि उनकी वैक्सीन के एक ही शॉट से जानवरों में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित होना हैरान करने वाला था।