ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की एक विशेषज्ञ समिति ने देश की पहली कोविड-19 वैक्सीन का मानव परीक्षण करने जा रही दवा कंपनी भारत बायोटेक (बीबीआईएल) के सामने कुछ विशेष शर्तें रखी हैं, जिन्हें पूरा किए बिना कंपनी को दूसरे चरण के ट्रायल करने की इजाजत नहीं होगी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, डीसीजीआई की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (एसईसी) ने कहा है कि हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक को पहले चरण के ट्रायल के परिणाम सबमिट करने बाद ही डीसीजीआई से दूसरे चरण के ट्रायल करने की अनुमति दी जाएगी। एसईसी ने यह भी कहा है कि जिन जगहों पर क्लिनिकल ट्रायल किए जाएंगे, वहां परीक्षण से जुड़ी आपातकालीन स्थितियों (जैसे दवा का गंभीर रिएक्शन) को संभालने के लिए जरूरी सुविधाएं होनी चाहिए। इसके अलावा, ट्रायल में शामिल शोधकर्ताओं के पास उचित योग्यता के साथ-साथ इस तरह के परीक्षणों का अध्ययन करने का पर्याप्त अनुभव भी होना चाहिए।

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खबरों के मुताबिक, विशेष शर्तों के तहत एसईसी ने यह कहा है कि चूंकि ट्रायल में शामिल सभी प्रतिभागी स्वस्थ होंगे, इसलिए उनकी कोविड-19 टेस्टिंग आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिये ही होगी। बताया गया है कि एसईसी ने बीबीआईएल द्वारा वैक्सीन के जानवरों पर किए गए ट्रायल के डेटा के विश्लेषण के बाद ये शर्तें रखी हैं। इस डेटा के आधार पर कंपनी ने दावा किया था कि उसके द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन 'कोवाक्सिन' सुरक्षित है और शरीर में नए कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित करने में सक्षम है। इन शर्तों को पूरा करने के लिए एसईसी ने कोई समयसीमा यानी डेडलाइन तय नहीं की है। हालांकि विशेषज्ञों ने कहा है कि इन कंडीशन में रहते हुए कंपनी को ट्रायल करने में आईसीएमआर द्वारा तय की गई अवधि से ज्यादा समय लगेगा।

गौरतलब है कि आईसीएमआर ने कुछ दिन पहले बीबीआईएल के शीर्ष पदाधिकारियों को पत्र लिखकर कहा था कि कंपनी कोवाक्सिन के ट्रायल इसी महीने से शुरू कराए ताकि आगामी 15 अगस्त तक उसे पूरी तरह तैयार कर आम लोगों के लिए लॉन्च किया जा सके। देश के शीर्ष मेडिकल रिसर्च संस्थान के इस कदम ने कई हेल्थ एक्सपर्ट को हैरान किया था। उनका कहना था कि आईसीएमआर ने जितने समय में ट्रायल पूरे करने की बात कही है, वह किसी लिहाज से संभव नहीं है। अब एसईसी द्वारा रखी गई शर्तों के बाद आशंका जताई जा रही है कि बीबीआईएल एक महीने में ट्रायल पूरा नहीं कर पाएगी।

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अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने ट्रायल में शामिल एक शोधकर्ता के हवाले से बताया है कि आखिर ट्रायल की प्रक्रिया में अब कितना समय लगेगा। इस शोधकर्ता ने अखबार को बताया, 'जो लोग कोविड-19 से कम गंभीर रूप से संक्रमित होते हैं, उनमें भी एंटीबॉडी बहुत ज्यादा विकसित नहीं होतीं। मुख्य बात यह है कि ट्रायल में हमें इम्यून रेस्पॉन्स कैसा प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में कुछ महीनों का वक्त लग सकता है। आपको यह देखना होगा कि वैक्सीन वायरस से लड़ने के लिए पर्याप्त एंटीबॉडी पैदा कर पाती है या नहीं। एंटीबॉडी विकसित होने के बाद भी हमें यह देखना होगा कि वे कितने समय तक शरीर में बने रहते हैं। हो सकता है एंटीबॉडी कुछ हफ्तों तक ही रहें। इसलिए ऐसी वैक्सीन से काम नहीं चल सकता जिसे हर कुछ हफ्तों बाद लगाना पड़े।'

एक और शोधकर्ता ने बताया कि पहले ट्रायल को पूरा करने में ही तीन महीनों का समय लग सकता है। अखबार से बातचीत में इस शोधकर्ता ने कहा, 'अलग-अलग प्रकार के प्रतिभागियों को शामिल करना होगा। हमें यह देखना होगा कि वैक्सीन युवाओं, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए समान रूप से प्रभावशाली है या नहीं। ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे यह काम एक महीने में किया जा सके। ट्रायल से जुड़े डेटा के विश्लेषण से अलग पहले चरण के ट्रायल के लिए नामांकन प्रक्रिया ही अक्टूबर तक चलेगी। इस प्रोसेस को तेजी से अंजाम नहीं दिया जा सकता।'

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: डीसीजीआई की एक्सपर्ट कमेटी ने 'कोवाक्सिन' वैक्सीन के ट्रायल को लेकर रखी विशेष शर्तें, अब 15 अगस्त से पहले तैयार होने की संभावना नहीं है

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